Friday, June 18, 2021

कोरोना गाइडलाइन का पाठ करते रहे....!!

 कोरोना गाइडलाइन का पाठ करते रहे....!!

            
                  
दैनिक ट्रिब्यूनल में प्रकाशित....


हम तो उनकी गाइडलाइन पढ़कर ही दो साल से टाईम-पास कर रहे हैं। भला है बौद्धिक प्रबंध पहलवानों का, जो आम जनता के लिए गाइडलाइन निकालने का प्रबंध कर दिये ! नहीं तो इस कोरोना महामारी में जनता घर बैठे बैठे भला करती ही क्या ! अब हर नागरिक के पास ठेला तो है नहीं, कि भरचक लॉकडाउन में चल दीये फल-सब्जी बेचने। ओर गाइडलाइन भी छोटी-मोटी नहीं ! हर आठ दिन में पन्द्रह-पन्द्रह पन्नों की गाइडलाइन। मेरे जैसा तो अपनी दसवीं-बाहरवीं की फाईनल परीक्षा में इतना गंभीरता से नहीं पढ़ा। जितना ध्यान लगाकर इन कोरोना गाइडलाइनों को जनता जनार्दन चाव से पढ़ती है और सोशल मीडिया पर दनादन शेयर करती हैं !

मुझे अब भी पूरा विश्वास है। यदि कोरोना विषाणु को पकड़कर ये गाइडलाइनें पढ़कर सुना दी जाए, तो कोरोना गाइडलाइन के सम-विषम नियम से ही ढेर हो जाये। इन गाइडलाइंस को पढ़कर पहली बार पता चला कि विषाणुओं को भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी पसंद है। हो सकता है कि सरकार को विषाणुओं के किसी गुप्त संगठन ने पहले ही गुपचुप छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया हो ? कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कोरोना के सारे लक्षण मानवीय लक्षणों जैसे ही क्यों है ? उसके लिए भी रात में रात्रीकालीन कोरोना कर्फ्यू लगता है ! मतलब कोरोना को भी रात में ही सोना पसंद है ! उसे किसी तरह का मानवीय व्यवधान पसंद नहीं ! आश्चर्य है ! कोरोना को पब-पार्टीयां पसंद ही नहीं है ?

गाइडलाइन के गहन अध्ययन से ज्ञात हुआ कि कोरोना को शहरी क्षेत्र पसंद है ! वैसे वह भी शहरी लोगों की तरह कभी कभी हवाखोरी करने ग्रामीण क्षेत्रों के ओर निकल जाता है। ये गाइडलाइनें ही है, जो हमें समझाती है कि अभी मानव को बहुत कुछ समझने जानने की जरूरत है। “मानवीय बुद्धि के अलावा भी कोई अदृश्य शक्ति है जो कोरोना गाइडलाइनों को बनाती है।” आज यदि आइंस्टीन भी होते तो जरूर ऐसी गाइडलाइनें पढ़कर चक्कर खा जाते है ! उन्हें सिर्फ़ इन गाइडलाइनों को पढ़ने के लिए ही कोई नया सिद्धांत खोजना पड़ता।

कभी कभी तो गाइडलाइनों का पालन करना माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई जैसा ही लगता है। सोचता हूँ कोई जनरल स्टोर वाला ऐसी स्थिति में क्या करता होगा ? जब उस जनरल स्टोर में सुईं से लेकर हेलीकॉप्टर तक के सामान मिलतें हो ! वह बेचें तो क्या और बंद रखें तो क्या ? वहीं पीने की दुकान को खोलने की अनुमति हो, पर पीके साहब पीकर खाने कहां जाए ? वहीं सबसे बड़ी चुनौती है मास्क लगाने की ! जब मास्क लगाना अनिवार्य है। तो फिर हर बार मास्क लगाने के लिए हर आठ दिन में गाइडलाइन की क्या जरूरत ? लगता है जनता को नई-नवेली दुल्हन की तरह गाइडलाइनों से प्यार हो गया है। उसे भी गाइडलाइनों की लत लग गई है।

खैर, "जान है तो जहान है !" लगता है “गाइडलाइन की गाइड-लाइन पर चलना ही नियति हो गई है।” हो सकता है कोरोना विषाणु गाइडलाइनों की मार से ही मात खा जाये। मेरा तो मत है कि जनता एक दिन अपनी-अपनी छत से गाइडलाइनों का सामुहिक पाठ करें। जिससे हो सकता है कोरोना इस सामुहिक गाइडलाइन पाठ से निपट जाये। और हम उसके बाद गाइडलाइनों के चंगुल से बाहर निकल सकें। इसलिए आम आदमी “गाइडलाइनों का पाठ करते रहे....!!”


भूपेन्द्र भारतीय



Wednesday, June 9, 2021

वरिष्ठ-जी 23 का पत्राचार करना....!!

 वरिष्ठ-जी 23 का पत्राचार करना....!!


कार्टून गुगल से साभार



वैसे तो यह युग इंटरनेट के माध्यम से मोबाईल-क्रांति का हो गया है, फिर भी राजनीति में हाशिये पर आ गए एक दल के कुछ बचे कुचे वरिष्ठ वयोवृद्ध नेता अब भी पत्र लिखना जानते है ! जहां आज की युवा पीढ़ी वाट्सएप भाषा शैली में तीन शब्दों में एक पत्र का सारा कच्चा चिट्ठा बयां कर देती है ओर संदेश को पूर्ण आहुति दे देती है। फिर भी आत्मा की आवाज़ सुनकर व बची कुची राजनीति को दाव पर लगाकर इन तथाकथित वरिष्ठ वयोवृद्ध नेताओं-कार्यकर्ताओं ने अपने दल की रानी साहिबा को सत्ता से विहीन होने के दर्द में अब कही जाकर एक पत्र लिखकर ‛पत्रचार' किया। जो मोटे-मोटे तौर पर कुछ इस तरह से कागज़ पर उतरा:-     
                                                  इस पत्र में दल की दुर्दशा के बारे मे कम ओर अपनी दिशा-दशा पर वरिष्ठ सदस्य खुल कर बोले होगे। रानी साहिबा से दल की वस्तुस्थिति पर सिर्फ़ भूरी-भूरी तौर पर चिंता व्यक्त की होगी, क्योंकि रानी से प्रश्न तो कोई पुछ सकते नहीं। वैसे ही जैसे बिल्ली के गले में घंटी बांधे कैसे और कौन ? इस पत्र में रानी के पुत्र की अयोग्यता पर भी दबी-दबी जुबान मे बातें कहीं गई होगी, “पर रानी ने इस बात पर वरिष्ठों के कान मरोड़ दिये होगें !” वरिष्ठ नेताओं मे कुछ फुलटाइम वकालत करने वाले भी है उन्हें रानी के पारिवारिक कानून के तहत दोषी ठहराकर दंड दिया गया है, ऐसा सूत्रों से पता चला है ।

इन वयोवृद्ध वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पत्र सिर्फ़ दल का कल्याण चाहने की मनसा से लिखा होगा न कि अपना ! इसमें मुझे भारी संशय है! लेकिन हर बार की तरह रानी ने इसे अपने परिवार के खिलाफ षड्यंत्र समझा होगा ओर फिर रानी ने पत्र पर बगैर किसी चिंतन-मनन के एकतरफा एक ही दिन में फैसला कर लिया कि वे स्वयं फिर अगले छः माह तक दल की रानी साहिबा बनी रहेगी । एक दो सदस्यों ने दल के आंतरिक लोकतंत्र व सूचिता की भी बात इस पत्र में उठाई होगी, पर उस पर रानी ने सिर्फ़ इतना ही कहा होगा- “हमें लोकतंत्र का पाठ न पढ़ाये, हमारे परिवार ने लोकतंत्र की देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक पुजा-पाठ की है!”


वैसे पत्र लिखने की परंपरा रानी साहिबा के परिवार में बहुत पुरानी है। इनके एक पूर्वज अपनी पुत्री को जेल में से पत्र लिखते थे ओर उन पत्राचारों मे देश-दुनिया की खबर देतें थे। लेकिन वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का पत्र गलती से रानी साहिबा के ही परिवार की खबर लेता होगा ! जो कि रानी के लिए नाराजग़ी का विषय बन गया होगा। ओर इसके ही कारण रानी की नाक चण गई होगी ! ‛नाक’ की बात से याद आया, “रानी की पुत्री राजकुमारी की नाक अपनी दादी की नाक से मिलती है, इसके ही दम पर कुछ दिनों से राजकुमारी दल मे दमखम रखना चाहती है !” ओर रानी साहिबा के बुजुर्ग दल का नाक के दम पर नेतृत्व करना चाहती है !

खैर रानी साहिबा ने पत्र का सरसरी तौर पर अध्ययन किया होगा ओर यह पाया होगा कि “ये सत्ता के लालची वयोवृद्ध कार्यकर्ता सत्ताधारी दल से मिले हुए हैं, इनकी आपस में मिलीभगत है!” रानी के ‛चिरकुट युवा पुत्र’ ने भी वरिष्ठ सदस्यों पर आरोप लगाया होगा कि इनकी दूसरे दल से मिलीभगत है। ओर इसी के आधार पर रानी ने पत्र को कागज़-पत्तर समझकर फाईलों में दबा दिया होगा। शायद इसलिए ही अपने कुनबे पर आंच न आये रानी ने फिर अपना चलताऊ निर्णय सुना दिया कि अभी वे पत्र का छः माह तक ओर गहन अध्ययन करेगी, ओर फिर वे स्वंय भी एक पत्र लिखेगी ! जैसे दुनिया उम्मीद पर टीकी है, वैसे ही इस दल के वरिष्ठ कार्यकर्ता पगड़ी बांधकर मंच सजाये बैठ गए हैं, कि चलों शायद रानी साहिबा का अगले छः माह बाद आने वाले पत्र में इस वयोवृद्ध वरिष्ठ नेताओं के दल को कोई नया राजकुमार-राजकुमारी मिल जाए।

ओर अंत में जब लेखक इन सब बातों की कल्पना कर रहा था, तो न जाने क्यों लेखक के मन में बाबा नागार्जुन की लिखी कविता ‛आओ रानी’ की पंक्तियाँ घनघना रही थी !!

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !!



भूपेन्द्र भारतीय


Thursday, June 3, 2021

आनलाईन “योग” व मेरी साँसें....!!

 आनलाईन “योग” व मेरी साँसें....!!




                            
                      पत्रिका समाचार पत्र में प्रकाशित. 


महामारी से दुनिया की साँसें एवरेस्ट-कन्याकुमारी हो रही हैं। वहीं मैं लॉकडाउन में अपने ही घर पर कभी पहली मंजिल पर तो कभी ग्राऊंड फ्लोर के बीच ‛योग’ कर रहा हूँ। कभी फेसबुक योग, तो कभी ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाट्सएपः पर योगस्थः हो रहा हूँ। मुझे लगा यह मेरे ही साथ हो रहा है। पर जब मैंने इंटरनेट के माध्यम से महाभारत के संजय की तरह अपनी दृष्टि दूरी फेंकी, तो पता चला “मेरे सरकार भी माईक्रो ब्लागिंग साईटों के चक्कर में ‛योग’ कर रहे हैं !” कहाँ पहले ऋषि-मुनि पर्वतों-पहाड़ों पर योग करते थे। और आज हर कोई मोबाइल पर ही योगस्थः हुए जा रहा है।

योग करना अच्छा है। बाबा जी भी कहते हैं कि ‛करो’, ‛योग’ करने से होता है। लेकिन कुछ अच्छा हो, तो अच्छा है। वरना फिर वहीं दाग अच्छे है ! पर “अंडबंड योगासन” के दाग निकले नहीं, तो वह धब्बा अच्छा नहीं लगता है। वहीं ऐसे में महामारी से मेरी साँसें फुल रही हैं और जमाना है कि दनादन आनलाईन ‛योग’ किये जा रहा है। कोई वाट्सएपः पर न जाने कौन-कौन से योगासनों के विडियों फार्वर्ड कर रहा है। कुछ वाट्सएपः समूह में ऐसे-ऐसे योगासन होते है कि आये दिन समूह से “लेफ्ट” का राईट विकल्प दबाना पड़ता है।
कुछ है कि ट्विटर पर टूलकिटनुमा योग कर रहे हैं ! कहीं से फॉरवर्ड दिव्य ज्ञान आ रहा है। कही से सीधे ग्राउंड फ्लोर गुप्त सूत्रनुमा खबर आ रही है। विपक्ष है कि आनलाईन ‛योग’ से ही अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर रहा है ! कुछ छद्म पाकशास्त्री भोजनालय में घूसपैठ कर गए हैं। जिसके कारण जीभ आनलाईन लपलपा रही है ! ऐसी आनलाईन योग मुद्राओं से प्रतिदिन मेरे जैसे कि साँसें प्रातःकालीन योग से स्थिर जब तक ही रहती है जबतक की ऑफलाईन रहो। जैसे ही ऑनलाइन हुए कि साँसें अलग ही तरह का “योग” करने लगती हैं । लॉकडाउन में ऐसा दोधारी योग कितना घातक है यह स्वयं यमराज भी ठीक से जान ले तो पृथ्वीलोक तरफ झांकें नहीं !

ऐसे ही अंडबंड योगासन की बहस में मेरे ‛सरकार’ कोरे ही उलझते रहते है। जो कि छोटे से छोटे आनलाईन योगी को “म्यूट, अनफॉलो व ब्लॉक” के विकल्प पता है। जब अभिव्यक्ति की होड़ में ऐसे सहज विकल्प उपलब्ध है तो फिर कड़ी निंदा के नाम पर शीर्षासन क्यों ? “जब मुँह ढकने तक के लिए गाइडलाइन जारी है तो फिर खालिमाली मुँह खोलने जैसी चेतावनियों से क्या होना है।”

लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में मैंने भी भोलेपन में दो-चार बार आनलाईन ‛योग’ करने का प्रयास किया। फिर क्या था ! आनलाईन योगीयों की कुछ ही कमेंट्स से मेरी साँसें फुलने लग गई। “जैसे-तैसे श्रीमतिजी के द्वारा बनाए काढ़े को पीने पर व सासुमां के कड़े निर्देशों के पालन से साँस में साँस आई।” बच्चों के माध्यम से मेरे मोबाइल पर कब्जा किया गया। कठोर निर्देशों के साथ चेतावनी दी गई, कि अपनी साँसों की सलामती चाहते हो तो खबरदार, “आनलाईन मत आना !”

खैर, जैसे कि “यह भी बीत जाऐगा !” वाट्सएप यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम अनुसार “फार्वर्ड” होते रहो और अपनी साँसों को ‛आल इस वेल-आल इस वेल’ अंदाज़ में शांति से समझाते रहो।
मित्रों, अब मेरी साँसें कह रही है कि उनके “नियमित योग” का समय हो गया है। आखिर मुझे भी तो योग करते हुए ‛आनलाईन’ आना है !
“योगस्थः कुरु कर्माणि ”....!!


भूपेन्द्र भारतीय 

लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...