कोरोना गाइडलाइन का पाठ करते रहे....!!
दैनिक ट्रिब्यूनल में प्रकाशित....
हम तो उनकी गाइडलाइन पढ़कर ही दो साल से टाईम-पास कर रहे हैं। भला है बौद्धिक प्रबंध पहलवानों का, जो आम जनता के लिए गाइडलाइन निकालने का प्रबंध कर दिये ! नहीं तो इस कोरोना महामारी में जनता घर बैठे बैठे भला करती ही क्या ! अब हर नागरिक के पास ठेला तो है नहीं, कि भरचक लॉकडाउन में चल दीये फल-सब्जी बेचने। ओर गाइडलाइन भी छोटी-मोटी नहीं ! हर आठ दिन में पन्द्रह-पन्द्रह पन्नों की गाइडलाइन। मेरे जैसा तो अपनी दसवीं-बाहरवीं की फाईनल परीक्षा में इतना गंभीरता से नहीं पढ़ा। जितना ध्यान लगाकर इन कोरोना गाइडलाइनों को जनता जनार्दन चाव से पढ़ती है और सोशल मीडिया पर दनादन शेयर करती हैं !
मुझे अब भी पूरा विश्वास है। यदि कोरोना विषाणु को पकड़कर ये गाइडलाइनें पढ़कर सुना दी जाए, तो कोरोना गाइडलाइन के सम-विषम नियम से ही ढेर हो जाये। इन गाइडलाइंस को पढ़कर पहली बार पता चला कि विषाणुओं को भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी पसंद है। हो सकता है कि सरकार को विषाणुओं के किसी गुप्त संगठन ने पहले ही गुपचुप छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया हो ? कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कोरोना के सारे लक्षण मानवीय लक्षणों जैसे ही क्यों है ? उसके लिए भी रात में रात्रीकालीन कोरोना कर्फ्यू लगता है ! मतलब कोरोना को भी रात में ही सोना पसंद है ! उसे किसी तरह का मानवीय व्यवधान पसंद नहीं ! आश्चर्य है ! कोरोना को पब-पार्टीयां पसंद ही नहीं है ?
गाइडलाइन के गहन अध्ययन से ज्ञात हुआ कि कोरोना को शहरी क्षेत्र पसंद है ! वैसे वह भी शहरी लोगों की तरह कभी कभी हवाखोरी करने ग्रामीण क्षेत्रों के ओर निकल जाता है। ये गाइडलाइनें ही है, जो हमें समझाती है कि अभी मानव को बहुत कुछ समझने जानने की जरूरत है। “मानवीय बुद्धि के अलावा भी कोई अदृश्य शक्ति है जो कोरोना गाइडलाइनों को बनाती है।” आज यदि आइंस्टीन भी होते तो जरूर ऐसी गाइडलाइनें पढ़कर चक्कर खा जाते है ! उन्हें सिर्फ़ इन गाइडलाइनों को पढ़ने के लिए ही कोई नया सिद्धांत खोजना पड़ता।
कभी कभी तो गाइडलाइनों का पालन करना माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई जैसा ही लगता है। सोचता हूँ कोई जनरल स्टोर वाला ऐसी स्थिति में क्या करता होगा ? जब उस जनरल स्टोर में सुईं से लेकर हेलीकॉप्टर तक के सामान मिलतें हो ! वह बेचें तो क्या और बंद रखें तो क्या ? वहीं पीने की दुकान को खोलने की अनुमति हो, पर पीके साहब पीकर खाने कहां जाए ? वहीं सबसे बड़ी चुनौती है मास्क लगाने की ! जब मास्क लगाना अनिवार्य है। तो फिर हर बार मास्क लगाने के लिए हर आठ दिन में गाइडलाइन की क्या जरूरत ? लगता है जनता को नई-नवेली दुल्हन की तरह गाइडलाइनों से प्यार हो गया है। उसे भी गाइडलाइनों की लत लग गई है।
खैर, "जान है तो जहान है !" लगता है “गाइडलाइन की गाइड-लाइन पर चलना ही नियति हो गई है।” हो सकता है कोरोना विषाणु गाइडलाइनों की मार से ही मात खा जाये। मेरा तो मत है कि जनता एक दिन अपनी-अपनी छत से गाइडलाइनों का सामुहिक पाठ करें। जिससे हो सकता है कोरोना इस सामुहिक गाइडलाइन पाठ से निपट जाये। और हम उसके बाद गाइडलाइनों के चंगुल से बाहर निकल सकें। इसलिए आम आदमी “गाइडलाइनों का पाठ करते रहे....!!”
भूपेन्द्र भारतीय
हम तो उनकी गाइडलाइन पढ़कर ही दो साल से टाईम-पास कर रहे हैं। भला है बौद्धिक प्रबंध पहलवानों का, जो आम जनता के लिए गाइडलाइन निकालने का प्रबंध कर दिये ! नहीं तो इस कोरोना महामारी में जनता घर बैठे बैठे भला करती ही क्या ! अब हर नागरिक के पास ठेला तो है नहीं, कि भरचक लॉकडाउन में चल दीये फल-सब्जी बेचने। ओर गाइडलाइन भी छोटी-मोटी नहीं ! हर आठ दिन में पन्द्रह-पन्द्रह पन्नों की गाइडलाइन। मेरे जैसा तो अपनी दसवीं-बाहरवीं की फाईनल परीक्षा में इतना गंभीरता से नहीं पढ़ा। जितना ध्यान लगाकर इन कोरोना गाइडलाइनों को जनता जनार्दन चाव से पढ़ती है और सोशल मीडिया पर दनादन शेयर करती हैं !
मुझे अब भी पूरा विश्वास है। यदि कोरोना विषाणु को पकड़कर ये गाइडलाइनें पढ़कर सुना दी जाए, तो कोरोना गाइडलाइन के सम-विषम नियम से ही ढेर हो जाये। इन गाइडलाइंस को पढ़कर पहली बार पता चला कि विषाणुओं को भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी पसंद है। हो सकता है कि सरकार को विषाणुओं के किसी गुप्त संगठन ने पहले ही गुपचुप छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया हो ? कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कोरोना के सारे लक्षण मानवीय लक्षणों जैसे ही क्यों है ? उसके लिए भी रात में रात्रीकालीन कोरोना कर्फ्यू लगता है ! मतलब कोरोना को भी रात में ही सोना पसंद है ! उसे किसी तरह का मानवीय व्यवधान पसंद नहीं ! आश्चर्य है ! कोरोना को पब-पार्टीयां पसंद ही नहीं है ?
गाइडलाइन के गहन अध्ययन से ज्ञात हुआ कि कोरोना को शहरी क्षेत्र पसंद है ! वैसे वह भी शहरी लोगों की तरह कभी कभी हवाखोरी करने ग्रामीण क्षेत्रों के ओर निकल जाता है। ये गाइडलाइनें ही है, जो हमें समझाती है कि अभी मानव को बहुत कुछ समझने जानने की जरूरत है। “मानवीय बुद्धि के अलावा भी कोई अदृश्य शक्ति है जो कोरोना गाइडलाइनों को बनाती है।” आज यदि आइंस्टीन भी होते तो जरूर ऐसी गाइडलाइनें पढ़कर चक्कर खा जाते है ! उन्हें सिर्फ़ इन गाइडलाइनों को पढ़ने के लिए ही कोई नया सिद्धांत खोजना पड़ता।
कभी कभी तो गाइडलाइनों का पालन करना माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई जैसा ही लगता है। सोचता हूँ कोई जनरल स्टोर वाला ऐसी स्थिति में क्या करता होगा ? जब उस जनरल स्टोर में सुईं से लेकर हेलीकॉप्टर तक के सामान मिलतें हो ! वह बेचें तो क्या और बंद रखें तो क्या ? वहीं पीने की दुकान को खोलने की अनुमति हो, पर पीके साहब पीकर खाने कहां जाए ? वहीं सबसे बड़ी चुनौती है मास्क लगाने की ! जब मास्क लगाना अनिवार्य है। तो फिर हर बार मास्क लगाने के लिए हर आठ दिन में गाइडलाइन की क्या जरूरत ? लगता है जनता को नई-नवेली दुल्हन की तरह गाइडलाइनों से प्यार हो गया है। उसे भी गाइडलाइनों की लत लग गई है।
खैर, "जान है तो जहान है !" लगता है “गाइडलाइन की गाइड-लाइन पर चलना ही नियति हो गई है।” हो सकता है कोरोना विषाणु गाइडलाइनों की मार से ही मात खा जाये। मेरा तो मत है कि जनता एक दिन अपनी-अपनी छत से गाइडलाइनों का सामुहिक पाठ करें। जिससे हो सकता है कोरोना इस सामुहिक गाइडलाइन पाठ से निपट जाये। और हम उसके बाद गाइडलाइनों के चंगुल से बाहर निकल सकें। इसलिए आम आदमी “गाइडलाइनों का पाठ करते रहे....!!”
भूपेन्द्र भारतीय