Saturday, November 27, 2021

गधे हँस रहे हैं....!!

 गधे हँस रहे हैं....!!

        



एक ने पूछा गधे भी हँसते है ? मैंने कहा, भाई मैंने आजतक तो किसी गधे को प्रत्यक्ष रूप से हँसते हुए देखा नहीं। लेकिन भले लोगों के मुँह से सुना है कि गधे भी हँसते है। आगे कहा, मैंने तो कृशन चन्दर के उपन्यास “एक गधे की आत्मकथा” में गधे को मानवों जैसा व्यवहार करते जरूर पढ़ा है। सामने वाला तो मेरी इस बात पर आश्चर्य से गधे का बाप बनकर कहने लगा, भला कोई गधे पर भी उपन्यास लिखता है ? आजकल ऐसे लेखक पाये जाते है ? मैंने कहा, “पाठक होना चाहिए। कुछ लेखक तो श्वान पुराण तक भी लिख सकते हैं।”

खैर बात गधे के हँसने की चल रही थी। कुछ दिन पहले मैंने सोशल मीडिया पर एक गधे को यह कहते हुए सुना कि वह “उस देश से आता है”, जिसमें उसे असहिष्णुता ही असहिष्णुता दिखती हैं ! वह अपने आप को अपने देश के सबसे बड़े गधे के रूप में प्रस्तुत कर रहा था। वह गधा अपने देश का नाम भारत बता रहा था ! विदेश में कविता के नाम पर गधापन झाड़ रहा था। इन दिनों भारत में ऐसे गधों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। लगता है जैसे पाकिस्तान ने अपने सारे गधे भारत की ओर घेर दिये हो। जो भारत की रोटीयों पर पलते हैं और विदेशों में गधों जैसा हँसते है ! कविता के नाम पर वह गधा सोशल मीडिया पर दो-तीन दिनों तक सिर्फ़ ढेंचू-ढेंचू करता ही खड़ा रहा।

इधर कुछ गधे विदेशों में जाकर बड़े बड़े घांस के मैदानों में चरकर मोटे-ताजे चर्बी युक्त हो गए है। इधर के गधे उनपर हँसते है और उधर के गधे इधर के गधों पर हँसते हैं। हर कोई पूछ रहा है ये ‛गधे हँस क्यों रहे हैं ?’ अब भला गधों से ऐसा पूछने की समझदारी कौन करें। क्या पता कैसा जवाब आ जाये। गधों से बात करते हुए कोई बुद्धिजीवी व्यक्ति देख ले तो उस बात करने वाले प्रगतिशील व्यक्ति को कहीं गधा समुदाय का न समझ बैठे। इतना बड़ा गधा जोखिम कौन उठाये।

फिर भी आजकल गधे हँसते हुए ज्यादा पाये जा रहे हैं। ऐसा सोशल मीडिया वाले कहते हैं। मुझे तो अब भी भरोसा ही नहीं होता कि गधे हँस भी सकते हैं ! आखिर गधे इस मानवीय क्रिया को क्यों करने लगे ? क्या मानवों के बाद गधे भी नकल करने लग गए हैं ? जो वे मनुष्यों की तरह हँसने लगे हैं ! उन्हें कौनसी प्रतियोगिता परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी प्राप्त करना है।

आजकल के कुछ भारतीय गधे तो कृशन चंदर के गधे से भी आगे निकल गए हैं। कृशन चंदर का गधा तो सिर्फ़ चीन व रूस का साम्यवादी विकास मॉडल भारत में लाना चाहता था ! लेकिन वर्तमान के कुछ गधे तो भारत में पश्चिमी देशों का संपूर्ण विकास मॉडल ही उठाकर लाना चाहते है और उसपर भी आये दिन समाचार पत्रों में बड़े बड़े विज्ञापनों के माध्यम से हँसते रहते हैं। जैसे वे किसी गधास्तान में विकास पुरूष बनकर खड़े हो !

मुझे आश्चर्य तो उस दिन हुआ था जब मेरे एक मित्र ने कहा कि आजकल बहुत से गधे संसद में भी घुस गए हैं। जब मैंने पूछा वे संसद में भला क्या करने घुस गए और किसने उन्हें उस “लोकतंत्र के मंदिर” प्रांगण में घुसाया ? मित्र कहने लगा, उधर हरि-हरि घांस के बड़े-बड़े मुगलीया व ब्रितानिया बगीचें देखकर, उन्हें किसी भले मतदाता ने उधर घुसा दिया। मित्र को मैंने कहा, फिर तो सही किया उस भले मतदाता ने ! “अब जिधर ऐसी आयातित मुलायम हरि-हरि घांस होगी, गधे उधर ही तो घुसेगें।” इसमें भला कौन-सी आश्चर्य की बात है । हो सकता है, “गधे इस कारण ही उस भले मतदाता के इस लोकतांत्रिक कर्तव्य के लिए उसपर भोली-भाली हँसी हँसते रहते हो....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Friday, November 19, 2021

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम बच जाय....!!

 साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम बच जाय....!!

       

      

आजकल हर पल लगता है कि बस अब तो मेरी जैब पर डाका डलने ही वाला है। कभी मोबाइल पर बैंक से लिये लोन की किस्त का संदेश आ रहा है, तो कोई कार खरीदने का मेल कर रहा है ! जीवन बीमा वालों के द्वारा मरने के बाद दिखाये हसीन सपनों की आशा में ‛अच्छे दिन भी’ किस्तों में हाथ से जा रहे हैं। विज्ञापन वाले हल्का होने वाले स्थान पर भी अपना मार्केटिंग प्रबंध कौशल दिखाने से बाज नहीं आते। उन्हें लगता है कि कुछ ही दिनों में दुनिया किसी गुमनाम लहर से खत्म होने वाली है सारा माल जल्दी से जल्दी बेच दो ! “मांग बढ़ावो मांग बढ़ावो” उनका प्रिय नारा रहता है। आनलाईन शापिंग ने इस आग में घी का काम कर दिया है। साईं ने जितना दिया उससे ज्यादा का आर्डर हो रहा है !

    


घर वालों के अलग डिमांड ड्राफ्ट हमेशा तैयार ही रहते है। सरकारी कार्यालय में घुसे नहीं की बाबूजी अपना वाला कबीर भजन शुरू कर देते हैं;-
“साईं इतना दीजिये, जा मे मेरा कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साहब की भी भूख मिट जाय ॥”
मुझे उस पल समझ नहीं आता कि साधु कौन है और भूखा कौन ? कहाँ है साधु-संत ? वे भी आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं ! जिन्हें मेरे जैसा निम्न मध्यवर्गीय कुछ दे सकता है ! अभी तो मेरी ही भूख शांत नहीं हुई है। ऐसे में मेरे घर के द्वार पर कौन भला साधु आऐगा ?

घर से बाहर पहला कदम रखते ही अंदर से घर वालों की मांग भरी ऊंची आवाज़ें आतीं है। सुनों जी, शाम को बाजार से कुछ जरूरी चीजें लेते आना। मैं आपको चीजों की सूची दिन में वाट्सएप कर दूगीं। शाम आते आते कुछ चीजें की सूंची एक बड़ा मांग पत्र हो जाता है ! जैसे मेरे घर में ही कोई बड़ा संगठन अपनी मांगों की सूचीं दिनरात बनाता रहता है। अपने ही घर के अंदर ही अंदर कोई बड़ा आंदोलन होने वाला हो। अब भला कबीर साहब का साईं दे भी तो कितना दे ? ऐसे मांग पत्रों के सामने साईं कितना व क्या दे सकते हैं ? हो सकता है साईं इस थोड़े-बहुत में से भी कुछ मांग ले !

वहीं इन दिनों घर से कार्यालय पहुंचने के बीच एक बड़ा जंक्शन खड़ा हो गया है। जिसे ‛पेट्रोल-डीजल पंप टोल टैक्स स्थान’ कहना ही उचित होगा। इसके मीटर को देखकर हर बार लगता है कि कहीं सांसें ही नहीं रूक जाए ! लगता है जैसे देश की अर्थव्यवस्था इसी स्टेशन से ही चल रही हो। शायद कबीर साहब के जमाने में भी कुछ ऐसे ही ‛रोका’ विशेष स्थल रहे होगें। तभी उन्होंने ऐसी दोहामय अमृतवाणी लिखी। अब एक भला मध्यवर्गीय आदमी इस रोका-डाका डालों से बचें तो अपनी पहली मांग सूचीं की भरपाई करें ? ऊपर से दिन में बच्चों के विचित्र महंगी मांग भरे फोन अलग दनदनाते रहते हैं।

ऐसे में अब कोई कैसे ‛आत्मनिर्भर’ बने ! जब हर कोई आपसे कुछ न कुछ मांग ही रहा है। देने वाला कहीं दिख नहीं रहा है। “क्योंकि आप एक वर्ग विशेष श्रेणी में नहीं आते। आपके पास कोई संगठन नहीं है और न ही किसी तरह का संगठित वोटबैंक !” वहीं आनलाईन मांगने वाले की तो लाईन लंबी ही होती जा रही है। हर दूसरे वर्ष वोट मांगने वाले अलग नहीं मानतें। पड़ोसी अब चाय पत्ती, चीनी और दुध से आगे बढ़ते हुए पेट्रोल-डीजल-गैस सिलेंडर की मांग पर आ गया है। गनीमत है कि चंदा मांगने वालों को अब तक कोरोना ने क्वॉरेंटाइन कर रखा है। खेतों में कीटनाशक दवाओं की मांग बढ़ती जा रही है ! वहीं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता दिनोंदिन घटती-जा रही हैं। इस स्थिति में बेचारे साईं से कितना और क्या मांगे ? जिससे की इस छोटीसी जैब की आर्थिक स्थिति का सूचकांक भी बढ़ जाए।
मेरी इस मांगीलाल वाली स्थिति में आज कबीर साहब होते तो इस मांग-भरी महंगी दुनिया पर शायद मूल दोहे की जगह यह ही लिख पाते ;-

“साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम बच जाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, बाकी की मांग पूरी हो जाय ॥”



भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
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मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Thursday, November 11, 2021

ब्रांड मूल्य का बाजार

 ब्रांड मूल्य का बाजार

             




जीवन के हर क्षेत्र में ब्रांड वैल्यू(मूल्य) का आजकल बहुत बोलबाला बढ़ गया है। जैसे मार्केटिंग का हिन्दी अर्थ ‛विपणन’ जटिल शब्द है, उसी तरह से मार्केटिंग प्रबंधकों का तंत्र व उनके मंत्र भी बड़े ही विचित्र है। किस मीडिया मंच से कौनसा मंच आपके घर व मस्तिष्क में कब घर कर जाए ! इस विषय में सही सही कोई कुछ नहीं कह सकता है। “गंजे को कंघी बेचने” वाले मार्केटिंग मंत्र से बात बहुत आगे निकल गई है।
वहीं किसी को सोशल मीडिया पर कम लाईक्स व शेयर मिलने लगे तो समझो, उस मीडिया महावीर का मूल्य गिर रहा है। जैसे उसका सबकुछ लूट गया हो ! जीवन में किन्हीं अज्ञात अशांति ही अशांतियों ने घेर लिया हो। अबतक अक्सर सुनने में आता था कि बॉलीवुड व क्रिकेटरों का ब्रांड घटता-बढ़ता है। लेकिन जनता इन दो ब्रांडों से इनता प्रभावित हो गई है कि उसने अपना मूल्यांकन स्वयं करना शुरू कर दिया है। आभासी दुनिया ही उसके लिए परम् सुख होने लग गई! एक तरफ महानायक जैसों का पान-सुपारी-गुटखा बेचने के विज्ञापन से ब्रांड मूल्य क्या गिरने लगा ! जनता का मूल्य सूचकांक ऊपर-नीचें होने लगा। जनता ने अलग अलग ब्रांड में नये-नये मानक खोजना शुरू कर दिये।

जो जितना बड़ा अभिनेता वह उतना ऊँचे दाम का ब्रांड मूल्य रखता है ! और बिकता भी हैं। क्या तो इन्हें जनता की भावनाओं का ध्यान और क्या तो जनता इनकी बात मानने को तत्पर खड़ी ! आजकल कैसे कैसे विज्ञापन गुरू बैठे है, दोनों को गच्चा खिला रहे हैं। और बाजार को गुलजार कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे ब्रांड मूल्य का मामला नहीं है, ब्राह्मण गद्दी का हो। बाजार गुरूओं ने जनता को बाजारू बना रखा है।
वहीं जैसे जैसे जनता की भावनाएं ब्रांड मूल्य धारियों से आहत हो रही है जनता अपना ब्रांड खुद बना रही है। इन दिनों जैसे जैसे बाजार का बोलबाला दिनोंदिन बढ़ रहा है, जनता अपने ब्रांड की बखत स्वयं बढ़ाने में लग गई है। इस वैश्विक अभियान में जनता का साथ आभासी दुनिया सर्वाधिक दे रही है। हर हाथ को मोबाईल ने काम दे दिया है। वहीं बाजार ने ब्रांड मूल्य का पैमाना इतना बढ़ा दिया है कि इस पैमाने तक पहुंचने में हर कोई औंधे मुंह गिर रहा है।

एक समय जब युवाओं का विद्यालय में अच्छे नंबर लाना अपने घर व आस-पड़ोस में ब्रांड था, आज वहीं बड़ी कंपनीयों का मोबाईल खरीदना बच्चों का ब्रांड मूल्य बन गया है। बाजार अच्छे दिनों की आस में सब कुछ परोस रहा है। जनता चहुँ ओर से हर वस्तु के मूल्य मानकों के दबाव के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ हो रही है। वह भी चाहती हैं कि ‛लोकतांत्रिक व्यवस्था में उसके भी मत की ब्रांड वैल्यू हो।’ भले वह पांच साल में एक बार ही हो ! जब हर चवन्नी छाप चीज का मूल्य स्तर बढ़ रहा है तो फिर “जनता के बेलट ब्रांड का मूल्य स्तर भी बढ़ना चाहिए।”

आज बाजार ने हर घर के प्रत्येक सदस्य के लिए आनलाईन दुकानें खोल रखी है। सबकी पसंद-नापसंद का पल-पल पर विज्ञापन गुरू-घंटाल पैनी निगाह से ध्यान रख रहे हैं। यदि आपने ठंड में आग में तापने का मन बनाया और उधर जैसे ही सोशल मीडिया खोला, हर प्लेटफार्म पर चार-चार तरह की माचिस व लाईटर के विज्ञापन दनादन आने लग जाते है ! जैसे आभासी दुनिया का इशारा हो “गुरू लगाओं आग, जिधर लगाना हो ! ये रही आग लगाने के साधनों के विकल्पों की लड़ी।” ब्रांड मूल्य बाजार ने दुनिया को अपनी मुठ्ठी में कर रखा है और वही एड गुरु जनता से कह रहे हैं कि एक आइडिया जो दुनिया बदल दे ! अब बेचारी जनता दुनिया को मुठ्ठी में करें या फिर दुनिया को बदलें ?

इसी ऊहापोह में जनता की दुखती नश को ब्रांड मूल्यधारी समय-समय पर टटोलते रहते हैं। और अपने मालिकों के इशारे पर नश को दबाते हुए बाजार के सूचकांकों को बढ़ाते रहते हैं। अब जनता को समझना है कि उसका ब्रांड वह स्वयं चुने और बाजार को अपनी मुठ्ठी में रखें या फिर कटपुतली बनकर आभासी दुनिया से संचालित होती रहे ! क्योंकि ब्रांड मूल्य-धारीयों के अश्वमेध घोड़े सरपट दौड़े जा रहे हैं, इन्हें नियंत्रित करने के लिए जनता को अपना ब्रांड मूल्य बढ़ाना होगा। ब्रांड मूल्य के इस चक्रव्यूह से बचने के लिए जनता को इसे बेधना व इसमें से फिर बाहर निकलने वाली दोनों विद्याओं को सीखना होगा।


भूपेन्द्र भारतीय 
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Saturday, November 6, 2021

प्रभु श्रीराम की “नवधा भक्ति” के नौ रस:- श्रीराम-शबरी मिलन

 प्रभु श्रीराम की “नवधा भक्ति” के नौ रस:- श्रीराम-शबरी मिलन

              
                  आज अमर उजाला में....


श्रीराम के संपूर्ण वनवास काल में अरण्यकाण्ड का अतिमहत्वपूर्ण स्थान है। चित्रकूट से आगे बढ़ते हुए राम,लक्ष्मण व सीताजी पंचवटी को अपना नया निवास स्थान बनाते है। वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में न केवल ज्ञान व भक्ति की महिमा अद्भुत है, पर इसी सोपान में सीता जी के हरण के कारण श्रीराम का सीता वियोग उनके भक्तों के लिए भी हृदयविदारक है। इसी सोपान में श्रीराम जीवन अरण्य में ज्ञान व भक्ति रस के नये-नये रूप अपने भक्तों को दिखाते हैं और स्वयं भी संतों व ऋषियों के पास पहुंचकर पाप का नाश करने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।

श्रीरामचरितमानस के अरण्य सोपान के अंतिम भाग में श्रीराम-शबरी का मिलन होता है। यह भेंट भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में कोई साधारण मिलन नहीं है। एक भक्त का अपने भगवान के प्रति अटूट विश्वास व आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह भक्ति के नौ रसों का घाट है। जिसे स्वयं प्रभु श्रीराम ने अपने श्रीमुख से नवधा भक्ति नाम दिया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में स्वयं प्रभु श्रीराम के मुखारबिंद से नवधा भक्त के विषय में विस्तार से बताया है। यह भक्ति ज्ञान या भक्ति योग वैसा ही है जैसा बाद में महाभारत काल में महायोगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरूक्षेत्र में श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय बारह में भक्ति योग समझाया। उससे पहले नवधा भक्ति सतयुग में, प्रह्लाद ने पिता हिरण्यकशिपु को इस भक्ति के विषय में बताया था।

श्रीराम-शबरी मिलन सभी तरह की ऊंच-नीच से परे यह मिलन सहस्त्रों शताब्दियों से भक्त व भगवान के विश्वास का प्रमाणिक उदाहरण रहा है। श्रीराम जब शबरीजी के आश्रम में आये तो शबरी मुनि मतंग के वचनों का स्मरण कर मन में प्रफुल्लित हो गई। उनके जीवन का लक्ष्य उन्हें प्राप्त हो गया। मतंग वन मंगलमय ध्वनियों से गुंजायमान् हो गया। श्रीराम का शबरी से मिलन जगत के लिए कल्याणमय् पल है। भगवान का भक्त के द्वार पर आना जबकि रामजी सीताजी के वियोग में वन वन भटक रहे है, अपने आप में मार्मिक व भक्ति की शक्ति का प्रतीक का प्रमाणिक प्रसंग है। श्रीराम शबरी के मिलन का प्रसंग अन्य रामायणों में भी बहुत ही रोचक व अद्भुत तरह से वर्णन है। जो कि भक्ति साहित्य में विशेष स्थान रखता है।

प्रतिदिन की तरह नये नये फूलों से सजाया द्वार व उसपर आ रहे कमल सदृश नेत्र और विशाल भुजाओं वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और हृदय पर वनमाला धारण किए हुए सुंदर, साँवले और गोरे दोनों भाइयों श्रीराम-लक्ष्मण के चरणों में शबरीजी लिपट पड़ीं। मानों अंधे को अपनी दोनों नेत्र यकायक मिल गये। वे प्रेम में मग्न हो गईं, मुख से वचन नहीं निकलता। बार-बार चरण-कमलों में सिर नवा रही हैं। फिर उन्होंने जल लेकर आदरपूर्वक दोनों भाइयों के चरण धोए और फिर उन्हें सुंदर आसनों पर बैठाया। यह दृश्य हर किसी के लिए सुखदायक है। सरल हृदय मानव अपने आंसू रोक नहीं सकता।

भगवान श्रीराम ने शबरी द्वारा श्रद्धा से भेंट किए गए बेरों व अन्य सुरस फलों को बड़े प्रेम से खाया और उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं:

कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि।।

प्रभु राम इन फलों को बहुत ही प्रेमसहित व मन से ग्रहण करते हैं। मानों उन्होंने शबरी के झूठे बेर के लिए ही वनवास बड़े प्रेम से स्वीकारा हो ! वहीं लक्ष्मण जी यह सब देखकर विस्मित है ! मन ही मन कह रहे है प्रभु की अब यह कौन-सी लीला है ? लक्ष्मण जी इस लीला का आनंद भी ले रहे है।
फिर शबरी अपने प्रभु को देखकर प्रेम से भर गई। उन्हें कुछ सुधबुध ही नहीं है कि अब आगे क्या कहें ? कैसे स्वयं परमात्मा से कुछ कहें ? शबरी अपने को नीच जाति व अत्यंत मूढ़बुद्धि मानने लगी। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि प्रभु सामने बैठे है और उनकी स्तुति कैसे करें ? जबकि शबरी सिद्ध तपस्विनी थी।

जैसे कि प्रभु हर बार अपने भक्त को परेशानी में देखकर उनके मन का समाधान करते है उसी तरह श्रीराम ने शबरी के मन को शांत करते हुए कहा कि हे भामिनि ! “मानउँ एक भगति कर नाता” (मैं तो केवल एक भक्ति ही का संबंध मानता हूँ।) मुझे अपने सभी भक्त प्यारे है। मैं किसी भी तरह की ऊंच-नीच को नहीं मानता। प्रभु श्रीराम के लिए अपना भक्त परमप्रिय है।

शबरी को प्रभु श्रीराम कहते है, मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति रस कहता हूँ। एक ही भक्ति के नौ रसों का रहस्य बताता हूँ। तू सावधान होकर सुन और मन में इसे धारण कर;-

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा- पहली भक्ति है संतों की सत्संग। सत्य का साथ। मानव जीवन के कल्याण के लिए सतत ईश्वर का सान्निध्य ही एकमेव उपाय है। सत्यम शिवम सुन्दरम भाव।

दूसरी रति मम कथा प्रसंगा- दूसरी भक्ति है मेरे कथा -प्रसंग में प्रेम । प्रभु से प्रेम करना। प्रभु भाव में रत रहना। भगवन के भजन कीर्तन में आनंदमय रहना।

तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा करना। छोटे-बड़े के भेद भाव से परे जाकर भक्ति भाव में रहना।

चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़कर प्रभु के गुण समूहों का गान करना। कैसी भी चलाकी-चतुराई से बचना।

मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास- यह पाँचवी भक्ति है। जो वेदों में प्रसिद्ध हैं। राम नाम ही सत्य है। प्रभु के नाम राम में रमे रहना।

छठी भक्ति - इन्द्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म(आचरण) में लगे रहना। सदा सत्य के साथ रहना।

सातवीं भक्ति है जगत् भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत(राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। प्रभु की भक्ति करने वालों को अधिक मानना।

आठवीं भक्ति- जथालाभ संतोषा (जो कुछ मिल जाय उसी में संतोष करना) और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना।

नवी भक्ति- सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य(विषाद) का न होना। समभाव में रहना। भक्त का भगवान के प्रति अटूट आस्थावान होना।

यह नवधा भक्ति रस बरसाने के बाद प्रभु श्रीराम शबरी से कहते है कि इन नवों में से जिनके पास एक भी होती है, वह स्त्री-पुरूष, जड़-चेतन कोई भी हो- मुझे वह अत्यंत प्रिय है। ओर फिर प्रभु श्रीराम शबरी को प्रेममय होकर कहते है, हे भामिनि ! फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वही आज तेरे लिये सुलभ हो गयी है। प्रभु के दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने सहज स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
वास्तव में यह नवधा भक्ति संपूर्ण मानवता के लिए प्रभु श्रीराम का वरदान, कृपा ही है।


संदर्भ:-

१. श्रीरामचरितमानस-गोसाईं तुलसीदास (टीकाकार-हनुमानप्रसाद पोद्दार)

२. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ( प्रथम खण्ड) गीताप्रेस, गोरखपुर

३. https://www.vedicaim.com

४. https://hindi.speakingtree.in/blog/content-378292/m-

५. http://vskjabalpur.org



भूपेन्द्र भारतीय 
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लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

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