क्रांतिदूतों के क्रांतिदूत वीर सावरकर की क्रांतिमय गाथा:- मित्रमेला
स्वर्गीय श्री अटल जी ने अपनी एक कविता में वीर सावरकर के व्यक्तित्व पर कहा था कि “सावरकर माने तेज, त्याग, तप, तत्व, तर्क, तारुण्य, तीर, तलवार..।" आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो वीर सावरकर के इन सभी विशेष गुणों को आसानी से समझ जाऐंगे।
क्रांतिदूत का यह भाग-०३ मित्रमेला मुख्यतः वीर सावरकर जी पर ही केन्द्रित है। इसमें वीर सावरकर के शुरुआती जीवन से लेकर उनके विदेश में जाकर शिक्षा प्राप्त करना व उनके द्वारा लिखी गई कालजयी पुस्तक “१८५७ का स्वातंत्र्य समर" की प्रेरणा सावरकर जी को कैसे मिली, इस भाग में संक्षिप्त रूप से कथात्मक उपन्यास शैली में लिखा गया है।
पुस्तक पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी तक पाठक को बांधकर रखने में सफल है। क्रांतिदूतों व उनके गुरूओं के आपस में संवादमय तरीकें से यहां वीर सावरकर जी के क्रांतिकारी जीवन पर प्रकाश डाला गया है। वे कौन कौन से प्रेरणास्रोत व कारण थे, जिसके कारण विनायक दामोदर सावरकर से “वीर सावरकर” बने। इन सब ऐतिहासिक संघर्षों भरें पलों को लेखक ने बेहद खूबसूरत तरीक़े से मित्रमेला भाग में लिखा है। यहां हर क्रांतिकारी घटना का स्पष्ट संदर्भ भी दिया गया है और उसे छोटे छोटे अध्यायों के माध्यम से पाठकों के सामने रखा है। ये अध्याय स्वतंत्रत रूप में भी पूर्ण है। पुस्तक को किसी भी अध्याय से पढ़ा जा सकता है। मुश्किल से 120 पृष्ठ की क्रांतिदूत शृंखला का यह भाग धैर्य से सिर्फ़ तीन घंटे में पढ़ा जा सकता है।
२१ छोटे छोटे अध्यायों में इस भाग को लिखा गया है। हर अध्याय के बाद पाठक की रूची क्रांतिकारियों की जीवन गाथा को पढ़ने के लिए ओर बढ़ती जाती है। यह भाग सामान्य पाठक का इतिहास विषय में रूची पैदा करता है। वीर सावरकर को इस भाग में पढ़कर उनके जीवन के बारे में ओर जानने व पढ़ने का मन होता है। साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक संघर्षों से पाठक यहां रूबरू होता है। कैसे महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव से लंदन तक वीर सावरकर क्रांतिदूतों की एक महान सेना खड़ी कर देते हैं। और इस सबके के पीछे उनके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को सुंदरता व रोचकता के साथ इस भाग में लेखक ने रचा है।
इस भाग को पढ़ते हुए पाठक वीर सावरकर के विशाल व्यक्तित्व के निर्माण के बारे में समझ पाऐगा। वीर सावरकर की जीवन गाथा वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए जानना व समझना बहुत जरुरी है, यह कार्य इस भाग को पढ़ने से आसानी से हो सकता है। वीर सावरकर के साथ ही इस भाग में श्याम जी वर्मा, चापेकर बंधु, लोकमान्य तिलक, मदनलाल ढींगरा, लाला हरदयाल, वासुदेव, रानाडे, साठे, महादेव, बालकृष्ण आदि महान क्रांतिदूतों के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया है। कैसे वीर सावरकर की सहायता कई क्रांतिदूतों ने की व उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य पर आगे बढ़ने के लिए कौन कौन से संघर्ष व त्याग करने पड़े, यह सब आप इस भाग में संक्षिप्त रूप में पढ़ सकते हैं।
#मित्रमेला वीर सावरकर के द्वारा बनाया गया संगठन था। जो कि विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक व देशभक्ति से संबंधित आयोजन करता था। इसी के द्वारा सर्वप्रथम वीर सावरकर ने राष्ट्रवाद की अलख जगाई थी। आगे चलकर इस संगठन से कई महान क्रांतिदूत जुड़ते गए। इस भाग में यह सब रोचकता से कहा गया है। इस भाग में “अभिनय भारत संगठन" पर भी चर्चा की गई है।इसकी प्रेरणा व इसके ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। इस भाग में मुख्यतः १९०० से १९२० के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा की गई है व साथ ही उस समय में अंग्रेजों की नीति व शासन पर तीखी आलोचना के माध्यम से पाठकों के सामने बहुत सी बातें यहां रखी गई है। गांधी व नेहरू की कथनी व करनी पर भी क्रांतिदूतों को उनके शिक्षक इस भाग में बहुत सी बातें स्पष्टता से बताते हैं। पर इस भाग में मुख्य नायक वीर सावरकर ही है व उनके चमत्कारी व्यक्तित्व पर बहुत ही पठनीय भाषा व भाव के साथ लिखा गया है। यहां एक अध्याय विशेष तौर पर श्याम जी वर्मा के जीवन पर व उनके क्रांतिकारी कार्यों पर प्रकाश डालता है। यहां लेखक ने श्याम जी के जीवन पर विशेष प्रकाश इसलिए भी डाला है कि वीर सावरकर के कृतित्व व व्यक्तित्व निर्माण में उनका बड़ा योगदान रहा था। लंदन में स्थिति उस समय के दो महत्वपूर्ण स्थान इंडिया हाऊस व इंडिया आफिस पर भी लेखक ने यहां रोचक बातें रखी है। और कैसे ये स्थान क्रांतिदूतों के लिए महत्वपूर्ण बने। यह सब पढ़ना सामान्य पाठक के लिए रूचिकर, स्वतंत्रता संग्राम के लिए जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला व प्रेरणादायक है।
एक बार फिर इस शृंखला के इस भाग को पढ़कर भी इन महान क्रांतिदूतों की जीवन गाथा जानने की जिज्ञासा बढ़ती जाती है। उस समय विदेश में पढ़ रहे भारतीय युवा कैसे वीर सावरकर के कहने पर अपना बना बनाया करियर छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। यह सब वर्तमान भारतीय युवा पीढ़ी को जानना जरूरी है।
“अर्धसत्य” अध्याय में गांधी व नेहरू की कथनी व करनी पर तिखी आलोचना की गई है व पाठकों के सामने तथ्यों सहित इनके कृतित्व पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। उस समय श्याम जी वर्मा व वीर सावरकर का कद स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गांधी व नेहरू से बड़ा था। बाद के इतिहासकारों ने कैसे आम जनमानस से इन महान क्रांतिदूतों को अलग कर दिया, यह समझना इस भाग को पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है।
आखिरी के अध्यायों में वीर सावरकर को “१८५७ का स्वातंत्र्य समर" पुस्तक लिखने व समझने की प्रेरणा कैसे मिली यह पढ़ना रूचिकर व प्रेरणादायक है। साथ ही इस पुस्तक को लिखने के लिए उन्होंने तथ्यों की सत्यता के तह में जाकर कैसे एक कालजयी पुस्तक लिखी व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण व बड़े अध्याय को नष्ट होने से बचा लिया। और कितने ही क्रांतिदूतों को स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा हथियार इस पुस्तक के माध्यम से दिया। इस पुस्तक को लिखने में लंदन के इंडिया आफिस में पदस्थ मुखर्जी साहब ने सावकार जी का विशेष सहयोग किया था। इंडिया आफिस में संग्रहित दस्तावेजों के आधार पर वीर सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक चमत्कार सा कर दिया था। “इतिहास से नया इतिहास रचने की चमत्कारी कला में वीर सावरकर सबके गुरू बनकर विश्व पटल पर छा गए थे।” अंग्रेज उनके इस चमत्कारी व्यक्तित्व से अब चीढ़ने व सर पिटने लगे थे।
अंत में इतना ही कह सकता हूँ कि क्रांतिदूत की शृंखला इस भाग को पढ़ने पर वर्तमान युवा पीढ़ी जरूर भारतीय स्वतंत्रता समर के इतिहास को विस्तार से पढ़ने के लिए प्रेरित होगी व साथ ही राष्ट्रवाद की ओर प्रेरित होगी। भाग-०३ मित्रमेला में वीर सावरकर के जीवन पर ओर ज्यादा लिखा जाता तो ठीक रहता। आशा है अगले भाग में उनपर विस्तार से लिखा जाऐगा। यह भाग इतिहास को जानने के लिए एक नवीन दस्तावेज बन सकता है। इतिहास के नये लेखक व छात्रों के लिए यह शृंखला नया दृष्टिकोण व नवीन आयाम लेकर आई है। इन सभी कारणों के आधार पर भी शृंखला के इस भाग-०३ मित्रमेला को पढ़ना उचित रहेगा।
#समीक्षा
पुस्तक : क्रांतिदूत (भाग-३) मित्रमेला
लेखक: डॉ. मनीष श्रीवास्तव
प्रकाशक : सर्व भाषा ट्रस्ट
मूल्य : 249
समीक्षक
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