“राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।”
कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कालजयी रचना ‛साकेत’ के शुरुआत में ही ऊपर लिखी पंक्तियों से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित(चरित्र) की महिमा को स्पष्ट कर दिया। और इसमें कोई अतिश्योक्ति भी नहीं कि श्रीराम ने मानव के तौर पर उच्च आदर्शों को बखुबी ऊँचा उठाया, जो आजतक जीवन जीने के श्रेष्ठ मूल्य है।
महाप्राण निराला की कालजयी कविता “राम की शक्ति पूजा” में श्रीराम के पुरूष से पुरूषोत्तम बनने का वर्णन हैं। इस लंबी कविता में निराला ने राम को उनकी परंपरागत दिव्यता के महाकाश से उतार कर एक साधारण मानव के धरातल पर खड़ा कर दिया हैं, जो थकता भी है, टूटता भी है और जिसके मन में जय एवं पराजय का भीषण द्वन्द्व भी चलता है। निराला ने ‛जिस तरह से "राम की शक्ति पूजा" में राम के मानवीय रूप को दिखाया है वो पहले कभी देखने को नहीं मिला था। वाल्मीकि, तुलसी, कम्बन आदि की रामायण से अलग यहां पर राम डरते भी हैं घबराते भी हैं और रोते भी हैं। राम की शक्ति पूजा राम के मानवीय रूप का दर्पण हैं।’
इसीलिए ही अंत में निराला जी इस नवीन व आदर्श व्यक्तित्व के लिए कहते हैं:-
"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।''
भारत में बड़े-बड़े महापुरुष तथा ऋषि-मुनि हुए हैं किंतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति आस्था रखने वाले लोगों की संख्या इतने युगों के बीत जाने के बाद भी कम नहीं हुई और न ही उनकी मान्यता में कोई कमी आई है। यदि इसके कारणों पर विचार करें तो यह पता चलता हैं कि श्रीराम का जीवन कुछ इस तरह भारत के जन-जन के हृदय पटल पर अंकित हो गया हैं, जिसे काल की कोई अवधि मिटा नहीं सकती। इस लिए देश के लोग श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहते हैं। अर्थात वह मनुष्य जो मर्यादा बना सकता है। भगवान राम उसकी अंतिम सीमा थे। वह पुरुष भी उत्तम थे और उनकी मर्यादाएं भी उत्तम थीं। उन्होंने मानव मात्र के लिए मर्यादा पालन का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह संसार के इतिहास में कहीं ओर नहीं मिल सकता।
भगवान श्रीराम जन-जन के नायक हैं। उन्होंने पापियों के भय से त्रस्त जन समूह को एकत्रित कर ही बुराई का अंत किया और राम राज्य को स्थापित किया। श्रीराम सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। केवट से लेकर शबरी, जामवंत, सुग्रीव, ऋषि-मुनि सभी के बीच रहे। सबके बीच रहकर मानव मूल्यों का निर्माण किया। जनमानस में कोई भेदभाव नहीं किया। सर्वप्रथम राज्य की प्रजा का ध्यान रखा।
दरअसल श्रीराम के लोकनायक चरित्र ने जाति, धर्म और संप्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया। भारत में ही नहीं, दुनिया में श्रीराम अत्यंत पूज्यनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं। थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा आदि कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं। वे मानवीय आत्मा की विजय के प्रतीक महापुरुष हैं, जिन्होंने धर्म एवं सत्य की स्थापना करने के लिये अधर्म एवं अत्याचार को ललकारा। इस तरह वे अंधेरों में उजालों, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के प्रतीक बने। और इसलिए ही बाबा तुलसीदास ने ‛श्रीरामचरितमानस’ में बहुत सुंदर कहा हैं:-
“हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥”
ऐसे ही गुणों के सागर प्रभु श्रीराम की महिमा के संबंध में कबीरदासजी ने भी बहुत ही सुंदर पंक्तियां कही हैं ;-
“सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥”
सबसे बड़ी बात यह है कि वह एक आदर्श राजा थे। आज भी लोग रामराज्य की कामना करते हैं। राज्य तो था ही राजा के लिए किंतु श्रीराम ने राजा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसे आज तक कोई भुला नहीं सकता। आज समस्त संसार राम राज्य की कामना और अभिलाषा रखता है। महात्मा गांधी भी अपने देश में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे।
श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहां तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार, आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। श्रीराम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा “प्रान जाहुँ परु बचनु न जाई” की थी। श्रीराम हमारी अनंत मर्यादाओं के प्रतीक पुरुष हैं इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है। हमारी संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर, न्यायप्रिय और प्रशांत हो। इस एक विराट चरित्र को गढ़ने में भारत की सहस्रों प्रतिभाओं ने कई सहस्राब्दियों तक अपनी मेधा का योगदान दिया। आदि कवि वाल्मीकि से लेकर महाकवि भास, कालिदास, भवभूति और तुलसीदास तक न जाने कितनों ने अपनी-अपनी लेखनी और प्रतिभा से इस चरित्र को संवारा। वाल्मीकि के श्रीराम लौकिक जीवन की मर्यादाओं का निर्वाह करने वाले वीर पुरुष है। उन्होंने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया और लोक धर्म की पुनः स्थापना की। लेकिन वे नील गगन में दैदीप्यमान सूर्य के समान दाहक शक्ति से संपन्न, महासमुद्र की तरह गंभीर तथा पृथ्वी की तरह क्षमाशील भी हैं।
भारतवर्ष में देहात हो या कस्बा,नगर हो अथवा महानगर लगभग हर किसी के मन में राम रचे,बसे हुए है। आज सामान्य रूप से मिलने पर भी अधिकांश लोग एक-दूसरे को ‘राम राम जी’ या ‘जय सियराम जी की’ रुपी अभिवादन करना नहीं भूलते हैं। गांवों में तो अब भी अक्सर यह कहा जाता है कि “जहां राम वहां गाम(गांव)”। भारत के हर गाँव में श्रीराम को आदर्श पुरूष माना जाता है, श्रीराम के सबसे प्रिय भक्त हनुमानजी का हर गाँव के खेड़ापति के रूप में सर्वोच्च स्थान है। जहां श्रीराम है वहीं दुख हरता हनुमान हैं। भारतीय लोकमानस में राम नाम व रामराज्य की जड़ें बहुत गहराई तक हैं। और अब जब ५०० वर्षों के बाद अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है तो हर “राम भक्त” के लिए यह ऐतिहासिक क्षण कोरोना जैसी महामारी में भी सुखद संस्कृति व स्वास्थ्य की संजीवनी बूटी रूपी हैं।
‛राम नाम’ की महिमा ऐसे है कि इसे पत्थर पर भी लिख दिया जाए तो वह पत्थर तैरने लगता है और वही श्रीराम जी पत्थर को स्पर्श कर दे तो वह प्राणवान होकर अहिल्या हो जाए। इसलिए राम की महिमा अपरंपार है। लेकिन आधुनिक विज्ञानवादी व भौतिकवादीयों को राम चरित्र कम ही समझ आता है। समझ आये भी कैसे, इन तथाकथित नास्तिकों ने पाश्चात्य संस्कृति के चश्मे जो पहन रखे हैं। ऐसे लोगों के लिए इतना ही कह सकते हैं कि "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।"
श्रीराम ने अपनी श्रेष्ठ मर्यादाओं को सर्वदा सर्वोच्च स्थान दिया। उनका पालन किया और उसी कारण से वे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ कहलाए। आज भी भारतवर्ष में जनमानस द्वारा अपने जीवन में उन श्रेष्ठ शिक्षाप्रद मर्यादाओं की यथासंभव अनुपालना की अपेक्षा की जाती हैं।
भूपेन्द्र भारतीय
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संदर्भ:-
१. कविता कोश गूगल से
२. रामचरितमानस, तुलसीदास गीताप्रेस
३. साकेत, मैथिलीशरण गुप्त(काव्य )
४. राम की शक्ति पूजा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‛निराला’(काव्य)
५. गूगल व विकिपीडिया के स्त्रोत से