भोलाराम के आंगन में जिंगल बेल्स....!!
भोलाराम भोला नहीं था। लेकिन उसके देशीपन व गरीबी के कारण आयातित विचारधारा ने उसे अपना शिकार बनाया। भोलाराम को पहले धीरे से पुचकारा गया। बड़े सपने दिखाये गये। अच्छे कपड़े पहनने को दिये गए। नये पकवान खिलाये गए। जमीन से जुड़े भोलाराम को टेबल-कुर्सी पर बैठाकर विदेशी चम्मचों के द्वारा खाना खिलाना सिखाया गया। उसे अजीबोगरीब प्रार्थनाएं रटाई गई। भोलाराम के आंगन में लोकनृत्य के बजाय विदेशी गाने बजने लगे।
यह सब देखकर पहले पहल भोलाराम खुश था। उसे लगा, यह सब तो उसके भले के लिए हो रहा है ! उसे लगा कोई अवतार आया है, कोई नया देवता है। जो उसकी सूध ले रहा है। कोई उसका भला करना चाहता है। उसे अच्छे दिन के सपने दिखाये गए। उसे लगा उसके अच्छे दिन आ गए। खूब रेवड़ियां बाटी जा रही थी। उसके बाल-बच्चे खुशी से चहकने लगें। कुछ दिनों बाद ही पिता से बच्चे प्रार्थना सभा में चलने की जिद करने लगे। पिता प्रार्थना सभा की कहानी नहीं समझ पा रहे थे ! भोजन, कपड़े, खिलौने, अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा आदि के बदले प्रार्थना सभा में चलना ! आखिर इस प्रार्थना सभा में क्या होता है ? इसपर इतना बल क्यों ? हम तो माँ शक्ति की पूजा अर्चना करते हैं। प्रतिदिन मंदिर में माथा टेकने जाते हैं। महादेव के भक्त हैं। हमारे यहां तो खेड़े-खेड़े रक्षक, फिर यह अलग से कैसी प्रार्थना करना होगी ?
भोलाराम यह सब, कुछ दिनों से देख ही रहा था। उसे यह सब समझ नहीं आ रहा था। प्रार्थना में जाने पर उसे बहुत सी बातें छोड़ने व बहुत सी नई बातें अपनाने के लिए प्रार्थना में उपदेश दिया जाने लगा। उसकी पत्नी को नया मकान देने का लालच दिया जाने लगा। बच्चों को अच्छे स्कूल व कपड़ों का वादा किया गया। उन्हें नौकरी तक का लालच दिया गया। हर छः माह में भोलाराम के बच्चों के लिए अच्छे अच्छे कपड़े व खाने की चीजें उपहार स्वरूप दी जाती थी। उसकी पत्नी को सिलाई मशीन दी गई व मशीन चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। भोलाराम से प्रार्थना दल के सदस्यों के द्वारा कहाँ जाने लगा कि प्रतिदिन जंगल में गाय-बकरियों को क्यों ले जाते हो ! अपना जीवन जंगल में क्यों बर्बाद कर रहे हो। इस झोपड़ी वाले छोटे से घर में क्या रखा है। हम तुम्हें बड़ा मकान देगें। तुम्हारे इस थोड़े से जंगल-जमीन में क्या रखा है ? हमारे साथ चलों, शहर में हम तुम्हें अच्छी नौकरी देगें। साथ ही रहने का घर व तुम्हारे बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा भी देगें। उससे उन्हें नौकरी मिलेगी !
भोलाराम के परिवार के सदस्यों को यह सब अच्छा लगने लगा। बच्चें व उसकी पत्नी इन सब उपहारों के मोह में आकर अब भोलाराम से यह सब मानने की जिद करने लगें। भोलाराम यह सब स्वीकार करने को तैयार नहीं था। वह अपने जंगल-जमीन व गांव से जुड़ा रहना चाहता था। उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं था। भोलाराम को इस लोकलुभावन उपहार में किसी षड्यंत्र की शंका लग रही थी। पर उसे बच्चों व पत्नी की जीद्द के आगे झुकना पड़ा। वह ना चाहकर भी प्रार्थना की माया से मोहित हो ही गया। भोलाराम अपना गांव, जंगल, जमीन, पशुधन व ग्राम्य जीवन को प्रार्थना सभा के हाथों में छोड़कर शहर की ओर बढ़ गया...!
भोलाराम को शहर में मिले नये मकान, अच्छे कपड़ें व बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के बदले अपना सबकुछ छोड़ना पड़ा। गांव में वह सब कुछ छोड़ना पड़ा जो उसके पीढ़ियों के परिश्रम से खड़ा किया गया था। बच्चे अंग्रेजी स्कूल में प्रार्थना करने जाते। भोलाराम को हर दिन प्रार्थना के चमत्कार बताते। पत्नी पर भी प्रार्थना का चमत्कार होने लगा था। यह सब देख-सुन कर भी भोलाराम का मन शहर में नहीं लग रहा था। वह एक बार अपने गांव वाले घर पर जाना चाहता था। एक दिन समय मिलते ही वह अपने गांव की ओर दौड़ा। वह गांव वाले घर पहुंचता है। वह जैसे ही उस घर के आंगन में जाता है। वह देखता है उसके आंगन में प्रार्थना सभा वालों की जिंगल बेल्स लटकी थी। उनसे अजीबोगरीब आवाज़ें आ रही थी। भोलाराम उन घंटियों की आवाज़ नहीं सुन सका। उस आवाज़ में उसे एक अजीब सी चित्कार सुनाई दी ! वह उलटे पांव वहां से शहर की ओर लौट आया। मन में एक भारीपन के साथ आज वह अपने शहर वाले मकान में बैठा था। शाम होते ही भोलाराम के बच्चें उसके पास आये और उसके हाथ में प्रार्थना की पुस्तक रख दी। और उसके बच्चें कहने लगे कि पापा आज हम साथ में इस पुस्तक से प्रभु की प्रार्थना करते हैं ! शाम को प्रार्थना सभा में चलना....!!
भूपेन्द्र भारतीय
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