Wednesday, January 18, 2023

भोलाराम के आंगन में जिंगल बेल्स....!!

 भोलाराम के आंगन में जिंगल बेल्स....!!

             



भोलाराम भोला नहीं था। लेकिन उसके देशीपन व गरीबी के कारण आयातित विचारधारा ने उसे अपना शिकार बनाया। भोलाराम को पहले धीरे से पुचकारा गया। बड़े सपने दिखाये गये। अच्छे कपड़े पहनने को दिये गए। नये पकवान खिलाये गए। जमीन से जुड़े भोलाराम को टेबल-कुर्सी पर बैठाकर विदेशी चम्मचों के द्वारा खाना खिलाना सिखाया गया। उसे अजीबोगरीब प्रार्थनाएं रटाई गई। भोलाराम के आंगन में लोकनृत्य के बजाय विदेशी गाने बजने लगे।

यह सब देखकर पहले पहल भोलाराम खुश था। उसे लगा, यह सब तो उसके भले के लिए हो रहा है ! उसे लगा कोई अवतार आया है, कोई नया देवता है। जो उसकी सूध ले रहा है। कोई उसका भला करना चाहता है। उसे अच्छे दिन के सपने दिखाये गए। उसे लगा उसके अच्छे दिन आ गए। खूब रेवड़ियां बाटी जा रही थी। उसके बाल-बच्चे खुशी से चहकने लगें। कुछ दिनों बाद ही पिता से बच्चे प्रार्थना सभा में चलने की जिद करने लगे। पिता प्रार्थना सभा की कहानी नहीं समझ पा रहे थे ! भोजन, कपड़े, खिलौने, अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा आदि के बदले प्रार्थना सभा में चलना ! आखिर इस प्रार्थना सभा में क्या होता है ? इसपर इतना बल क्यों ? हम तो माँ शक्ति की पूजा अर्चना करते हैं। प्रतिदिन मंदिर में माथा टेकने जाते हैं। महादेव के भक्त हैं। हमारे यहां तो खेड़े-खेड़े रक्षक, फिर यह अलग से कैसी प्रार्थना करना होगी ?

भोलाराम यह सब, कुछ दिनों से देख ही रहा था। उसे यह सब समझ नहीं आ रहा था। प्रार्थना में जाने पर उसे बहुत सी बातें छोड़ने व बहुत सी नई बातें अपनाने के लिए प्रार्थना में उपदेश दिया जाने लगा। उसकी पत्नी को नया मकान देने का लालच दिया जाने लगा। बच्चों को अच्छे स्कूल व कपड़ों का वादा किया गया। उन्हें नौकरी तक का लालच दिया गया। हर छः माह में भोलाराम के बच्चों के लिए अच्छे अच्छे कपड़े व खाने की चीजें उपहार स्वरूप दी जाती थी। उसकी पत्नी को सिलाई मशीन दी गई व मशीन चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। भोलाराम से प्रार्थना दल के सदस्यों के द्वारा कहाँ जाने लगा कि प्रतिदिन जंगल में गाय-बकरियों को क्यों ले जाते हो ! अपना जीवन जंगल में क्यों बर्बाद कर रहे हो। इस झोपड़ी वाले छोटे से घर में क्या रखा है। हम तुम्हें बड़ा मकान देगें। तुम्हारे इस थोड़े से जंगल-जमीन में क्या रखा है ? हमारे साथ चलों, शहर में हम तुम्हें अच्छी नौकरी देगें। साथ ही रहने का घर व तुम्हारे बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा भी देगें। उससे उन्हें नौकरी मिलेगी !

भोलाराम के परिवार के सदस्यों को यह सब अच्छा लगने लगा। बच्चें व उसकी पत्नी इन सब उपहारों के मोह में आकर अब भोलाराम से यह सब मानने की जिद करने लगें। भोलाराम यह सब स्वीकार करने को तैयार नहीं था। वह अपने जंगल-जमीन व गांव से जुड़ा रहना चाहता था। उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं था। भोलाराम को इस लोकलुभावन उपहार में किसी षड्यंत्र की शंका लग रही थी। पर उसे बच्चों व पत्नी की जीद्द के आगे झुकना पड़ा। वह ना चाहकर भी प्रार्थना की माया से मोहित हो ही गया। भोलाराम अपना गांव, जंगल, जमीन, पशुधन व ग्राम्य जीवन को प्रार्थना सभा के हाथों में छोड़कर शहर की ओर बढ़ गया...!

भोलाराम को शहर में मिले नये मकान, अच्छे कपड़ें व बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के बदले अपना सबकुछ छोड़ना पड़ा। गांव में वह सब कुछ छोड़ना पड़ा जो उसके पीढ़ियों के परिश्रम से खड़ा किया गया था। बच्चे अंग्रेजी स्कूल में प्रार्थना करने जाते। भोलाराम को हर दिन प्रार्थना के चमत्कार बताते। पत्नी पर भी प्रार्थना का चमत्कार होने लगा था। यह सब देख-सुन कर भी भोलाराम का मन शहर में नहीं लग रहा था। वह एक बार अपने गांव वाले घर पर जाना चाहता था। एक दिन समय मिलते ही वह अपने गांव की ओर दौड़ा। वह गांव वाले घर पहुंचता है। वह जैसे ही उस घर के आंगन में जाता है। वह देखता है उसके आंगन में प्रार्थना सभा वालों की जिंगल बेल्स लटकी थी। उनसे अजीबोगरीब आवाज़ें आ रही थी। भोलाराम उन घंटियों की आवाज़ नहीं सुन सका। उस आवाज़ में उसे एक अजीब सी चित्कार सुनाई दी ! वह उलटे पांव वहां से शहर की ओर लौट आया। मन में एक भारीपन के साथ आज वह अपने शहर वाले मकान में बैठा था। शाम होते ही भोलाराम के बच्चें उसके पास आये और उसके हाथ में प्रार्थना की पुस्तक रख दी। और उसके बच्चें कहने लगे कि पापा आज हम साथ में इस पुस्तक से प्रभु की प्रार्थना करते हैं ! शाम को प्रार्थना सभा में चलना....!!



भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Saturday, January 7, 2023

भय्या रिचार्ज होकर फिर आये.....!!

 भय्या रिचार्ज होकर फिर आये.....!!

             



आखिर भय्या एक लंबी यात्रा से रिचार्ज होकर फिर नई यात्रा के लिए आ गए। इस लंबी यात्रा में भय्या को कई नये अनुभव हुए। भय्या ने पहली बार अपने क्षेत्र से निकलकर दूसरे क्षेत्र का विकास देखा। इस यात्रा में भय्या ने पहली बार जाना कि उन्हें तो बहुत कुछ पता नहीं था। उन्हें तो अब भी बहुत कुछ जानना है। उनके सत्ता में ना होने पर भी विकास हो रहा है। विकास अपनी यात्रा में दौड़ लगा रहा है।
एक लंबी युवा उम्र के बाद भी भय्या को अभी ओर युवा रहना है। दक्षिण भारत की अपनी इस यात्रा में भय्या एक जोड़ी कपड़ें में यात्रा पूर्ण करते है। उनका अपना एक ड्रेस कोड है। वे अपनी इस यात्रा को यात्रा नहीं, मिशन बताते है। वे यात्रा में हर एक सहयात्री से गले मिल रहे हैं और वहीं इस मेलजोल भरी मोहब्बत को मिडिया गले पड़ना बता रहा है !

अपनी यात्रा में भय्या हर पल जोर-जोर से हाथ हिलाते चलते हैं। बीच-बीच में वे दौड़ने का भी अभ्यास करते हुए दिख जाते है। उनकी यात्रा में हर पड़ाव पर राजनीतिक प्रवासी पक्षी भी देखे जा सकते हैं। भय्या उनसे गले पड़ते हुए गंभीर हो कर बुद्धिजीवीयों जैसी बातें करते-करते चलते है। भय्या की यात्रा में बड़े-बड़े अभिनेता-अभिनेत्रियां भी देखे जा सकते है। भय्या ने यात्रा के लिए अपना विशेष रुप बनाया है। वामपंथियों जैसी खिचड़ी दाढ़ी का विशेष सृजन किया है। वे यात्रा में बुद्धिजीवीयों जैसा अवतार लिये चलते है। चाचा नेहरू की तरह वे बच्चों से बात करते है। उन्हें यात्रा में शामिल करते है। उनके साथ सड़क पर फुटबॉल खेलते है। उन्हें गोद में लेते है। जैसे बच्चों में एक बच्चा खूब रंग जमाता है। यात्रा में कभी भावुकता , तो कभी करूणा का बघार लगता है। यह सब समाचार चैनल वाले रूक-रूक कर बताते हैं। भय्या की यात्रा में बहुत कुछ जोड़-घटाव चल रहा है...!

यात्रा के माध्यम से कुछ जोड़ने की बात की जाती है ! लेकिन पीछे-पीछे भय्या का दल टुटता जा रहा है। कई का दिल भी। हो सकता है इससे उनके मन में खरोंच भी आई हो। भय्या को इसका कोई मलाल नहीं है। वे अपने मिशन पर सतत आगे बढ़ते जा रहे है। वे एक जोड़ी कपड़े में मोहब्बत की बात करते है। उनका कहना है कि नफरत के माहौल में वे मोहब्बत की यात्रा पर है। “भय्या इस यात्रा के माध्यम से राजनीति में रिचार्ज होना चाहते है। लेकिन वे अपने ही बयानों से बार-बार डिस्चार्ज हो जाते है।” उनकी राजनीतिक यात्रा को रिचार्ज करने में अब तक कितनी ही बेटरीयां डिस्चार्ज हो गई हैं।

भय्या अपनी लंबी यात्रा के बाद कुछ दिन अवकाश भी लेते है। अवकाश लेने की भय्या की यह बहुत पुरानी आदत है। पहले बच्चे गर्मियों की छुट्टी में दादी-नानी के यहां जाते थे । लेकिन भय्या अवकाश लेकर सिर्फ़ अपनी नानी के पास अवकाश का आनंद लेने जाते है। उनके इस राजनीतिक अवकाश पर कई यात्रीयों की राजनीति अवकाश पर चली जाती हैं। उनकी कक्षा का परिणाम बिगड़ जाता है, पर उन्हें अपनी यात्रा की ही चिंता होती है।
कितने ही राजनीतिक प्रवासी नेताओं की राजनीति बिगड़ जाती हैं। लेकिन जैसे ही भय्या अवकाश से रिचार्ज होकर आते है। यात्रा में जोश आ जाता है। फिर तो वे सर्दी-गर्मी-बरसात सबसे भीड़ जाते है। उनके सामने कोई नहीं ठहरता है। वे मोहब्बत का भाषण देते है। फिर गले मिलने व प्यार लुटाने की यात्रा आगे बढ़ती है। फिर नये-नये राजनीतिक प्रवासी पक्षी यात्रा में शामिल होने लगते हैं। अपने मूल प्रवास से उनके द्वारा लाये गए वैचारिक खाद-पानी का असर यात्रा में दिखता है। इस सर्दी में भय्या अपनी यात्रा में राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राजनीतिक गर्मी का आह्वान करते है। लेकिन भय्या की यात्रा के भूतकाल के बर्फीले तूफान यात्रा में गर्मी का माहौल बनना मुश्किल लगता है। लगता है भय्या के लिए उत्तर से दक्षिण की ओर यात्रा करना ही लिखा है। देखते हैं यह यात्रा कब तक चलती है....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
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