Sunday, February 14, 2021

अंतरात्मा की आवाज़ का जादू...!!

 जब भी चुनाव आता है तो अंतरात्मा की आवाज़ राजनीतिक चरित्र को अंदर से झँझोड़ती है। यह आवाज़ आकाशवाणी की तरह होती हैं। यह आवाज़ जब जब भी आती है। अच्छे भले आदमी का हृदय परिवर्तन करती हैं। राजनीति में यह आवाज़ जनता की सेवा के लिए आती है, तो कभी देशभक्ति के कारण यह आवाज़ नेता जी का हृदय परिवर्तन करती हैं। “जिससे वे अपने मन का मूड बदलकर दल-बदल करते है।” 



यह आवाज़ बहुत बार सरकारी विभागों में भी सुनाई देती हैं। जबतक सरकारी बाबू को यह आवाज़ नहीं आती, वे फाईलों का स्थान नहीं बदलते ! लेकिन जैसे ही जेब गर्म होती हैं, आम आदमी की गरीबी व पीड़ा को देखकर बाबूजी का इस आवाज़ के कारण हृदय परिवर्तन होता हैं। बड़े साहब भी बहुत बार इस आवाज़ के कारण न्याय व समता-समानता की बातें करते हैं। लेकिन जब तक उनके दो-चार बंगले व बैंक बैलेंस की पुरी तरह व्यवस्था न हो, तब तक उन्हें यह आवाज़ सुनने में कठिनाई होती है।


मुझे ऐसा लगता है कि अंतरात्मा की आवाज़ के संबंध में कोई क्रेश कोर्स होना चाहिए। जिससे कि यह कोर्स हर नेता व सरकारी महकमे के लोगों को आसानी से कराया जा सके या उनके प्रशिक्षण के समय इसपर विशेष बल दिया जाए ! इस अंतरात्मा की आवाज़ को यदि कोई रिकॉर्ड कर सके तो क्या कमाल होगा ! प्रतिदिन इसे सरकारी कार्यालयों में ऊंची आवाज़ से आसानी से सुनाया जाए। जैसे कि मंदिर-मस्जिद से आवाज़े आती हैं। जिससे की कितनों के ही हृदय परिवर्तन हो सकते हैं। यह आवाज़ विकास की बहार ला सकती हैं। जिससे कि भारत फिर सोने की चिड़िया बन सकता है।


इस आवाज़ को चुनाव आयोग अनिवार्य रूप से हर दो तीन वर्ष में नेताओं को सुनाये, जिससे की नेताओं के राजनीतिक कद नपे व आयोग चुनाव में व्यस्त रहे । “भले लोकतंत्र के प्रति जिम्मेदारी बड़े या न बड़े।” जब भी चुनाव में कोई उम्मीदवार अपना परचा भरे, चुनाव आयोग उसे पहले अंतरात्मा की आवाज़ सुनने के लिए शपथपत्र मांगें, “कि क्या उम्मीदवार ने अच्छे से अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन ली है?” जब भी कोई राजनीतिक दल अपना घोषणा पत्र जारी करें, उसमें अपने पुराने व मार्गदर्शक मंडल में बैठे नेताओं की अंतरात्मा की आवाज़ का स्पष्ट विवरण हो।


इस आवाज़ के बारे में मैं बचपन से सुनते आ रहा हूँ। लेकिन यह आवाज़ मुझे आज तक न अंदर से सुनाई न बाहर से ! हो सकता है इसलिए नहीं आई हो कि मैं किसी तरह के सरकारी विभाग में नहीं हूँ या फिर राजनीति के क्षेत्र में मैंने कोई रूचि नहीं ली। फिर भी इस आवाज़ का जादू मैंने कितनी ही बार देखा है। यदि इस तरह की आवाज़ में आप विश्वास करते हैं तो इसे सुने। अंतरात्मा की आवाज़ के गुणकारी प्रभाव को मद्देनज़र रखते हुए, संसद व सरकारी विभागों में एक अंतरात्मा कक्ष का भी निर्माण होना चाहिए। जिससे कि जब भी किसी को वर्तमानी कोलाहल में अंतरात्मा की आवाज़ सुनने में परेशानी हो, वह इस कक्ष का उपयोग कर सके। जिससे कि राष्ट्र फिर प्रगति व विकास की ओर अग्रसर हो।



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भूपेंद्र भारतीय

Sunday, February 7, 2021

आंदोलनजीवीयों के मन-मस्तिष्क का चक्काजाम हो जाना....!!

 


                       (हरिभूमि समाचार पत्र में प्रकाशित)


आंदोलनजीवीयों के मन-मस्तिष्क का चक्काजाम हो जाना...


लोकतंत्र के इतिहास में चक्का जाम करना आम बात रही है! पर चक्काजाम करते-करते अपना मन-मस्तिष्क जाम कर लेना भी अब कोई आश्चर्य की बात नहीं रही ! जब हर बात पर हटधर्मिता हो तो फिर जाम की ही नौबत आनी है। लेकिन इस अलोकतांत्रिक विरोध में फिर लोकतंत्र का डंडा भी अवरोध बनता है तो हर्ज कैसा ? क्योंकि जाम को खोलना भी तो लोकतंत्र का कर्तव्य है। इस मतिभ्रम से ग्रसित आंदोलनजीवी के आंदोलन में सड़क का जाम तो खुल भी जाता है पर मन-मस्तिष्क का जाम बड़ी मुश्किल से खुलता है। ओर न ही कोई चिकित्सक इस दिमागी जाम को खोल सकता है।


आंदोलनजीवीयों का मस्तिष्क जाम हुआ तो ऐसे ही नहीं हुआ। जब मुफ्त का माल भरपेट मिले तो फिर स्वभाविक है कि मन भी “माले मुफ्त दिले बेरहम” की कहावत के मार्ग पर चल पड़ता है। जिस चक्काजाम में मुफ्त में भरपेट काजू , बदाम व पिज्जा मिले उससे तो मन मस्तिष्क का जाम होना ही था। अब जब उनके तन-बदन में मुफ्त चक्काजाम लगा तो उनकी बुद्धि ऊपर-नीचे , आगे-पीछे से आग बरसाने लगी। इस आग में सड़क पर चलती-खड़ी गाड़ियां, सरकारी संपत्ति तो जली ही, पर साथ ही आंदोलन की आग भी ओर भभक गई। इसमें उनके अपने झंडे झुलसे अलग। ओर फिर क्या था ! इस आग में राजनीति की रोटी जमकर सेकीं गई। इस राजनीतिक रसोई में कितनों के ही हाथ भी जले ओर लोकतंत्र के स्तंभ पर एकबार फिर आँच आई। गनीमत है कि “खेत पर काम कर रहे किसानों ने इस आग में पानी फेर कर आखिरकार आंदोलनजीवीयों को ठंडा कर दिया।”


अबतक दो तीन बार इस आग को ठंडा किया जा चुका है। लेकिन यदि बुद्धि पर चक्काजाम लग जाए तो फिर कैसी बुद्धिमानी की बात ! उन्हें तो अपनी ही मन की बात माननी है। वे किसी के मन की बात नहीं सुनते हैं। वहीं जनता कितनी बार ही उन्हें मन से मतदान करके बता चुकी है कि अब आपके अच्छे दिन नहीं रहें। आपका सारा सामाजिक-राजनीतिक पुण्य स्वीस बैंक में सड़ रहा है। प्रभु अब आप हरिद्वार की ओर प्रस्थान करो। आपने बहुत विकास कर लिया ! अब आप लोकतांत्रिक तरीकों से खाते जिमते गठीया गये हो। आपके मस्तिष्क के सारे कलपुर्जे जाम हो गए हैं आप चक्काजाम के चक्कर में मती ही पड़ो। पर वे ठहरे ढीट। वे कहाँ मानने वाले थे। चक्काजाम करने के चक्कर में बुढापे में एक दो ओर अंगों को जाम कराकर ही मानेगें।


उनके मस्तिष्क पर सवार हुए इस चक्काजाम का जुनून यहां तक सर चढ़ा कि उन्होंने अपने ही घर के रास्ते अवरुद्ध कर लिये। चक्काजाम की खुशी में रात को उन्होंने खुब जाम छलकाए ओर अपने चेले चपाटों के साथ नगर को भी देर रात तक जमकर जाम किया। गलती उनकी नहीं है। यह फ्री की आदत का कमाल है। मुझे अब समझ आया कि सरकारें मुफ्त राशन व सरकारी छूट का कार्ड क्यों खेलती है। “उन्हें जनता के मन मस्तिष्क का आसानी से चक्काजाम करने का मार्ग मिल जाता है।” जिससे नेता हमेशा विकास का मार्ग बताते नहीं थकते ! जब “सरकार ने ही तुम्हारी बुद्धि पर मुफ्त की रेवड़ीयों से चक्काजाम लगा रखा है तो तुम क्यों थक रहे हो दिखावे के विरोध में ?


आखिर में उन्हें सिर्फ़ चक्काजाम करना था कर दिया ओर फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर पर जमकर चक्काजाम के फोटो-विडियों से सोशल मीडिया पर चक्काजाम करना था सो भी कर दिया। जिससे कि दिल्ली के उनके चचा यह सब देख सके ! वहीं अगले दिन भोर में ही अखबार बाँटने वाले के पास पहुंच गए अपनी बासी खबर देखने। लेकिन उनके जमाये जाजम का कोई नतीजा नहीं निकला। क्योंकि उनकी चक्काजाम बुद्धि को अबतक भी यह पता नहीं है कि मामला जज साहब के पास लंबित है ओर जिसके लिए चक्काजाम कर रहे हैं वह अपने खेत पर काम कर रहा है। ओर इन दोनों से ये बहुत दूर है। इनको चक्काजाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इनके विवेक का ही चक्का जाम है। अब इनसे विवेक की आशा कैसे करें ? मुफ्त का खाने से मन-मस्तिष्क पर चक्काजाम जो लग गया है..!!



#चक्काजाम  #आंदोलनजीवी

भूपेंद्र भारतीय







लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...