Sunday, September 26, 2021

श्रीमान का “मास्टर प्लान”....!!

 श्रीमान का “मास्टर प्लान”....!!

                   
                        जनवाणी में प्रकाशित 

श्रीमान के पास एक से बढ़कर एक “मास्टर प्लान” हैं। वे पीछले जन्म में नगर सभ्यता के बड़े कर्ताधर्ता रहे होगें ! हमारे नगर का कैसा भी विकास हो, उनके पास सभी विकास कार्यों के लिए स्मार्ट “मास्टर प्लान” हैं। मास्टर प्लान के क्रियान्वयन में नगर दसों दिशाओं से खुला रहता है। लगता है नगर कुछ ही दिनों में विकास की चरम सीमा पर पहुंचने वाला है। हर नगर ‛स्मार्ट सिटी' बनने ही वाला है। ऊपर से श्रीमान के सर पर विकास पुरूष का साफा पहले से ही बंधा हुआ है।

श्रीमान विकास पुरूष ऐसे ही नहीं बने है, उन्होंने पहले बड़े-बड़े मास्टर प्लान को अपने भागिरथी प्रयासों से इस पुण्य सलिला नगर सभ्यता में उतारा है। उसके बाद ही हमारे हर नगर में चारों ओर जल का जलजला हो रहा है। बच्चों के लिए इस मास्टर प्लान की बदौलत ही श्रीमान ने प्राकृतिक तरणताल बनाने का ऐतिहासिक कार्य किया हैं। जलमग्न नगर में बच्चे कागज की नाव चलाकर नगर भ्रमण का आनंद आसानी से व निशुल्क उठा रहे हैं। नगर में वाहनों की कम आवाजाही से ट्राफिक समस्या भी श्रीमान के मास्टर प्लान के कारण स्वतः ही समाप्त हो गई है।
                              


वर्षा जल का संरक्षण श्रीमान के मास्टर प्लान के कारण ही नगर में ही संरक्षित हो जाता है। “मजाल की बारिश का पानी नगर के बाहर निकल जाए !” भला जल प्रबंधन का ऐसा मास्टर स्ट्रोक दुनिया में कहीं ओर देखने को मिल सकता है ? मास्टर प्लान के कारण पूरा नगर पर्यटन की दृष्टि से दर्शनीय स्थल बन गया है। मुझे तो कभी कभी लगता है कि हमारे श्रीमान के इन मास्टर प्लानों के कारण हमारे नगर स्वर्ग के नगरों से भी अच्छे ही बनने वाले हैं। आखिर क्या कमी है नगर में ? चारों ओर बड़े बड़े ओवरब्रिज बनते जा रहे हैं। मॉल संस्कृति ने नगरीय सभ्यता में क्रांति ला दी है ! नगर के किसी भी व्यक्ति को पैदल चलने की जरूरत ही नहीं पड़ती हैं। एक गाड़ी में से उतरे तो दूसरी चढ़ने के लिए पहले से ही खड़ी है ! पैदल चले भी तो कैसे ? “कहीं मास्टर प्लान का काम न रूक जाए।”

श्रीमान का स्मार्ट मास्टर प्लान सरकार चलाने में भी बहुत काम आता है। राज्य सरकार मास्टर प्लान के लिए केन्द्र सरकार से उम्मीद रखती है। मंत्री जी मास्टर प्लान के लिए राज्य सरकार से उम्मीद रखते है। नगर का प्रथम नागरिक मास्टर प्लान के लिए मंत्री जी से उम्मीद रखता है। पार्षद-पति मास्टर प्लान के लिए नगर के प्रथम नागरिक से उम्मीद रखते हैं। वार्ड के युवा नेता मास्टर प्लान के लिए पार्षद-पति से उम्मीद रखते हैं ! “केंद्र से लेकर नगर वार्ड तक सब एक दूसरे से उम्मीद रखते हैं!” और ऐसे ही सरकार चलती रहती है। वहीं वार्ड की भली जनता श्रीमान के मास्टर प्लान से उम्मीद रखें है !

श्रीमान के मास्टर प्लान के कारण महानगर में भी जलक्रीड़ा आयोजन करने वालों की चाँदनी हो गई है। महानगर की मुख्य सड़कें जलमग्न है, पर नाव वालों की चाँदनी हो गई है ! श्रीमान रोजगार के लिए गजब का मास्टर स्ट्रोक लाये है। हो सकता है यातायात के कुछ ही दिनों में हवाई सेवाएं ही बचें। कोरोना के कारण बच्चों की पहले से मौज मस्ती थी और ऊपर से मास्टर प्लान के कारण विद्यालय की छुट्टियां ओर आगे बढ़ गई है। मास्टर प्लान के कारण नवनिर्मित जलमार्ग पर नगर के प्रेमी युगल नाव चलाते हुए जलक्रीड़ा का आनंद ले रहे हैं। श्रीमान के मास्टर प्लान ने महानगर सभ्यता में भी चार-चाँद लगा दिये हैं। अंत में श्रीमान के मास्टर प्लान के कारण ही पूरे देश के नगर-महानगर एक दिन “स्मार्ट सिटीमय्” हो जाऐगा !!


भूपेन्द्र भारतीय 
 

Friday, September 10, 2021

हिन्दी पखवाड़े में माड्साब....!!

 हिन्दी पखवाड़े में माड्साब....!!

     


               इंदौर समाचार में प्रकाशित ....
जैसे जैसे हिन्दी पखवाड़ा के दिन आते हैं माड़साब को लगता है कि हिन्दी के ‛अच्छे दिन’ आने ही वाले हैं। इसी उम्मीद पर हर वर्ष माड्साब हिन्दी पखवाड़ा मनाते हैं। वह अपने छात्र-छात्राओं को निर्देश देते हैं, “सुनो रे छोरा-छोरी, इन सप्ताह सब हिन्दी दिवस मनाएँगे ओर हिन्दी का विकास के लिए नयी नयी कहानी, कविता व निबंध लिखड़ा है। साथ ही साथ हम सब के ‛शुद्ध हिन्दी’ भाषा में ही अपने काम व बातचीत करना है।”

हिन्दी नवाचार के नाम पर जुनी से नयी हिन्दी के सभी साहित्यकारों के साहित्य की धूल झाड़ी जाती है। हिन्दी के सभी पत्र-पत्रिकाओं द्वारा हिन्दी नव-उत्थान के लिए कोरस में हिन्दी नव गीत गाये जाते है। कुछ हिन्दी प्रेमी हिंदी की चिंदी करते रहते हैं और कुछ हिन्दी के झंडाबदर इस पर ढोल पिटते रहते हैं कि बिंदी कहाँ लगानी है।

इस पखवाड़े भर ऐसा लगता है जैसे विश्व में हिन्दी अपने शिखर पर है, पर कोई ‛हरिश्चंद्र भारतेंदु’ नहीं जानता कि “हिन्दी भाषा” हमारी शिक्षा व शिक्षण व्यवस्था में कहाँ खड़ी है ? सरकार के सभी कार्यालयों को केंद्रीय गृह मंत्रालय उसकी कार्य भाषा ‛अंग्रेज़ी’ में निर्देश देता है कि सरकार के सभी विभाग ‛हिन्दी पखवाड़ा’ में हिन्दी भाषा में ही काम करेगें व पखवाड़ा धूमधाम से मनाया जाऐगा। “इसके लिए बजट की रेवड़ी सबको अलग से बटेगी।" भाषा पर बड़े-बड़े भाषण होते हैं। वही हिन्दी दिवस पर व्याख्यान माला में भाषा की स्थिति पर चर्चा कम और चाय-पानी की व्यवस्था पर अधिक बहस होती है।

माड़साब अपने विद्यालय में हिन्दी व राज भाषा ज्ञान पर प्रतियोगिता आयोजित करते हैं और मातृभाषा का मान बढ़ाते हैं। ऐसा उन्हें लगता है। ‛सरकार व माड्साब इस पखवाड़े भाषा के गुणगान करके अपने आप को गौरवान्वित समझते हैं।’

हर वर्ष जिस तरह से अन्य पर्व-वार-त्योहार मनाए जाते हैं, हिन्दी पखवाड़ा भी उसी तैयारी से धूमधाम से मनाया जाता रहा है। राष्ट्रीय एकीकरण की लुगदी लगाकर हर आम आदमी को हिन्दी का महत्व समझाया जाता है! लेकिन वहीं आम आदमी अब भी अपना बैंक खाता अंग्रेज़ी में ही फार्म भरकर खोलता है। भाषा की इस दुर्दशा पर हर आम हिन्दी प्रेमी का खून खौलता रहता है, लेकिन सरकार व हिन्दी अकादमियाँ समय समय पर इस आम हिन्दी भाषा प्रेमी की भावनाओं पर हिन्दी साहित्य की पुस्तकें प्रकाशित कर ठंडा पानी डालती रहती हैं !

हर वर्ष हिन्दी पखवाड़े पर माड़साब के मन में हिन्दी के लिए ‛छायावादी’ बादल छा जाते है। माड़साब इस पखवाड़े सरकार के सारे सरकारी काम-काज जैसे जनगणना, मतदाता सूची बनाना, स्वच्छता अभियान, महिला बाल विकास, टीकाकरण आदि काम छोड़कर हिन्दी के विकास में लग जाते हैं। जो माड़साब गाँव के विद्यालय में पढ़ाते हैं, वहाँ उनके छात्र विद्यालय में कम खेत-खलिहान पर ज्यादा मिलते हैं। जैसे तैसे माड़साब बच्चों को एकत्रित करके प्रतियोगिता सम्पन्न कराते है और हिन्दी भाषा की लाज रखते है।

माड़साब ने इस वर्ष हिन्दी दिवस अपने क्षेत्र के एक मूर्धन्य हिन्दी साहित्यकार को अतिथि के रूप में बुलाया। ये साहित्यकार अपने आप को कवि कहते हैं लेकिन पूरे समय आलोचक का काम करते हैं। जिस तरह से हिन्दी की कई छोटी-बड़ी मुँह बोली बहनें है, उसी तरह ये कविवर हिन्दी के मुंबइया टाईप भाई बने फिरते हैं। इनके जैसें कवियों की ही हिन्दी गुमटियां हर नगर में सरकार की सहायता से चलती रहती है। कवि महोदय ने हिन्दी दिवस पर अपनी ही लिखी चार कविताएँ बच्चों को सुना दी। फिर अंत में बोले, “छात्रों इस पखवाड़े बस इतना। अगले पखवाड़े फिर ‛नयी कविता’ के साथ आपसे मिलूँगा।“ माड़साब को भी समझ नहीं आया कि बच्चे कितनी कविता समझे। अंत में अतिथि महोदय का विद्यालय के ही एक अतिथि माड्साब ने “थैंक यू कहकर” आभार प्रकट कर पखवाड़े से विदाई दी।

प्रतियोगिता का परिणाम यह रहा कि ‛गाँव के लोगों को कई दिन बाद पता चला कि माड़साब जीवित है और गाँव में विद्यालय का भवन विद्या के लिए ही बना है जिसमें माड्साब सरकारी कार्यों से फुर्सत मिलते ही यदा कदा पढ़ाने भी आते हैं।’ उन पर इतनी जिम्मेदारी है कि उन्हें भाषा के साथ राष्ट्र का भी विकास करना है, लेकिन शासन के निर्देशों व चुनाव कार्यों से छुटकारा मिले तो पढ़ने-पढ़ाने का मूल कार्य करें।

खैर, प्रतियोगिता के अंत में माड़साब ने हिन्दी भाषा पर एक भावपूर्ण भाषण दिया। इसमें उनने अपनी हिन्दी कविता के माध्यम से सभी रसों व छंदों का घालमेल करके बच्चों को घनचक्कर कर दिया।


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

शांतिदूतों की दुनिया....!!

 शांतिदूतों की दुनिया....!!

    

                        हरिभूमि में प्रकाशित....

बर्तनों का क्या है बजते ही रहते हैं। इनके बजने से क्या हम विश्व शांति की बात करना छोड़ दें ? जब तक अपने ही घर से शांति की बात करना शुरू नहीं करेंगे तो फिर विश्व शांतिदूत कैसे कहलाऐगे! हम शांति की तख्तियां लेकर राजमार्ग पर निकल चुके हैं। हम किसी वाद-विवाद में अपनी मनोहारी शांतिलाल वाली छवि गवाना नहीं चाहते। राष्ट्रीय ही नहीं हमें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांतिवार्ताओं में शिरकत करना है। भला इन छोटे मोटे ठीकरों की ठें-ठें से हम विचलित होने वाले है ? हम बंदूक की गोली से नहीं, अपनी वाचाल बोली से विश्वशांति का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हमें कोई माई और न ही उसका कोई लाल अपनी शांतिप्रिय कार्यों के लिए नहीं रोक सकता है।

हम ऐसी भाषा के जानकार है जिससे बड़े-बड़े मंच एक झटके में जम सकते है। हमें टीवी बहसों में बतौर मुख्य वक्ता ऐसे ही नहीं बुलाया जाता है ! हमें शांति-वार्ता करने का लंबा अनुभव है। इसकी शुरुआत हमने सबसे पहले अपनी प्रेयसी से ही की थी। हमारी प्रेमिका ने ही हमें शांतिवार्ताओं का गुढ़ रहस्य बताया था और फिर हम उनकी वार्ताओं में नियमित शामिल होकर शांतिदूत कहलाने के सारे तौर-तरीके सीख गए। अब तो हम इस विधा में इतने कुशल हो गए है कि दो देशों के बीच शांतिवार्ता तो छोड़ो, हम दो धुरविरोधी पड़ोसियों के बीच शांतिवार्ता करा दे ! आजकल तो हमारी इस विधा का जलवा इतना है कि हम दो कट्टर विरोधी महिलाओं के बीच शांतिवार्ता सम्पन्न करा देते है। वो हम ही तो थे ! जिन्होंने शीतयुद्ध में भी शांति की मशालें थामें रखी थी। जिससे नये-नये देशों का निर्माण हुआ ! ‛गुटनिरपेक्षता’ नीति हमारे ही द्वारा तैयार किये गए पाठ्यक्रम का भाग रही है।

“गंगा-जमुना तहजीब” का पाठ हम ही तो अपनी कक्षाओं में सरपट पढ़ाते रहें है। हमने ही सर्वप्रथम हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा अपने पठ्ठो को दिया था और फिर हमारे पठ्ठो ने इस नारे के बदोलत ही चीन की दीवार पर मेरॉथन दौड़ लगाते शांतिदूतों का वैश्विक तमगा प्राप्त किया। हमारे पढ़ाये छात्र संयुक्त राष्ट्र में शांतिदूत बन गये। किसी भी विश्व मंच पर हमारे विश्वविद्यालय से निकले बुद्धिजीवी ही शांतिवार्ताओं की सर्वप्रथम पहल करते हैं। अब इससे ज्यादा अपनी विश्व शांतिप्रियता व वैश्विक छवि की बात कैसे करें !

हमने कितनी ही बार वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ विश्व साहित्य पर चर्चा में भाग लिया है। वैश्विक शिष्ठ मंडलों का प्रतिनिधित्व हमने ऐसे ही नहीं किया है। संसदीय दलों का नेता प्रतिनिधि बनकर हम विश्व के कितने ही देशों की यात्रा कर चुकें है। शांतिवार्ताओं में हुए खर्चों के हम आजतक किसी संस्था के दो रूपये के दगेलदार नहीं है। हम हर शांतिवार्ताओं की यात्राओं पर अपने ही खर्चें पर गए है। किसी सरकारी यात्रा का हम पर अबतक कोई प्रभाव नहीं रहा है ! हम विश्व शांतिदूत का पुण्य कार्य अपनी आत्मशांति के लिए करते है न कि किसी लालच के वशीभूत होकर। नारायण-नारायण करते शांतिदूत के रूप में हम कहीं भी पहुंच जाते है।

हर गाँव के ओटले पर बैठी हम पंच-परमेश्वरों की सभा शांतिदूतों का ही प्रतिनिधित्व करती है। हमारे ही कारण गाँव का हर काम शांति से सम्पन्न होता है। हम अपने गाँव में तो शांति बनाये रखते ही है, आस-पड़ोस के गांवों में भी शांतिदूत बनकर आते-जाते रहते हैं। हम ऐसे ही “लोकल से वोकल” तक अपने शांति के उत्पाद बेचते रहते है। हमारे ही शांतिदूतों के करकमलों से दुनिया में अमन-चैन फलता-फूलता रहता है। शहरों में भी हमने कई शांति के मठ खोल रखे है। इन शांतिमठों हमारे ही मठाधीश शांति से अलग-अलग शांति यज्ञ सम्पन्न करते रहते हैं। इन शांतिमठों में हमारे शांतिदूत नियमित शांति पाठ भी करते हैं। जिससे पूरे शहर का वातावरण शांतिमय बना रहता है।


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
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लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...