Tuesday, August 17, 2021

लो जी आ गए हम....!!

दैनिक जनवाणी

 लो जी आ गए हम....!! 


हाँ जी हम आ ही जाते है, जैसे किसी भी विवाह में फुफा-मौसा जी बीन बात पर बिगड़कर आते है ! वैसे ही हम हर बड़े आयोजन-उत्सव-त्यौहार पर आ ही जाते है। कभी किसी की जात पूछने या फिर किसी का धर्म पूछने, हम आ ही जाते है। किसको किस उत्सव या त्यौहार पर फटाके फोड़ना है और किसे नहीं फोड़ना है, किस तरह के कपड़े पहनना है आदि पर रायचंद बनकर हम आ ही जाते है। अच्छी भली दौड़ रही ज़िंदगी में हम खलल डालने आ ही जाते है। हमें आना ही पड़ता है क्योंकि हमें बगैर बुलाये आने की आदत है। 


हमें सड़क पर बेवजह आना अच्छा लगता है क्योंकि यह हमारा संवैधानिक अधिकार है ! हम ही तो वो जागरूक नागरिक हैं जो अपने संवैधानिक मौलिक अधिकारों को पूरी निष्ठा से उपयोग करते है। हमें ही सड़क जाम करके लोकतंत्र की रक्षा करते हैं। संसद में सभापति की ओर कागजों की गेंद बनाकर फेंकने वाले, वो भी हम ही होते है। क्योंकि हमें जनता संसद व विधानसभा में फेंका-फांकी करने ही तो चुनाव में चुनकर पहुंचाती है ! जनता हमें अपनी इसी सर्वकालिक प्रतिभा के कारण तो संसद में चुनकर भेजती है। हम ही है वो जो अपने क्षेत्र में जाने पर भी कहतें है कि “लो जी आ गए हम....!!” ‛हमारा स्वागत नहीं करोगें ?’ हमें सबसे ज्यादा राजनीतिक क्षेत्र में बगैर बुलाएं घुसना अच्छा लगता है।


हम ही है वे आदर्श मेहमान होते है जो किसी की भी रसोई में घुसकर अपनी चतुर बुद्धि से हर भोजन में मीनमेख निकाल सकते है। हमें यह बताना भी अच्छा लगता है कि किसे क्या खाना चाहिए और किसे क्या नहीं ! हमारे ही कारण कहीं पर भी पहुंच जाने से वहां के माहौल में खलबली मच जाती है। हमनें ही अपने राष्ट्र में संसद से सड़क तक वादों की झड़ी लगा रखी है। हम जहां भी पहुंच जाते है “लाईन वहीं से शुरू हो जाती हैं।” हम ही हर सभा में सबपर भारी पड़ते है ! सरकारी संस्थाओं व कार्यालयों में हम ही सबसे पहले पहुंचते हैं। सरकारी योजनाओं पर सर्वप्रथम हमारा ही अधिकार होता है ! 

       


अपना पड़ोसी हो या फिर हमारे देश का पड़ोसी, हमारे आने-जाने से ही तो आपसी संबंधों में ‛गर्माहट’ बनी रहती है। लेकिन जब हम अपने ही घर पहुंकर कहते है कि ‛लो जी आ गए हम !’ तो घर वाले कहते है ‛कोई अहसान नहीं किया है !’ “पहले अपने जूते बाहर उतारों व हाथ-पांव साफकर अंदर आना !” कहाँ तो हमारे आने-जाने से दुनियाभर में मान-सम्मान है लेकिन अपने ही घर में हमें “घुसपैठिये” कहा जाता है। इसी पीड़ा के कारण हम बहुत बार रूठकर विदेश चले जाते है। आखिर हमें वहां भी तो अपनी “लो जी आ गए हम” वाली प्रतिभा दिखाना होती है। 


आजकल हम सोशल मीडिया पर भी छाती चौड़ी करके कहते है, “लो जी आ गए हम !" हमने वाट्सएप विश्वविद्यालय के माध्यम से इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया है कि हम हर विषय पर धाराप्रवाह बोल सकते है। हमने कॉपी-पेस्ट करना इतना अच्छे से सीख लिया है कि हम घर बैठे-बैठे ही चार-पांच पीएचडी वालों जितना ज्ञान बांट सकते है। वे हम ही है जो हर सोशल मीडिया मंच की बहस में लाईक-कमेंट से ही अपनी विद्वता सिद्ध करते है। हमारे ही मार्गदर्शन में हर क्षेत्र में पुरस्कार बांटे जाते है। और फिर हम ही होते है जो पुरस्कार वापसी अभियान चलाते हैं। हम जब लंबा कुर्ता पहनकर कला के मंच पर चढ़ते है तो अच्छे-अच्छे कलाकार रास्ता नाप लेते है। कला व साहित्य के मंचों पर भी हमारी ही जागीरी चलती है। कुल मिलाकर हम कहीं भी जाए हमें कभी नहीं कहना पड़ता है कि “लो जी आ गए हम....!!" हमें सब जानते-पहचानते हैं।


भूपेन्द्र भारतीय 

९९२६४७६४१०

Sunday, August 1, 2021

समाचार में सक्रिय माननीय....!!

 समाचार में सक्रिय माननीय....!!

दैनिक जनवाणी में प्रकाशित....



आम आदमी की शिकायत रहती है कि नेता कुछ नहीं करते है। लेकिन उनकी दिनचर्या देख व पढ़कर लगता है कि दुनिया में सबसे व्यस्ततम् यदि कोई है तो यही माननीय ‛जन-गण-मन’ है। कैसे-कैसे चमत्कारिक रूप है इनके ! क्या तो अफलातूनी दिनचर्या रहती है ! और इनके साथी ! इनके पीछे अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। अखबारों व मीडिया में भी इनकी खबरें बड़े चाव से छपती व पढ़ी जाती हैं। इनके समाचारों के शीर्षक एक बार पढ़ना शुरू करो तो रूक ही नहीं सकते....!!

आज माननीय ने दिनभर फोटू खिचाओं प्रतियोगिता में भाग लिया ! प्रभारी मंत्री जी का हार-फूल से स्वागत हुआ। चार पांच शोकाकुल परिवारों के घर जाकर संवेदना व्यक्त कर ढांढस बंधाया। चुनावी क्षेत्र में तीन स्कूलों में पौधारोपण किया। कई दिनों से इंतजार कर रहे ग्रामीणों से मिले प्रभारी मंत्री, जमकर लगे नारे ! बापड़े दिनभर क्षेत्र में धूल खाते रहे। शाम तक मंत्रीजी की कार पर एक कुंटल फुल मालाएं सवार हो गई !

एक नया-नया शीर्षक था, “हमारे दल में आए हो तो पार्टी का चाल-चलन व रिवाज अपनाना पड़ेगा”- एक बड़ी राजनैत्री ने दलबदलू नेता से कहा। अगले पृष्ठ पर कुछ ओर पंक्तियां थी... ‛विधानसभावार समस्या समाधान शिविर आयोजित करते रहें !’ एक क्षेत्रीय कद्दावर कार्यकर्ता के यहां एक बेशरम का व एक बांस का पौधा लगाया।
आज के दिन हाईवे से सटी गरीब बस्ती में नंगे-पुंग्गे बच्चों को चड्ढी-बनियान का वितरण किया।
चुनावी क्षेत्र में ग्रामीणों की समस्याएं अनसुनी कर, बहुत से कपड़े बांटे ! क्षेत्र के दौरे पर निकले जनप्रतिनिधि बाढ़ में फंसे, “आम जनता ने चार-पाई के सहारे राजधानी पहुंचाया !”

प्रभारी मंत्री ने दिनभर सैकड़ों समस्याओं से संबंधित ज्ञापन लियें और निजी सचिव को दे दिये। शाम तक सचिव ने आवेदनों को कुड़ादान को समर्पित कर दियें।
“पद और दायित्व बदलते रहते हैं, लेकिन कार्यकर्ता नींव का पत्थर होते है” :- एक तेजस्वी माननीय ने मंच पर भाषण के दौरान यह चमत्कारी वक्तव्य उछाला !

किसी समाचार पत्र में छपता है, ‛रिमझिम फुहारों के बीच क्षेत्र में दिनभर खुली जिप्सी में डमते रहे मुख्यमंत्री !’ “विपक्ष आरक्षण की राजनीति कर रहा है” :- सामाजिक विकास मंत्री ने कहा।
एक दिन में सुबह-दोपहर-शाम को मिलाकर तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को महामहिम राज्यपाल ने दिलाई शपथ।
मानसून सत्र के सातवें दिन भी विपक्षी दलों का दोनों सदनों में जोरदार हंगामा। सरकार ने कहा, विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं। सत्ता पक्ष कह रहा है, “चर्चा से क्यों भाग रहा विपक्ष ?"
वहीं एक राष्ट्रीय अखबार का शीर्षक, “ठहरी हुई संसद और जनता की साँसें फुल रही !”
संपादकीय पृष्ठ पर संपादक के मन की बात:- ‛दो घंटे की “मन की बात” में पीएम ने पांच हजार शब्दों में जन की बात की ! श्रोता सुनकर अभिभूत हुए।’

सदन में गूंजा ‛खेला होबे’, विपक्षी सदस्यों ने खेल-खेल में आसंदी पर फेंके कागज। सदन की कार्यवाही जरूरी कागजों के फाड़ने से रूकी। सदन की मर्यादा भूले सांसद, स्पीकर की ओर फेंके पर्चे...! ‛संसद में तनातनी आर-पार की ओर बढ़ी !’
अगले पृष्ठ पर बड़ा सा शीर्षक:- एक बड़े नेता ने कहा, “जासूसी, महंगाई और किसानों पर समझौता नहीं ! वहीं पृष्ठ के बुंदे में छपता है, “दल के ई-चिंतन में दल के बड़े नेता का कार्यकर्ताओं ने उद्बोधन सुना।" आखिर में आता है, ‛सभी क्षेत्रीय दलों पर भरोसा करें राष्ट्रीय दल, रचेंगे इतिहास:- एक राज्य स्तरीय राजनैत्री का बयान !’

अब जब इस तरह के आश्चर्यजनक समाचार शीर्षक पढ़ने-देखते में आते है तो लगता ही नहीं, कि हमारे माननीय कुछ काम नहीं करते है ! वे तो हर शीर्षक में भी कितनी सक्रियता से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते है....!!


भूपेन्द्र भारतीय 

लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...