शब्दों की दुनिया से आगे....
अक्सर हमारे साथ ऐसी स्थितियां आती हैं जब हम प्राकृतिक दृश्य या फिर मानव भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकते। ऐसे पल मुझे बहुत बार प्रिय व मन को सुखद लगते हैं। क्योंकि कभी-कभी किसी बात को हम शब्दों के माध्यम से व्यक्त करके उस बात या भावना को सीमित कर देते हैं। शब्द बहुत सी अभिव्यक्तियों में छोटे लगते हैं। शब्दों से उस पल या दृश्य को पूर्णता नहीं मिल पाती है। उसे हमे सिर्फ़ महसूस करना चाहिए। उस पल को देखकर सिर्फ़ आनंद ही लेना चाहिए। हम बहुत बार बुद्धि का ज्यादा उपयोग करते है, जबकि अधिकांश मामलों में हृदय से ही काम चल जाता है। जहां मौन से काम चल रहा है वहां शब्द शक्ति क्यों खर्च करें ।
उदाहरण के लिए बात करें तो, बहुत बार हम एकदम से प्रकृति का कोई सुंदर दृश्य देखते हैं और भावविभोर हो जाते हैं। लेकिन उस दृश्य को शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर पाते। कभी कभी ऐसा नहीं भी करना चाहिए। क्योंकि उस दृश्य के सौंदर्य का वास्तविक आनंद उसे धैर्यपूर्वक देखने में ही निहित है। वहीं उस समय जब हमें दिल से काम लेना होता है वहां हम दिमाग(बुद्धि) को दौड़ाने की कोशिश करते है और उस सुंदर व सुखद पल के असली आनंद लेने से हम वंचित हो जाते है। हमारा मन-मस्तिष्क हमसे तर्क करने लगता है, जो कि हर परिस्थिति में सही नहीं होता है।
एक बच्चे की मधुर मुस्कान को परिभाषित करने के लिए शब्दों में ढ़ुंढ़ना मुश्किल है, उसी तरह कोई सुंदर फूल बगिया में खिला है तो उसे देखकर ही ज्यादा आनंद लिया जा सकता है, न की बुद्धि बल का उपयोग कर उसे शब्दों की सीमाओं में बांधने से। कोई अच्छी कविता, कहानी, पुस्तक, अच्छे व्यंजन का स्वाद, अपने गाँव बहुत दिन बाद जाना, दादा-दादी की बातें सुनना, अपने खेत की मेढ़ पर धीमे-धीमे टहलना, अपनी प्रिय स्मृतियों में खो जाना आदि स्तिथियों को बताने के लिए जरुरी नहीं है कि शब्द मिले ही, इन्हें अनुभव करके ही इनका महत्व समझा जाता है। वहीं जहां सहजता में शब्दों के माध्यम से बात कहीं जा सके, वहां कहना भी चाहिए। लेकिन जहां शब्द की सीमा व क्षमता समाप्त हो जाए, वहां से मौन व मधुर मुस्कान के माध्यम से ही अपनी बात अच्छे से अभिव्यक्त की जा सकती है।
यह निर्विवाद है कि शब्द की शक्ति बहुत बड़ी व अद्भुत है। पर फिर भी जब यह शक्ति हमारे पास पर्याप्त मात्रा में नहीं है या फिर इस शक्ति की आवश्यकता हर स्थिति में नहीं है तो फिर हम हर पल व बात को शब्दों के माध्यम से ही परिभाषित व कहने की क्यों कोशिश करें ? हम उसे सिर्फ़ दिल से समझ भी सकते है। आंखों व चहरे के आव-भाव से भी व्यक्त कर सकते है। शांत व धैर्यपूर्वक भी बात को समझा व समझ सकते है। क्योंकि प्रकृति व जीवन के हर दृश्य व भाव को शब्दों के माध्यम से समझना व समझाना मानव शक्ति के बहुत बार बाहर होता है। और जब हम यह कोशिश हर एक भावना व पल को व्यक्त करने में लगाते हैं तो उस भाव के वास्तविक सौंदर्य से छेड़छाड़ ही करते हैं। उसमें सफल होना मुश्किल ही होता है। ध्यान व योग के माध्यम से इस विषय में हमारे शास्त्रों में बहुत विस्तार से बताया गया है।
हम सहजता में जीवन को देखने की दृष्टि उत्पन्न करें। यह जरूरी नहीं है कि हर स्थिति के लिए शब्द जाल में उलझते रहे। अपनी बात को मौन भावों व कला के माध्यम से भी प्रेषित किया जा सकता है। वर्तमान में जिस तरह से सोशल मीडिया पर होड़ मची है कि हर बात को दुनिया को सोशल मीडिया पर उढेल कर दिखाना व फोटो-विडियों के द्वारा परोसा जा रहा है, उससे उस पल व स्थिति के सौंदर्य में कमी ही आती है। इससे उस बात में वजन भी कम ही होता है। अच्छा है कि जो भी हम सुखद व सुंदर अनुभव कर रहे है, उसे आभासी दुनिया के कचरें में हल्के व निर्थक शब्दों के माध्यम से डालने से बचें। क्योंकि कुछ ऐसा भी बचा रहना चाहिए जिसे हम उसे अपने हृदय की अंतरंग गहराई से ही महसूस कर सकें। जिससे उस पल शब्द मौन धारण करें व हृदय सबकुछ धीमे धीमे समझता रहे।
भूपेन्द्र भारतीय
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com