चित्र गूगल से साभार...
दानवीर कर्ण ने सबकुछ लुटा दिया अपने दानवीर गुण के कारण, शायद उससे भी बड़ी वीरता मधुशाला वीरो ने दिखाई है कि उन्होने अबतक की दोनों कोरोना लहर में मधुरस जिसे सनातन काल से सोमरस के नाम से जाना जाता है ! जिसे वर्तमान में मानक भाषा के गिरते स्तर के कारण इसे कुछ पियक्कड़ लोग शराब या दारू जैसे हल्के नाम से जानते है। ऐसे पवित्र रस का एक बार भी रसरंजन नहीं किया ! यह कहना सरकारी व्यवस्था व गिरते-उठते सामाजिक चरित्र पर शंका करना होगा।
इन महान मदिरा-मर्दो ने मद्यपान इतिहास के क्षेत्र में खलबली मचा दी हैं, वहीं सरकार भी बेसब्री से इन वीरो की तृष्णा को देखकर अपनी दयालुता दिखाने में बड़ी देर से आई, ऐसा सरकार को अब भान हुआ है ! उचित मूल्य की दुकान, अंग्रेजी-देशी माध्यम की दुकान से प्रगति करते हुए, सरकार अब आनलाइन शराब बिक्री योजना पर पहुंच चुकी। इस महामारी में भी सरकार के गहन चिंतन वाले इस मास्टर स्ट्रोक से “अद्भुत सामाजिक उद्धार नीति निकल कर आई है ।” भले बड़ी दरों के साथ आई पर लगता है दुरस्त आई !
जहाँ दुनियाभर के आम आदमी एक अदृश्य विषाणु से बचकर घरों में बैठे हो ओर रूखी सूखी खाकर काम चला रहे हैं । वही इतिहास में यह भी स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया है कि मधुशाला वीर बगैर पीए जिये है ! जिस दिन से तालाबंदीयां हुई हैं, ‛सबसे ज्यादा चर्चा आम आदमी की जान की नहीं, अर्थव्यवस्था के प्राण की हो रही हैं।’ सरकार को अब कही जाकर अज्ञात सूत्रों से पता चला है कि अर्थव्यवस्था की चाल सिर्फ़ मधुशाला की ओर अग्रसर हो कर बढ़ सकती है ! “पीने-पीलाने से पनपेंगी अर्थव्यवस्था !” शायद यही है सरकार का मास्टर स्ट्रोक !
जबतक दुनिया की किसी भी गंभीर समस्या की चर्चा मधुशाला में बैठकर नहीं होती, तब तक उस समस्या का कोई समाधान और उसका कोई ओर-छोर नहीं मिल सकता हैं। इसलिए देर आए दुरूस्त आए कहावत पर अब खरा उतरते हुए, मधु-वीरो को नमन करना चाहिए। तथा ज्यादा पीने वालो को क्वारेंटाईन करके हर एक बैवड़े को अंग्रेज़ी-भाषा का एक-एक क्वाटर अतिरिक्त में मुफ्त में देना चाहिए। जिससे वे अपनी भाषा के माध्यम से विषाणु के विरुद्ध ऐंटीबॉडी बना सके। साथ में नामचीन साहित्यकारो की आनलाईन काव्य गोष्ठी का आयोजन हो। चुनौती पेश की जाए कि मधुशाला जैसे कविता संग्रह से भी बढ़-चढ़कर नये-नये काव्य संग्रह की रचनाओं का सजृन हो ! मधुशाला वारियर्स को काव्यांजलि अर्पित की जाए। इनके इस अभूतपूर्व योगदान के लिए सरकार “मद्दश्री जैसे पुरस्कार” की घोषणा भी सरकार शीघ्रता से करें।
सरकारी राजस्व की भी कुंजी मधुशाला के आबकारी कार्यालय से ही होकर खजाने की ओर जाती है, जिसे हम राजस्व कहते हैं वह वास्तव में मद्य पान करने वाले वीरो का ही आर्थिक बलिदान है। जिसे कोई भी अर्थव्यवस्था नकार नहीं सकती ! भले ही फिर वह पूँजीवाद, समाजवाद, मार्क्सवाद, गांधीवाद आदि कैसी भी व्यवस्था हो।
प्राचीन काल से लेकर कोराना काल तक ,स्वर्ग से लेकर पाताल तक अलग अलग रूपो-रंगों में वीर शिरोमणि मधु नरेश मद्य धारक रसरंजन कर्ता इतिहास ओर इस मानव जाति के सदा-सदा भाग्य निर्धारक व कल्याण करता रहे हैं !
अब जब कि सरकार ने बगैर कोरोना से डरे ओर मानवता को दाव पर लगाते हुए, अपने इन मद्य वारियर्स का उचित समय पर सम्मान ओर मधुशाला को पुनः खोलने का मन बना लिया है ! तो आम आदमी की जिम्मेदारी बन जाती हैं कि अपने-अपने राशन व प्राणवायु में से कटौती करते हुए, इन मधुशाला प्रेमियों के लिए अपनी-अपनी छत और बालकनी से चखना व खार-मंजन भी बरसाना चाहिए तथा देश की प्रगति में इनके इस महा-त्याग को देखकर बरसाना की होली में बरसाते रंगों की तरह अपने अपने घरों से नीर बरसाना चाहिए। जिससे ये मद्य नरेश हम सब के लिए कोरोना विषाणुओं की कोई अन्य लहर आने से पहले उसे अपनी पवित्र व ओजस्वी वाणी से आसानी से घर के बाहर ही सदा सदा के लिए सेनेटाईज कर दे। “तो हे मधुशाला वीरो ! अब एंटीबॉडी बनाने की तुम्हारी बारी....!!”
©भूपेन्द्र भारतीय