Saturday, July 16, 2022

माननीयों की टिप्पणी व मेरी भैंस....!!

 माननीयों की टिप्पणी व मेरी भैंस....!!



                    

                        इंदौर समाचार में.....

मुझे हमेशा यह भय रहता है कि माननीयों की किसी गैर-न्यायिक टिप्पणी से मेरी भैंस भड़क ना जाए। मेरी भैंस को भले कोई भी कैसा भी डंडा मार दे, मैं कभी यह नहीं कहता कि “मेरी भैंस को डंडा किसने मारा !" और ना ही मेरी भैंस को डंडा खाने से कुछ होता है। उसकी चमड़ी मोटी जो है। हाँ वह डंडा खाने से दूध पतला या फिर ना भी दे। आखिर इससे मुझे जरूर भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। जो कि माननीयों की आवारा टिप्पणियों के कारण होता है। ऐसी ही टिप्पणियों के कारण इन दिनों कई भैंस के खूँटों का माहौल गर्म हैं। वहीं मेरी आर्थिक वृद्धि रूकी हुई है।

जब भी खूँटों की बात आती है, माननीयों की टिप्पणियां आना शुरू हो जाती हैं। कौन किस खूँटे से बँधा है इन दिनों बुद्धिजीवी वर्ग में इस बात ने गंभीर चर्चा का रूप धारण कर लिया है। वहीं मुझे मेरी भैंस की चिंता है। वह स्वतः संज्ञान लेकर कहीं नाराज हो गई तो मेरे घर के वरिष्ठ नेता नाराज हो जाऐंगे। वैसे तो मेरी भैंस बड़ी शांत प्रवृत्ति की है। लेकिन जब भी कोई माननीय अपने वातानुकूलित कमरे में बैठकर बेवजह कोई टिका-टिप्पणी करते है तो वह आहत ही नहीं नाराज होकर अपने खूँटे को उखाड़ते हुए कूदाफांदी करने लगती हैं। आखिर मेरी भैंस की भी भावना है। उसे भी आहत होने का संवैधानिक अधिकार है। वह भी ट्वीट कर सकती है।आखिर वह भी इस सहिष्णु समाज को दूध व गोबर देती है। उसे भी अभिव्यक्ति का अधिकार है। उसे भी रेंकने का मौलिक अधिकार है। फिर “इस समाज को क्या अधिकार है कि वह मेरी भैंस की भावनाएं व उसके खूँटे से खिलवाड़ करें !”

माननीयों को समझना चाहिए कि इंटरनेट के इस युग में सबको सबकुछ पता चल जाता है। अब किसी भी तरह की टिप्पणी करने से पहले हजार बार सोचना चाहिए।तथ्यों को पहले से देख लेना चाहिए। ऐसी वैसी टिप्पणी से कौनसी भैंस कब किस खूँटे से उछल-कूद कर दे, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्या माननीय चाय नहीं पीते ! जो उन्हें भैंसों की भावनाओं का ध्यान नहीं रहा। और माननीय भले चाय नहीं पीते हो, लेकिन मैं तो चाय पीता हूँ। उन्हें मेरे चाय-पानी को प्रभावित करने का किसने अधिकार दिया ?
मेरी भैंस किसी भी टिप्पणी से बहुत जल्दी भड़क जाती है। और वह जैसे ही भड़कती है। अपने खूँटे समेत कूद जाती है। अब एक बार मेरी भैंस कूद गई तो फिर उसे खूँटे पर लाना मुश्किल होता है। वह फिर समय पर ना तो दूध देती हैं और ना ही खूँटे पर गोबर। अब मेरी इस गंभीर समस्या को माननीय कैसे समझेंगे ? माननीयों को इस राष्ट्रीय चुनौती व क्षति से कौन अवगत कराये। इसके लिए उनके सामने कौन जनहित याचिका लगाऐगा ? मेरी भैंस की भावनाओं को क्षति पहुंचाने व मेरी भैंस के दूध का नुकसान पहुंचाने के लिए माननीय क्षतिपूर्ति का प्रबंध कैसे व कहाँ से करेंगे ?

आगे से यही उचित रहेंगा कि माननीयों को सोच समझकर व परिस्थितियों को देख-परखकर ही किसी भी तरह की वैधानिक टिप्पणी करना चाहिए। वैसे टिप्पणी करने का काम तो स्वतंत्र लेखकों का रहता है। ना जाने कब से माननीयों को यह लत लग गई है ! उन्हें भैंसों की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें एक बार जरूर भैंस संहिता का अध्ययन करना चाहिए। भैंसे वैसे भी स्वभाव से गर्म होती हैं। उनके दूध में व्यापारी इसलिए ही पानी मिलाते हैं कि उन्हें पानी में रहना पसंद है। ऐसे गर्म माहौल में माननीयों की टिप्पणी उनकी भावनाओं को ओर भड़का सकती हैं। लोकतांत्रिक बाड़े में हर भैंस-भैंसे का अपना संवैधानिक अधिकार है। बाड़े में वातानुकूलित माहौल नहीं रहता है लेकिन माननीयों के कक्ष वातानुकूलित होते हैं। उन्हें ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए। उनकी टिप्पणी से किसी भी बाड़े में कभी भी बात का बतंगड़ बन सकता है। कोई भी भैंस कब भी भड़क सकती हैं। वे आपस में भीड़ सकती हैं। कभी भी खूँटा उखाड़कर बाहर का माहौल खराब कर सकती हैं। भीड़ में गलती से भी कोई भैंसा यदि निकल गया तो फिर बड़ी क्षति हो सकती हैं। इसलिए माननीयों को अपनी टिप्पणियों पर नियत्रंण रखना चाहिए। क्योंकि भीड़ का विवेक नहीं होता। पर साहित्यिक बुद्धिजीवीयों का ऐसा मानना है कि माननीय विवेकशील होते हैं ! उन्हें अपने विवेक का उपयोग करते हुए किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

आखिर में मेरा माननीयों से विशेष निवेदन है कि वे मेरी भैंस की भावनाओं का विशेष ध्यान रखें। क्योंकि वह एक बार भड़क गई तो फिर मेरा चाय-पानी बंद हो जाता हैं। किसी भी अनुचित टिप्पणी सुनने पर उसे भी स्वतः संज्ञान लेकर कूदने-फांदने की आदत है। वहीं माननीयों की टिप्पणी सुनते ही वह लात भी मार सकती हैं। उसकी लातें बड़ी जोर की लगती हैं। मेरी भैंस फिर ना भड़के इसलिए माननीयों को ऐसी भड़काऊ टिप्पणियों से बचना चाहिए....!!



भूपेन्द्र भारतीय 
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