Saturday, November 19, 2022

आम आदमी बनने की वंदनीय यात्रा....!!

 आम आदमी बनने की वंदनीय यात्रा....!!

       



आखिरकार लंबी उठापटक के बाद प्रशासनिक शल्यचिकित्सा हो ही गई। होना ही थी, वे एक क्षेत्र में सेवा कर-करके थक जो चुके थे। वे जब भी कही सेवा में होते हैं, उस क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देते हैं। सौ-छल मीडिया से दौरे पर दौर करते हैं। वे यह गंगा अपने कार्यालय में बैठकर ही पूरे क्षेत्र में बहाते हैं। सरकार का इंधन जो इससे बचता है। ऐसे ही इन दिनों वे सौछल मीडिया से सेवा की गंगा बहा रहे हैं।
उनका जब भी एक क्षेत्र से दूसरे में स्थानांतरण होता है, उस क्षेत्र में स्वागत, वंदन, अभिनंदन...की होड़ लग जाती हैं। उनकी सेवा का फल बटता है। उनका नये क्षेत्र में जाने पर भी स्वागत होता है और उस क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर भी उनका वंदन-अभिनंदन किया जाता है। उनका एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने-आने दोनों में उनके गाजेबाजे है। वे जनता के सेवक जो ठहरे !

कभी कभी तो लगता है कि वे जीवनभर इतनी सेवा करते हैं लेकिन फिर उनके क्षेत्र में विकास दिखता ही नहीं ! वे जहां भी नई पदस्थापना पर जाते हैं वहां विकास की पूरी उम्मीद होती है लेकिन उनके जाने तक विकास दिखता ही नहीं। लगता यह विकास ही बिगड़ा हुआ है। सुधरना ही नहीं चाहता। इस विकास के लिए कोई कितनी ही मेहनत करें, यह कमबख्त जनता में टिकता ही नहीं। फिर भी जनता उनके आने-जाने दोनों समय पर स्वागत-वंदन करती हैं। क्षेत्र में आने पर पुष्प माला-जाने पर पुष्प माला । उनके आने पर भी क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ती है और उनके जाने पर भी खुशी की लहर..! वे कितने महान जन सेवक हैं। कोई इतना बड़ा सेवक कैसे हो सकता है !

वैसे उन्हें यह सेवा के दौरान बार-बार आना-जाना पसंद नहीं है। यह उनकी सेवा साधना में हर बार बाधा पहुंचाता है। वे हर सरकार की तबादला नीति के आलोचक रहे हैं। इस विषय पर कोई उनसे राय भी नहीं लेता। वे राय देने में एक्पर्ट है। पर सरकार है कि उनकी सुनती ही नहीं। वे जब भी दृणता से मन बनाकर क्षेत्र व जनता की सेवा करने पर उतारू होते हैं सरकार उनका तबादला कर देती हैं। वे फिर नये स्थान पर वंदनीय हो जाते हैं। एक बार फिर स्वागत-वंदन की बेला आ जाती हैं। वे इन सब से अभिभूत हो जाते हैं। इससे उनके शरीर में जनसेवा का करंट दौड़ता है। उनके अगले क्षेत्र में फिर विकास की उम्मीद जागनी शुरू हो जाती हैं ! उन्हें हर पदस्थापना पर विकास नजर आता है लेकिन क्षेत्र की समस्याओं की अधिकता के कारण यह सबको नजर नहीं आता।

फिर भी वे हर बार नई उम्मीद व विश्वास के भरोसे कार्यभार ग्रहण करते ही है। जनसेवा के इस भार ने उनके कंधों को बहुत क्षति पहुंचाई है। वे झुककर घुटनों तक आ गए हैं। लेकिन उन्होंने विकास की प्रतिज्ञा नहीं छोड़ी है। प्रत्येक नये क्षेत्र में स्वागत-वंदन-अभिनंदन से उनके शरीर व आत्मा में जनकल्याण का लोकतांत्रिक विस्फोट होता है और वे उस क्षेत्र में फिर विकास की गंगा बहाने लगते हैं। राजधानी में फिर उनके नाम के चर्चे होते हैं। उन्हें राजधानी में सम्मान के लिए बुलाया जाता है। वहां भी गाजेबाजे के साथ उनका स्वागत, वंदन, अभिनंदन... होता है। उनका राजधानी में पहुंचना क्षेत्र के लिए शुभ माना जाता है।
एक दिन वे हमेशा के लिए राजधानी में स्थापित कर दिये जाते हैं। उनके लिए राजधानी में एक निश्चित लोकतांत्रिक मठ बना दिया जाता है। वे उस मठ में खुशी से जनसेवा की जुगाली करते हैं। अब राजधानी में ही उनका वंदन-अभिनंदन समय-समय पर होता रहता है। कभी-कभी राजधानी के मठ में बैठे-बैठे वे क्षेत्र के स्वागत-वंदन-अभिनंदन समारोहों की सुखद स्मृतियों की कमी जरूर अनुभव करते हैं।
आगे चलकर धीरे-धीरे राजधानी के ये मठ उन्हें खाने दौड़ते हैं। उनका इन मठों से मौह भंग हो जाता है। वे इनसे परेशान हो जाते हैं। उनका मन राजधानी में नहीं लगता। वे राजधानी से भागना चाहते हैं। उन्हें अपने क्षेत्रीय जनसेवा के अच्छे दिन याद आते हैं। वे फिर नये क्षेत्र की ओर प्रस्थान करते हैं। इस बार वे एक निश्चित क्षेत्र के स्थायी निवासी बन जाते हैं। अपने जीवन के कन्याकुमारी पड़ाव पर वे जनसेवा के लिए नहीं, अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए आम आदमी बन जाते हैं....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Sunday, November 6, 2022

“सर्वर डाउन” पर लचकलाल व मेरी बातचीत....!!

 “सर्वर डाउन” पर लचकलाल व मेरी बातचीत....!!


  



ऊँचा-नीचा होना प्रकृति के प्रमुख लक्षणों में है। यह अब तक जीवों में ही था। लेकिन अब यह सेवा क्षेत्र में ज्यादा पाया जाता है। कोई चीज ऊँची जाऐगी तो उसका नीचे भी आना जरूरी है। ओर वह आऐगी ही। जो ऊपर लटका है वह नीचे भी गिरेगा ही। यह हमें न्यूटन बाबा से पहले वाले बाबा बता गए हैं। ‛अप-डाउन जीवन का नियम है। लेकिन वर्तमान में “सर्वर डाउन होना” नया नियम हो गया है।

आप सोच रहेंगे होगे, ‛यह ऊपर-नीचे की ओर जाना कौनसा नया दर्शन है ?’ यह तो सबको पता है। यह सब तो प्रतिदिन हर व्यक्ति के जीवन में चलता रहता है और चलता रहेगा। आप सही सोच रहे हैं। मैं भी मानता हूं, सही भी है। मैं आपकी भावना समझ रहा हूँ। बस इसमें मैं इतना ही जोड़ना चाहता हूँ कि ऊँचा-नीचा होना, उठना-गिरना, चढ़ना-उतरना आदि मानवीय व मशीनी क्रियाओं में अब “सर्वर डाउन होना” भी जोड़ा जाना चाहिए। पिछले एक दशक से यह मेरे दैनिक जीवन में अक्सर होता आ रहा है। मैं जानता हूँ कि आपके जीवन में भी यह हो रहा है। आप भी कभी इसका आनंद उठाते हैं और कभी इसके दुखानंद में उठट-बैठक करते रहते हैं।

वैसे यह “सर्वर डाउन होना” क्या होता है, इसे समझना इतना भी आसान नहीं है। इसको समझने के लिए सरकारी कार्यालयों, बैंकों, सायबर कैफे, आनलाईन साईट, बाबूजी की टेबल आदि के चक्कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में बहुत बार किसी साईट के सर्वर डाउन के चक्कर में आपका मानसिक-शारीरिक सर्वर भी डाउन हो सकता है...!
विगत दिनों मेरे परम् मित्र लचकलाल जी का सर्वर डाउन हो गया था। उनकी जैब का डाटा उड़ चुका था। वे एक सेवा कार्यालय से स्वयं भी डाउन होते हुए आ रहे थे, तभी मुझे मिल गए। मैंने पूछा, ‛क्यों लचकलाल आज तो बड़े बैठे-बैठे से लग रहे हो ?’ कहने लगा, मत पूछ मित्र;- “मैं तो इस सर्वर डाउन चल रहा है !” जवाब को सुन सुन कर परेशान हो गया हूँ। आजकल जिस भी कार्य को करो, सर्वर डाउन की समस्या सबसे पहले आ जाती है। जिस भी कार्यालय में जाओं सर्वर डाउन का हल्ला मचा हुआ है। बाबूजी की टेबल के सामने सही से खड़े ना हो, उसके पहले वे कह देते है, “अभी सर्वर डाउन चल रहा है कल आना।"
एक तरफ तो केन्द्र से लेकर पंचायत तक सरकारें 5जी गति से योजनाओं की घोषणा कर रही है, वहीं योजनाओं की फाईलें सर्वर डाउन की शिकार हो रही हैं। इससे तो पहले का सिस्टम अच्छा था। सबकुछ कागजों पर होता था। जैसा माल-वैसा काम। जो चाहो वह कागज पर चितर दो ! फाइलें जैब के डाटा से 5जी गति से आगे बढ़ती थी। कई मामलों में फाइलें कूदा दी जाती थी।
उस दिन लचकलाल बहुत चिंतित लग रहा था ! एक्टिविस्टों की भाषा शैली में बोल रहा था, “अब तो इस इंटरनेट सेवा ने मेवा भी कम कर दिया और माथापच्ची ज्यादा। लगता है, “भ्रष्टाचार, कामचोरी व लेटलतीफी का नया औजार सर्वर-डाउन हो गया है।”
लचकलाल फिर 4जी स्पीड से कह रहा था कि सोशल मीडिया साईट्स का सर्वर डाउन हो जाये तो जनता आंदोलन पर उतारू हो जाए ! वहीं हमारे जैसे लाभार्थियों की फाईलों की बात हो तो सर्वर डाउन से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ! आजकल के स्मार्ट बाबूजी भी “सर्वर डाउन” को पेरासिटामोल की गोली की तरह उपयोग करते हैं। कोई भी सरकारी मरीज हो “सर्वर डाउन” की गोली दे दो।

लचकलाल के इस आनलाईन दुख में मैं भी कुछ देर तक शामिल रहा। हमने इस प्रोद्योगिकी औजार पर बुद्धिजीवियों जैसी लंबी बातचीत की। जिससे मेरा भी सर्वर डाउन होने लगा। मैंने अपने आप को संभाला। बातचीत को दो चाय से शांत करने की कोशिश। पर जैसे कि अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों, यूएनओ की महासभा, विधानसभा-संसद की चर्चाओं व राज्यों के सम्मेलनों के आयोजनों का निचोड़ ज्यादा कुछ नहीं निकलता। उसी तरह हमारी भी बातचीत दो चाय से आगे नहीं बढ़ पाई....!!



भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410

लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...