आम आदमी बनने की वंदनीय यात्रा....!!
आखिरकार लंबी उठापटक के बाद प्रशासनिक शल्यचिकित्सा हो ही गई। होना ही थी, वे एक क्षेत्र में सेवा कर-करके थक जो चुके थे। वे जब भी कही सेवा में होते हैं, उस क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देते हैं। सौ-छल मीडिया से दौरे पर दौर करते हैं। वे यह गंगा अपने कार्यालय में बैठकर ही पूरे क्षेत्र में बहाते हैं। सरकार का इंधन जो इससे बचता है। ऐसे ही इन दिनों वे सौछल मीडिया से सेवा की गंगा बहा रहे हैं।
उनका जब भी एक क्षेत्र से दूसरे में स्थानांतरण होता है, उस क्षेत्र में स्वागत, वंदन, अभिनंदन...की होड़ लग जाती हैं। उनकी सेवा का फल बटता है। उनका नये क्षेत्र में जाने पर भी स्वागत होता है और उस क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर भी उनका वंदन-अभिनंदन किया जाता है। उनका एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने-आने दोनों में उनके गाजेबाजे है। वे जनता के सेवक जो ठहरे !
कभी कभी तो लगता है कि वे जीवनभर इतनी सेवा करते हैं लेकिन फिर उनके क्षेत्र में विकास दिखता ही नहीं ! वे जहां भी नई पदस्थापना पर जाते हैं वहां विकास की पूरी उम्मीद होती है लेकिन उनके जाने तक विकास दिखता ही नहीं। लगता यह विकास ही बिगड़ा हुआ है। सुधरना ही नहीं चाहता। इस विकास के लिए कोई कितनी ही मेहनत करें, यह कमबख्त जनता में टिकता ही नहीं। फिर भी जनता उनके आने-जाने दोनों समय पर स्वागत-वंदन करती हैं। क्षेत्र में आने पर पुष्प माला-जाने पर पुष्प माला । उनके आने पर भी क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ती है और उनके जाने पर भी खुशी की लहर..! वे कितने महान जन सेवक हैं। कोई इतना बड़ा सेवक कैसे हो सकता है !
वैसे उन्हें यह सेवा के दौरान बार-बार आना-जाना पसंद नहीं है। यह उनकी सेवा साधना में हर बार बाधा पहुंचाता है। वे हर सरकार की तबादला नीति के आलोचक रहे हैं। इस विषय पर कोई उनसे राय भी नहीं लेता। वे राय देने में एक्पर्ट है। पर सरकार है कि उनकी सुनती ही नहीं। वे जब भी दृणता से मन बनाकर क्षेत्र व जनता की सेवा करने पर उतारू होते हैं सरकार उनका तबादला कर देती हैं। वे फिर नये स्थान पर वंदनीय हो जाते हैं। एक बार फिर स्वागत-वंदन की बेला आ जाती हैं। वे इन सब से अभिभूत हो जाते हैं। इससे उनके शरीर में जनसेवा का करंट दौड़ता है। उनके अगले क्षेत्र में फिर विकास की उम्मीद जागनी शुरू हो जाती हैं ! उन्हें हर पदस्थापना पर विकास नजर आता है लेकिन क्षेत्र की समस्याओं की अधिकता के कारण यह सबको नजर नहीं आता।
फिर भी वे हर बार नई उम्मीद व विश्वास के भरोसे कार्यभार ग्रहण करते ही है। जनसेवा के इस भार ने उनके कंधों को बहुत क्षति पहुंचाई है। वे झुककर घुटनों तक आ गए हैं। लेकिन उन्होंने विकास की प्रतिज्ञा नहीं छोड़ी है। प्रत्येक नये क्षेत्र में स्वागत-वंदन-अभिनंदन से उनके शरीर व आत्मा में जनकल्याण का लोकतांत्रिक विस्फोट होता है और वे उस क्षेत्र में फिर विकास की गंगा बहाने लगते हैं। राजधानी में फिर उनके नाम के चर्चे होते हैं। उन्हें राजधानी में सम्मान के लिए बुलाया जाता है। वहां भी गाजेबाजे के साथ उनका स्वागत, वंदन, अभिनंदन... होता है। उनका राजधानी में पहुंचना क्षेत्र के लिए शुभ माना जाता है।
एक दिन वे हमेशा के लिए राजधानी में स्थापित कर दिये जाते हैं। उनके लिए राजधानी में एक निश्चित लोकतांत्रिक मठ बना दिया जाता है। वे उस मठ में खुशी से जनसेवा की जुगाली करते हैं। अब राजधानी में ही उनका वंदन-अभिनंदन समय-समय पर होता रहता है। कभी-कभी राजधानी के मठ में बैठे-बैठे वे क्षेत्र के स्वागत-वंदन-अभिनंदन समारोहों की सुखद स्मृतियों की कमी जरूर अनुभव करते हैं।
आगे चलकर धीरे-धीरे राजधानी के ये मठ उन्हें खाने दौड़ते हैं। उनका इन मठों से मौह भंग हो जाता है। वे इनसे परेशान हो जाते हैं। उनका मन राजधानी में नहीं लगता। वे राजधानी से भागना चाहते हैं। उन्हें अपने क्षेत्रीय जनसेवा के अच्छे दिन याद आते हैं। वे फिर नये क्षेत्र की ओर प्रस्थान करते हैं। इस बार वे एक निश्चित क्षेत्र के स्थायी निवासी बन जाते हैं। अपने जीवन के कन्याकुमारी पड़ाव पर वे जनसेवा के लिए नहीं, अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए आम आदमी बन जाते हैं....!!
भूपेन्द्र भारतीय
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