Tuesday, March 28, 2023

समलैंगिकता ः पश्चिमी संस्कृति की विकृत मानसिकता

 समलैंगिकता ः पश्चिमी संस्कृति की विकृत मानसिकता

      



समलैंगिक विवाह जैसी संस्था पूर्णतः पश्चिमी संस्कृति की उपज है। यह अमानवीय व अप्राकृतिक यौन संबंध पश्चिम की विकृत मानसिकता का लक्षण है। भारतीय समाज की संस्कृति गौरवशाली रही है। इसमें किसी भी तरह के अनुचित व अप्राकृतिक भोग को कभी भी प्रमुखता से स्थान नहीं दिया है। विधायिका को इस तरह के कृत्यों पर नियंत्रण के लिए कठोर विधि का निर्माण करना चाहिए। 
भारत में वामपंथियों के द्वारा इस तरह के कार्य एक सुनियोजित ढंग से किये जाते रहे हैं और इसके पीछे उनकी मंशा रहती हैं कि किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति को बदनाम करना व भारतीय संयुक्त परिवार संस्था को तोड़ना। 
भारतीय न्यायशास्त्र में विवाह को एक पवित्र संस्कार व बंधन बताया गया है ना की किसी तरह की संविदा या फिर शारीरिक भोग की एक साधारण संस्था ! यहां तक कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र - राजनीति पर एक ग्रंथ - में भी समलैंगिकता का उल्लेख है। लेकिन पुस्तक में ये साफ लिखा है कि समलैंगिकता में लिप्त लोगों को दंडित करना राजा का कर्तव्य है, क्योंकि समलैंगिक लोग समाज की बुराई हैं। आखिर क्या कारण है कि वर्तमान में कुछ तथाकथित आधुनिक वर्ग पश्चिम को देखकर इस बुराई को अपना रहे हैं ?

यहां तक कि कई धार्मिक व वैज्ञानिक जानकारों ने भी कहा है कि " समलैंगिकता शास्त्रों के अनुसार एक अपराध है और अप्राकृतिक है। लोग खुद को एक समाज से अलग नहीं मान सकते ... एक समाज में , एक परिवार एक पुरुष और एक महिला से बनता है, न कि एक महिला और एक महिला से, या एक पुरुष और एक पुरुष से। यदि ये समलैंगिक जोड़े बच्चों को गोद लेते हैं, तो बच्चा एक विकृत परिवार के साथ बड़ा होगा। समाज बिखर जाएगा। अगर हम पश्चिम के उन देशों को देखें जिन्होंने समान-लिंग विवाह की अनुमति दी है, तो आप पाएंगे कि वे किस मानसिक तनाव से पीड़ित हैं। और किस तरह से वहाँ का समाज दिनोंदिन मानसिक विकृतियों से जूझ रहा है।”
विगत दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक मामले में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध करते हुए कहा, "इस तरह के विवाह भारतीय संस्कृति और भारतीय धर्म के खिलाफ हैं और भारतीय कानूनों के अनुसार अमान्य होंगे, जिन्हें एक पुरुष और एक महिला की अवधारणा को ध्यान में रखकर बनाया गया है।"

कई मनोचिकित्सकों ने स्पष्ट कहा है कि “समलैंगिकता स्पष्ट मनोवैज्ञानिक विकार है जिसका इलाज डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए।” वहीं महान दार्शनिक ओशो ने कहा था, “ समलैंगिकता एक यौन विकृति है, जो पश्चिमी समाज की देन है !”
कुछ वर्ष पहले जब भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को कानूनी दृष्टि से उचित ठहराया तो समाज में भारी विरोध हुआ और कितने ही लोगों ने इस तरह के निर्णय को भारतीय संस्कृति व नैतिक मूल्यों के खिलाफ बताया था। भारत सरकार भी सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिकता के विषय पर अपने जवाब में कह चुकी है कि “समलैंगिकों का जोड़े के रूप में साथ रहना और शारीरिक संबंध बनाने की, भारत की पारिवारिक इकाई की अवधारणा से तुलना नहीं हो सकती।”
एक बार फिर इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय व न्यायिक संस्थाओं में बहस शुरू हो गई है, जो कि भारतीय समाज व विवाह जैसी पवित्र संस्था के लिए जरुरी है कि इस बहस के माध्यम से यह पश्चिमी मानसिक विकृति समाप्त हो तथा इस तरह के कृत्य के लिए कठोर दंड का प्रावधान बने। आखिर हमारा समाज प्रकृति के विरुद्ध कैसे जा सकता है। न्यायशास्त्र में प्राकृतिक न्याय व नैतिक मूल्यों का सबसे ज्यादा महत्व है।


भूपेन्द्र भारतीय ( अधिवक्ता व लेखक )
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 


Sunday, March 19, 2023

केंचुली उतारने की पीड़ा....!!

 केंचुली उतारने की पीड़ा....!!

           



जब भी चुनाव होते हैं उन्हें केंचुली उतारने की पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इस पीड़ा को सहना आसान नहीं है। चुनाव लड़ने से पहले इस पीड़ा में पड़ना और चुनाव बाद हर पाँच साल में इस पीड़ा से दो-चार होना भी पड़ता है। चुनाव में हार के बाद भी केंचुली उतारना और जीत के बाद भी केंचुली उतारना..! वे इस पीड़ा पर उवाचते हैं, “साधों क्या यहीं जीवन है ?”

किसी को कोई भी पुरस्कार मिल गया तो उन्हें फिर अपनी साहित्यिक केंचुली उतारने की पीड़ा से गुजरना पड़ता है। यह पीड़ा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आजकल तो उन्होंने मुझे भी इस पीड़ा में पटक दिया है। अभी कुछ दिनों पहले ही विदेश में जाकर उन्होंने अपनी केंचुली उतारने की पीड़ा का ढिंढोरा पीटा। ओर ना सिर्फ पीटा, पर पीढ़ामय राग में पीटने की ध्वनि विदेशी अखबारों में छपी भी।
वैसे साँपनाथ-नागनाथ जैसी उनकी दोस्ती के किस्से बहुत चर्चित रहते है। लेकिन यह केंचुली उतारने की पीड़ा के समय उनकी यह सदाबहार दोस्ती किसी काम नहीं आती है। वे लोकतंत्र के किसी भी रण में उतरते तो साथ-साथ , लेकिन कुछ ही समय बाद उनका लोकतांत्रिक गठजोड़ कमजोर पड़ने लगता है। दोनों एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगा देते हैं। दोनों एक दूसरे को लोकतंत्र का हत्यारा तक का दोषी घोषित कर देते है। आखिर में वही केंचुली उतारने की पीड़ा उन्हें विदेश यात्रा के लिए मजबूर कर देती है और फिर वे विदेशी जमीन से लोकतंत्र के लिए फुफकारते है।

केंचुली उतारने की यह पीड़ा दिनोंदिन हर संस्था व संगठन में बढ़ती जा रही है। किसी संस्था ने किसी को कोई पुरस्कार दे दिया तो उस संस्था के बाकी सदस्य इस पीड़ा से ग्रसित हो जाते हैं। यहां तक कि कुछ लोग तो पड़ोसी के यहां डबल-बेड आ जाये तो इस पीड़ा से पीड़ित हो जाते हैं। यह पीड़ा हमारे देश के शिक्षा संस्थानों में कुछ ज्यादा ही फैली है। जैसे ही किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश करो, तो हर विभाग में केंचुली ही केंचुली देखने को मिल जाती है। जितना बड़ा शिक्षा का मंदिर , उतने बड़े साँपनाथ-नागनाथ विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं।

कुछ दिनों पहले मैं गलती से एक कलेक्टोरेट कार्यालय में चला गया। जैसे ही एक बाबूजी की टेबल के सामने पहुंचा, ‛वे केंचुली उतारने की पीड़ा से गुजर रहे थे।’ उनका कहना था, “अभी थोड़ी देर बाहर जाईये, मैं अभी तो कलेक्टर साहब के बंगले से आ रहा हूँ ! पहले मैडम का काम तो निपटा लू..!” बेचारे बाबूजी, उस दिन इस पीड़ा से बहुत ज्यादा परेशान दिखे। आखिर में लंबी प्रतिक्षा के बाद उन्होंने मेरी बात तो सुनी, लेकिन शाम को जब मैं घर पहुंचा तो मुझे भी अपनी श्रीमति के सामने केंचुली उतारने की पीड़ा से दो-चार होना पड़ा।

जैसे-जैसे हमारा गणतंत्र बड़ा हो रहा है और बड़प्पन की ओर जा रहा है। यह पीड़ा उसके अधिकांश चंदन के खंभों पर बढ़ती जा रही है। कोई इस पीड़ा से अपने ही घर में पीड़ित हैं तो कुछ लोग संसद के हर सत्र में केंचुली उतारते हुए देखें जा सकते हैं। वहीं कुछ स्वघोषित राजनीतिक राजाधिराज जब तक विदेशी धरती पर जाकर अपनी केंचुली नहीं उतारते, उन्हें इस पीड़ा में आनंद ही नहीं आता...!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
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Saturday, March 18, 2023

जीवन जीने के लिए है, मिटाने के लिए नहीं...!

 जीवन जीने के लिए है, मिटाने के लिए नहीं...!

     



आत्महत्या एक कायराना व बुजदिल कृत्य है जो कि हमारे समाज में दिनोंदिन न जाने क्यों बढ़ती जा रही हैं ! क्या हम गलत विकास की परंपरा व नीतियों की तरफ जा रहे हैं जिससें हमारा युवा आत्महत्या की ओर जा रहा है ? किसी परीक्षा में कम नंबर आना, अच्छा मोबाइल-कार नहीं होना, पारिवारिक तनाव, सरकारी नौकरी नहीं होना आदि जैसी छोटी-छोटी बातों के कारण आजकल युवा व बड़े भी आत्महत्या जैसा कायराना कृत्य करते है। आत्महत्या जैसे कृत्य को किसी भी तरह से इस पीढ़ी को मिटाना होगा। समाज के जिम्मेदार लोग व अभिभावक इस ओर विशेष ध्यान दे।

आखिर क्या कारण है कि भगवान व प्रकृति की सबसे सुंदर रचना जीवन ओर वह भी मानव जीवन को हम इतने सस्ते में आत्महत्या के भेंट चढ़ा रहे ! ऐसा करते समय उन माँ बाप के बारे में कोई कुछ क्यों नहीं सोचता है जो हमें कई परेशानियों व मुश्किलों से पालते पोसते हैं तथा जीने लायक बनातें हैं। हर एक इंसान के जीवन में प्रकृति ने कुछ न कुछ संघर्ष दिया है। हम संघर्ष से भाग नहीं सकते हैं। जिंदगी जीने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। संघर्ष में ही जीवन की असल खुशी व आनंद छूपे रहते हैं।

कैसा भी जीवन हो लेकिन आत्महत्या कभी भी सही कदम नहीं हो सकता, ना ही यह कोई विकल्प हैं जीवन के संघर्ष के लिए। दुनिया में हर इंसान को हजारों परेशानिया रहतीं हैं लेकिन फिर भी जीने का एक ही तरीका है कि जीने के लिए संघर्ष करो, जो हैं वहीं स्वीकारों व परिस्थितियों से मुकाबला करो। जीवन एक सुंदर व सुहाना सफर हैं इसकी यात्रा करो, इससे भागों मत। इस यात्रा में माना कि बहुत सी कठिनाई आ सकती है लेकिन उनके बाद ही जीवन का असल मूल्य भी हमें पता चलता है। जीवन से भागना कायरता ओर वही आत्महत्या नपुंसकता हैं।

हो सकता है जिन परिस्थितियों में आप है तथा वे आपके अनुकूल नहीं है तो थोड़ा अपनी कार्य शैली व विचारों में बदलाव लाए, कही घुमने चले जाए, कुछ नया पढ़े, कुछ नए मित्र बनाए, गरीब लोगों के बीच जाए, अपने से छोटे लोगों को देखे कि वे कितना संघर्ष कर रहे हैं ओर फिर देखेगे कि आप तो सुखी हैं। हमेशा किसी एक लक्ष्य पर नहीं रूके, क्योंकि जिंदगी का सफर व मंजिल बहुत बार रास्ते बदलने से सुहानी व सुखद हो जाती हैं। आत्महत्या कभी भी जीवन को सार्थक व परिपूर्ण आनंद नही दे सकती हैं। आत्महत्या का प्रयास या फिर इस जैसे कृत्य करकें आप अपराध करतें हैं। ऐसा अपराध न करें। यह प्रकृति व ईश्वर की मानहानि है। कैसी भी सुंदरता व सुख जीवन को जीने में है ना की जीवन को कायरतापूर्ण मिटाने में ।

हमेशा ध्यान रखें, आप अकेले नहीं है जिसके जीवन में परेशानीयाँ हैं। सबके साथ ऐसा होता है। एक या दो अदद मित्र या साथी जरुर बनाए , जिससें आप अपनी सब तरह की बातें व परेशानियां उनसे साझा कर पाए। वो मित्र व साथी कोई भी हो सकता है आपकी माँ, पिता, भाई, बहन, पत्नी, प्रेमिका, दोस्त आदि कोई भी। जब भी कोई कठीन परिस्थिति आए या आपको ऐसा लगता है कि आप जीवन के संघर्ष व जटिलताओं से हार रहे हैं तो माता-पिता से जरुर साझा करे या माँ के चरणों में बैठ जाए, सबकुछ सही हो जाएगा। लेकिन छोटी छोटी बातों से तनाव में आ जाना व आत्महत्या कर लेना पुरी तरह से गलत है। हमें अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य का भी सतर्कता के साथ ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कहा भी गया है कि “मन चंगा तो सब चंगा”...!

वर्तमान समय में बाजारवाद व पूँजीवाद को समझे ,इनके कारण से बहुत सी आपकी मानसिक परिस्थितियां इनके अधीन है इनसे मुक्त रहे। आज की गलाकाट प्रतियोगिता के चक्कर में न पड़े तथा अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रण में रखें। पड़ोसी कौन सी कार लाया हैं या दोस्त कितना पैसा कमा रहा है उससे आपका कुछ भी भला नहीं होगा। किसी के देखादेखी जीवन नहीं जीना चाहिए ना ही किसी भी तरह की अनुचित होड़ा-होड़ी करना चाहिए। आपनी स्वतंत्र सोच व विचार रखें, किसी के देखा देखी जीवन न जीए। स्वंय की क्षमताओं व योग्यताओं से अपने जीवन के लक्ष्य बनाएं तथा हमेशा एक ही लक्ष्य पर भी न अड़े रहे। क्योंकि जीवन आनंद लेने के लिए हैं न कि अपने आप को तनाव की भट्टी में जलाकर आत्महत्या कर लेना है।

जब भी ऐसा लगें कि जीवन में मजा नहीं आ रहा है या असफलता ही असफलता हाथ लग रही हैं तो कहीं घुमने चले जाए, कोई नई किताब पढ़े, गांव देहात में चले जाए या कोई नया शहर घुम आए, अपने बच्चों या पत्नी के साथ समय बिताए या प्रेमिका के साथ बैठकर बातें करे। आपको ऐसा लगे हम तो बहुत गरीबी या संघर्ष में जी रहे हैं तो गांव-देहात में जाकर जीवन देखे, वही गांव वाले शहर वालों का जीवन देख ले। बड़ा पद या अच्छा पैसा कभी जीवन का अंतिम औचित्य व सफलता नहीं है। इसके आलावा भी जीवन बहुत सुंदर व आनंदमय हैं। लेकिन एक या दो असफलता या थोड़े बहुत आभावों के कारण आत्महत्या कर लेना कायरता तो हैं ही साथ ही अपने माता पिता व प्रकृति को धोखा देना है।

हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति की मौलिकता से छेड़छाड़ न करें। खासकर बच्चों पर कुछ भी न थोपे, उन्हें सहज आगे बढ़ने दे। अभिभावक अपने सपनों का भार अपने बच्चों के कंधों पर ना डालें। महान जीवन या व्यक्ति कुछ नहीं होता है यह तो हर इंसान का अपना मौलिक व्यक्तित्व होता है। जीवन जिंदगी को मस्ती से जीने के लिए मिला है, ना की आत्महत्या करने के लिए। जीवन ईश्वर की अनुकंपा हैं, माँ पिता का दुलार हैं, इसे आत्महत्या कर प्रकृति व मानवजीवन का अपमान व इनके साथ धोखा न करें।



भूपेन्द्र भारतीय ( अधिवक्ता व लेखक )
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
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Tuesday, March 7, 2023

वीआईपी होली के शौकीन जो ठहरे....!!

 वीआईपी होली के शौकीन जो ठहरे....!!




उनके पास अपना कोई कैलेंडर नहीं है। वे हर त्यौहार पर दूसरों से ही त्यौहार की सही तिथि पूछते रहते हैं। इस बार फिर होली आने वाली है। वे पीछले वर्ष वाला ही प्रश्न पत्र लेकर बैठ गए है। सारे प्रश्न पहले वाले हैं। उन्हें नवीनता से एलर्जी है। वे होली सिर्फ़ छोटे से तिलक वाली खेलते हैं। ज्यादा रंग उनके काले-सफेद जीवन में ख़लल डालते हैं। उन्हें हुड़दंग पसंद नहीं है। कभी कभी तो उनकी गली में होली खेलते बच्चों से भी उन्हें खीझ हो जाती है। उन्हें गंवारों वाली होली पसंद नहीं है। वे होली को भी शालिनता से मानने में विश्वास करते हैं। वे संभ्रांत मानुष जो ठहरे ! वे संभ्रांत होली के शौकीन हैं..!

हर बार की तरह उन्होंने अपना पुराना सफेद कुर्ता-पजामा निकाल लिया। उन्होंने इस कुर्ता-पजामा से कितनी ही होली निपटा दी है। पीछले वर्ष बच गई गुलाल की पूढ़ी उन्हें फिर मिल गई है। उनकी मंडली के सदस्यों से उनकी बात हो गई है। होली कब है सभी से उन्होंने कंफर्म कर लिया है। किसके घर रंग गुलाल करने जाना है और किसके घर नहीं, यह निर्णय भी बहुमत से फोन पर ही पारित कर दिया। उन्होंने इस बार की होली पर फिर पानी के प्रबंधन पर लंबा-सा आलेख लिखकर पिच्चतीस अखबारों में भेज दिया है। होली के बाद उनका एक लंगोटिया ठंडाई का भी प्रबंध करेगा। उसके लिए आनलाईन चंदा मांगा गया है। ठंडाई के बाद उनका मन है कि एक गोष्ठी का भी आयोजन किया जाए। जिससे वे अपने मन की बात कह सके। उन्होंने अपने प्रिय विषय;-“होली पर जानवरों की सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण” पर जोरदार तैयारी कर ली है।

हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने होली पर नेताओं के लिए चुटकी लेकर चुटकी भर लिख डाला है। अब वे इसके छपने की प्रतिक्षा कर रहे है। उनका लिखा होली के रंगों जैसा ही होता है। कौनसा रंग किसके साथ मिला हुआ है यह वे भी नहीं जानते। एक बार जो लिख दिया, वह साहित्य की रंगीन गंगा के हवाले।
होली के एक दिन पहले तक ‛हर वर्ष की तरह इस बार भी वे होली कब है ?’ की रट लगाये हुए है। उन्हें कहीं से सही उत्तर नहीं मिल रहा है। होली की सही तारीख व तिथि पर उनके मन में असमंजस चल रहा है। सरकारी छुट्टी ने अलग से दुविधा में डाल दिया है।

उनकी तैयारियां पूरी हो चुकी है लेकिन होली का रंग कहीं चढ़ता दिख नहीं रहा है। टीवी चैनलों पर भी उन्हें अब तक कोई निमंत्रण नहीं मिला है। उनके पास अब तक वरिष्ठ साहित्यकार का भी फोन नहीं आया है। हालांकि अपने नगर के वे स्वयं सबसे वरिष्ठ साहित्यकार है। ऐसा उनका दृढ़ विश्वास है। भले ही हिन्दी साहित्य के आलोचक उन्हें वरिष्ठ साहित्यकार ना मानते हो। इसलिए वे ऐसे साहित्यिक साथियों से होली पर दूरी बनाकर रखते हैं।

आखिर में जैसे ही होली का दिन आता है तो सबसे पहले वे अपनी स्वयं की पत्नी को सुबह-सुबह ही एक छोटा सा टीका लगाकर होली का श्रीगणेश करते है। पाँच-पंद्रह वाट्सएप समूहों में भी वे होली की पंक्तियां फेंकते है। फेसबुक पर एक कालजयी रंगारंग पंक्ति लिखकर होली का डिजिटल श्रीगणेश भी कर देते है। अपने ही बच्चों को केमिकल रंगों से कैसे बचें व इको फ्रेंडली होली कैसे खेलना है इस विषय पर भी सुबह सुबह ही संक्षिप्त भाषण सुनाते हैं। अपने प्रिय कुत्ते को भी एक छोटा सा टीका लगा देते है और उसे कड़ा संदेश देते है कि उसे आज घर से बिल्कुल बाहर नहीं निकलना है ना ही पड़ोसी के बच्चों के साथ भौं-भौं खेल खेलना है।
वहीं इस दिन वे आस पड़ोस वालों से बात तक नहीं करते। उन्हें होली के दिन भी आसपड़ोस वालों को ना ही मुँह लगाना पसंद है और ना ही रंग ! उन्हें लगता है कि इससे उनकी वरिष्ठता में कमी आ सकती है । इसलिए वे सुबह सुबह अपने घर में ही होली का श्रीगणेश करके वीआईपी कॉलोनी में रहने वाले अपने स्तर के साथियों के बीच पहुंच जाते है। आखिर में अपने स्तर के वरिष्ठ लोगों के बीच पहुंचकर होली का रंग लेना शुरू करते है। आखिर वे वीआईपी होली के शौकीन जो ठहरे....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
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लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...