Saturday, December 24, 2022

कबीरा खड़ा बाजार में और हाथ में मोबाइल....!!

 कबीरा खड़ा बाजार में और हाथ में मोबाइल....!!

     



वर्तमान का सबसे बड़ा शस्त्र मोबाइल बन गया है। यह मैं ही नहीं, पूरी दुनिया जानती हैं। यहां तक कि बच्चें-बच्चें को पता है। वैसे यह शस्त्र, शास्त्र के रूप में भी उपयोग हो सकता है और होता भी है। लेकिन इसके लिए कबीरा का मुड होना चाहिए। कबीरा का मुड नहीं हुआ तो वह उसके लिए एक खिलौने के अलावा कुछ नहीं। वह बस दिनभर इससे खेलता ही रहता है।

आज बाजार कहाँ नहीं है ? हर तरफ बाजार जमा है। और जहाँ बाजार है कबीरा वहीं खड़ा है। वास्तव में कबीरा के मोबाइल में ही बाजार घुस गया है। अब मोबाइल मतलब बाजार ही होता है। सुबह की महत्वपूर्ण जरूरत टूथपेस्ट से लेकर रात तक की सभी जरूरतों के लिए कबीरा के हाथ में बाजार है। इस बाजार के बीचोंबीच कबीरा खड़ा है। वह बाजार में क्यों खड़ा है यह सिर्फ़ कबीरा को ही पता है। यहां तक कि बाजार कबीरा के मोबाइल में घुस गया है या फिर कबीरा बाजार में घुसा है यह शोध ही नहीं, रहस्य का विषय बनता जा रहा है ! वहीं कबीरा मानता है कि बाजार को वह अपनी जेब में लेकर चलता है। जब चाहे तब कबीरा बाजार को अपनी ऊंगलियों पर नचा सकता है। बाजार के तमाम मंचों के लिए कबीरा बीच बाजार हाथ में मोबाइल लिये खड़ा है।

कबीरा बाजार में खड़ा है यह आश्चर्य का विषय नहीं है। वह तो लंबे समय से खड़ा है लेकिन वह अब हाथ में मोबाइल लिये खड़ा है। यह विचार करने का विषय है। उसके हाथ में मोबाइल है। लेकिन लगता है वह दुनिया मुठ्ठी में करके के खड़ा है। बाजार के हर भाव का निर्णय कबीरा के हाथ में है। कानून के हाथ से लंबा हाथ कबीरा का हो गया है। कबीरा बाजार को कहीं से भी छू सकता है और गुलज़ार कर सकता है। सेंसेक्स का उतार चढ़ाव हो या फिर किसी विरोध के लिए ट्विटर ट्रेंड हो ! कबीरा खड़े-खड़े बाजार को धड़ाम कर सकता है।
         
      


कबीरा के हाथ अब सृजन व विध्वंस दोनों के लिए उतारूं रहते हैं। कबीरा का यह शस्त्र परमाणु हथियारों से भी खतरनाक होता जा रहा है। लोकतंत्र तक कबीरा के शस्त्र से डरता है। कबीरा बाजार में खड़े-खड़े किसी भी सरकार को बना-बिगाड़ सकता है। सबको लगता है कि कबीरा सिर्फ़ खड़ा है। लेकिन वह मोबाइल में बहुत कुछ चला व बना रहा है। वह खड़े -खड़े चलता है। वह अपने इस शस्त्र से दुनिया को कभी बनाता है तो कभी मिटाने पर भी तुल जाता है। वह मोबाइल चलाते-चलाते दुनिया चलाने सीख रहा है। अब समझ आया कि “कर लो दुनिया मुठ्ठी में, विज्ञापन उसके लिए ही बना था।"

पहले कबीरा जीवन मूल्य बुनने का कार्य करता था। वहीं आज का कबीरा रील-वीडियो बुनता है। आज कबीर वाणी, कबीरा स्वयं सुनता है। अपने कानों में अपने मोबाइल का ही राग-मोबाईली संगीत सुनना पसंद करता है। उसे किसी से कोई लेना देना नहीं है। उसके एक तरफ घर है और दूसरी ओर घाट। वह घर व घाट दोनों पर खड़ा है। वह बाजार में खड़े-खड़े मस्त ऊंगलियां चलाता है। भले कबीरा कहीं भी खड़ा हो और कोई भी उसके आसपास से आया-गया हो, वह अपने मोबाइल के साथ ध्यान अवस्था में बीच बाजार में खड़े साधना कर रहा है।


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Saturday, December 10, 2022

ईवीएम की प्रचंड जीत....!!

 ईवीएम की प्रचंड जीत....!!

      



आखिर ईवीएम की प्रचंड जीत का सपना सच हो ही गया। उसने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास जीत ही लिया। इस बेचारी ईवीएम को क्या नहीं कहा गया ? उसे क्या-क्या नहीं सहना पड़ा ! विगत दो दशकों से उसे मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम किया जा रहा था। जिस तरह नयी नयी बहु के हर काम में मीनमेख निकाला जाता है विगत एक दशक से ईवीएम प्रताड़ित हो रही थी। आखिर उसके सास-ससुर लोकतंत्र की मेहरबानी उसपर भी हो ही गई और उसे जनतंत्र में जीत का स्वाद चखने का अवसर मिल गया। लंबी बदनामी के बाद ईवीएम को किसी तरह के आरोप-प्रत्यारोप का सामना नहीं करना पड़ा।

इस बार के तीन राज्यों के चुनावी परिणामों से लोकतंत्र के तीनों स्तंभ भी चैन की साँस ले रहे है। लोकतंत्र भी इस बार बदनाम होने से बच गया। असहिष्णुता व ध्रुवीकरण जैसे राग दरबारी राग किसी टीवी बहस में सुनने को नहीं मिले। हर दल अपनी अपनी जीत में मगन है। मतदाता भी तन कर कह रहा है कि देखा कैसे सबको खुश कर दिया ! ‛भले बाद में ये तीनों मिलकर उसपर हँस रहे होगें।’ लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत कम बार ऐसा हुआ कि मतदाताओं ने भी चमत्कार किया हो ओर वह भी लोकतांत्रिक पद्धति द्वारा।
 
   


लेकिन कुछ भी कहो इन चुनावों में ईवीएम की प्रचंड जीत तो हुई है। कुछ दलों द्वारा उसकी विश्वनीयता लंबे समय से संदिग्ध माना जा रही थी। जब से ईवीएम से चुनाव हो रहे है, हारने वाला अपनी हार का ठिकरा ईवीएम पर ही फोड़ता आ रहा है। पहली बार किसी भी पार्टी प्रवक्ता के मुँह से एक गलत शब्द ईवीएम के चरित्र पर नहीं निकला। ईवीएम लंबी उम्र के बाद अब चैन की साँस लेकर अपने आप पर गर्व कर सकती है। लगता है वह जवानी की दहलीज पर पहुंच गई है।
ऐसा ही चलता रहा तो हो सकता है कि आगे चलकर साहित्यिक व सहकारिता संगठनों के चुनाव भी ईवीएम से हो। पुरस्कारों का चयन भी ईवीएम के माध्यम से होना शुरू हो जाये और पुरस्कारों की रेवड़ी बटना बंद हो।

अब ईवीएम हमारे लोकतंत्र में सुरक्षित है। आगे किसी भी तरह के चुनाव करवाने के लिए वह प्रथम पसंद मानी जाऐगी। शहरों के महिला क्लबों के चुनाव के लिए भी अब ईवीएम पर भरोसा किया जा सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि आगे चलकर वर-वधु के जोड़े बनाने का भार भी ईवीएम के कंधों पर आ जाए।

ईवीएम अब सेटिंग का विषय नहीं रहेगी। उसे कोई शक की नजर से भी नहीं देखेगा। हर मतदाता पूरे आत्मविश्वास व बगैर किसी लघु-दीर्घ शंका के ईवीएम का बटन दबाने घर-घर से निकलेगा। लोकतंत्र की समृद्धि के लिए घर-घर से ज्यादा से ज्यादा मतदाता निकलेगें। ईवीएम के लिए कितना बड़ा गौरवमयी समय रहेगा।
अब तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्वच्छता सूची में ईवीएम का नंबर भी स्वर्ण अक्षरों से लिखा जा सकता है। एग्जिट पोल वाले भी ईवीएम के परिणामों से खुश हैं। वैसे उन्होंने अपने सर्वे को ही श्रेष्ठ बताया और ब्रेकिंग न्यूज़ में यही धमाका करते रहे कि “हमारे चुनावी रूझानों ने ईवीएम की विश्वनीयता पर भी मोहर लगा दी है...!” किसी धाकड़ एंकर ने ईवीएम के परिणामों पर कोई पलटवार नहीं किया। सभी राजनीतिक दल भी खुशी-खुशी अपनी ही पार्टी द्वारा आर्डर किये लड्डू से अपना ही मुँह मीठा कर रहे हैं। ईवीएम की इस प्रचंड जीत पर लोकतंत्र में खुशी की लहर चल रही है। हो सकता है अगले गणतंत्र दिवस की परेड में लोकपथ पर ईवीएम की झांकी से सर्वदलीय खुशी देखी जा सकती हो। हो सकता है भारत के सबसे वयोवृद्ध राजनीतिक दल अपने अगले अध्यक्ष के चुनाव के लिए ईवीएम से ही मतदान करवाये। देखना यह है कि ईवीएम को मिली यह प्रचंड बहुमत वाली जीत कितने दिनों तक सुरक्षित रहेगी और कबतक राजनीतिक लांछन से बच पाती है....!!



भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Sunday, December 4, 2022

अध्यक्षीय भाषण....!!

 अध्यक्षीय भाषण....!!

   
      



वे बोलने में शुरू से तेज है। बचपन से बोलते-बोलते वे कब भाषण देने की अवस्था में आ गए, उन्हें ही नहीं पता चला ! इन दिनों वे भाषण तो देते है लेकिन वे हर विषय पर भाषण दे सकते है। धारा प्रवाह दे सकते है। उनके बोल दिनोंदिन ओजस्वी भाषण होते जा रहे है। पहले उन्हें सिर्फ़ उनकी कॉलोनी व नजदीकी विद्यालयों में ही भाषण देने बुलाया जाता था । लेकिन आजकल उन्हें सरकारी आयोजनों में भी भाषण देने के लिए बुलाया जाता है। निमंत्रण पत्र में उनके नाम के आगे “अध्यक्षता” शब्द ना हो, तो वे उस कार्यक्रम में नहीं जाते। इस कारण उन्होंने इन दिनों अपना मीटर अब अध्यक्षीय भाषण के अनुसार ही तय कर लिया है।

उनका अध्यक्षीय भाषण हर विषय पर धाराप्रवाह रहता है। हर भाषण में कहीं ऐसा नहीं लगता है कि कुछ नया कहा जा रहा है। सुनने वाले हर सभा में सहज ही रहते हैं। उन्हें अपनी बुद्धि पर जोर भी नहीं लगाना पड़ता है। श्रोतागण उनकी सभा में रात्रि के तिसरे-पहर की निंद का आनंद लेते हैं। आयोजन कर्ता से श्रोतागण निवेदन करते हैं कि उन्हें अगले आयोजन में भी अध्यक्षीय भाषण के लिए आमंत्रित करें ! नगर में बच्चों को भी उनका भाषण रटा गया है। कुछ बच्चें तो उनके भाषण शुरू होने से पहले ही उनकी कालजयी पंक्तियों का वाचन शुरू कर देते हैं। वे अपने नगर के रेडीमेड अध्यक्ष मान लिये गए है। कितनी ही आयोजन समितियाँ व संगठन इसके कारण आसानी से समाज कार्य के माध्यम से उनके नगर का कल्याण कर रही हैं। वे इसके कारण ही अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है। उन्हें लगता है, नगर के विकास का भार उनके ही कंधों पर है !

उनके इस अध्यक्षीय भाषण से समाचार पत्रों व टीवी चैनलों को भी सुविधा रहती हैं कि उन्हें अपने विशेषांक विचार पृष्ठ पर ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ती हैं। उनके भाषणों को सुनने वाले लाखों-करोड़ों में है। वे सभी जानते हैं कि इनके भाषणों का सार क्या है। वे अपने अध्यक्षीय भाषणों में कुरुक्षेत्र में खड़े श्रीकृष्ण की तरह विश्वरूप वाली आभा में रहते है। कितने ही श्रोतागण उनकी कांति व तेज से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके भाषण पर वाह-वाह से सभा मंडल का वातावरण किसी चक्रवर्ती सम्राट की राजसभा जैसा हो जाता है। सभा का हर श्रोता अपने आप को भाग्यशाली समझता है। उसे लगता है जैसे वह देववाणी सुन रहा है। वह अनुभव करता है कि उसने अपने जीवन का संपूर्ण पूण्य रस प्राप्त कर लिया है !

वे अपनी इस कला के माध्यम से साहित्य जगत में भी सम्माननीय है। बड़े-बड़े साहित्यकार उन्हें अध्यक्षीय भाषण के लिए बुलाते हैं और अपनी रचनाओं का पाठ भी उनसे ही करवाते हैं। लेखक अपनी ही रचनाओं का रस लेते हैं और अध्यक्ष यश प्राप्त करते है। अपने अध्यक्षीय भाषणों से उन्होंने साहित्य की कितनी ही मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई पत्रिकाओं को जीवनदान प्रदान किया है। अपने भाषणों में वे अक्सर साहित्य सेवा की बातें करते हैं। साहित्यकारों ने भी उन्हें सच्चा साहित्य सेवक मान लिया है। इस सेवा से प्रभावित होकर कई साहित्यिक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। अब तो उन्हें लिटरेचर-फेस्टिवलों में भी अध्यक्षीय भाषण देने बुलाया जाता है। इन फेस्टिवलों में अधिक अध्यक्षता करने से उनका वजन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और उनके भाषण का वजन कम होता जा रहा है। यह चिंता उन्हें कभी-कभी चिंतित करती है !
            
              


जीवन की प्रौढ़ बेला में ही उन्होंने सफेदी की झंकार प्राप्त कर ली है। वे यह चाहते भी थे। जनता उन्हें अध्यक्ष की उम्र के लायक जो समझे। आखिर अध्यक्ष के तौर पर दिनोंदिन उनकी पहचान बढ़ती जा रही है। अब तो उन्हें अपने राज्य की राजधानी में भी अध्यक्षीय भाषण के लिए बुलाया जाने लगा है। उन्होंने उसके लिए अलग से महँगे कपड़े बनवा लिये है। लिट-फेस्टिवल का बजट देखते हुए लगता है अग्रिम मानदेय मिला गया हो ! वे यही रूकने वाले नहीं है। उनका सपना है कि वे एक दिन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भी “#अध्यक्षीय_भाषण” के लिए आयोजकों की सबसे पहली पसंद बने....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Saturday, December 3, 2022

।। जिंदगी की बात संस्कृत के साथ ।।

 ।। जिंदगी की बात संस्कृत के साथ ।।

      



युवा लेखक व स्तंभकार शिवेश प्रताप जी की यह पुस्तक संस्कृत वांग्मय के समृद्धशाली साहित्य से परिचय करवाती है। करीब 37 पाठ में अलग अलग विषयों पर यह संग्रहणीय पुस्तक लिखी गई है। जीवन से जुड़ी कठिनाइयों के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध मोतियों को चुन-चुनकर यहां इस पुस्तक में जीवन प्रबंधन के लिए पाठकों के लिए लाया गया है।

इस पुस्तक में अभय, ईश्वर, उद्यम, एकता, कर्म, काल, गुरु महिमा, चरित्र पूजन, ज्ञान, दया, धर्म, प्रेम, परोपकार, संतोष, मन, मित्रता आदि विषयों के गहरे अर्थ संस्कृत साहित्य के माध्यम से समझाये गए हैं। लेखक ने हर पाठ के शुरुआत में सुंदर व सरल व्याख्या की व आगे श्लोकों के माध्यम से उस विषय पर व्यवहारिक प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए एकता का महत्व बताते हुए यहां पारिवारिक एकता का महत्व बताने के लिए एकता पाठ के अंतिम श्लोक को पढ़ा जा सकता है;-
संहतिः श्रेयसी पुंसां स्वकुलैरल्पकैरपि ।
तुषेणापि परित्यक्ता न प्ररोहन्ति तण्डुलाः ।।

इसी तरह से कर्म पर मानस में तुलसीदास जी के माध्यम लेखक ने कर्म का महत्व बताया है, ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा।’

इस पुस्तक में लेखक के द्वारा संस्कृत व भारतीय मानस के विशाल साहित्य से उच्च कोटि के मोतियों रूपी श्लोकों को चुन चुनकर इस पुस्तक को जीवन प्रबंध के लिए श्रेष्ठ कार्य किया गया है। कहीं से भी इस पुस्तक को पढ़ा जा सकता है। हर वाक्य व श्लोक मानवीय जीवन व संघर्ष के लिए प्रेरणादायक है। सामान्य पाठक व युवाओं को इस पुस्तक को जरूर पढ़ना चाहिए व वह जब भी जीवन के संघर्षों से घीरे तो यह पुस्तक उसके लिए मददगार हो सकती है। एक संग्रहणीय पुस्तक की रचना लेखक ने की है। संस्कृत साहित्य से इतने श्लोक चुनने व उन्हें अर्थ सहित विभिन्न पाठों में सम्मिलित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसे शिवेश जी ने बहुत कम आयु में पूर्ण किया है। जिससे उनकी लेखकीय क्षमता व जीवन प्रबंधन की स्पष्ट झलक दिखती हैं।
       

 

जैसा कि पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर ही पुस्तक के विषय में लिखा है कि ‛जीवन आधारित वैचारिक लेखों व संस्कृत श्लोकों द्वारा सम्यक चिंतन व उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा देती एक बेहतरीन तथा संग्रहणीय पुस्तक’ में को अतिश्योक्ति नहीं है। यह हर युवा के लिए श्रेष्ठ पुस्तक है। आज की युवा पीढ़ी को इस पुस्तक का स्वागत करना चाहिए व पढ़ना चाहिए। आज के विश्वविद्यालयों में इस तरह की पुस्तके अधिक से अधिक मात्रा में होना चाहिए।

इस पुस्तक में लेखक संस्कृत भाषा व साहित्य का भी महत्व बता रहे है और वर्तमान जीवन के लिए उसकी उपयोगिता भी। व्यक्तित्व निर्माण के लिए आजकल कस्बों व शहरों में बड़ी बड़ी कोचिंग चल रही है और उनमें मोटी मोटी फीस ली जाती है। यहां इस पुस्तक में आप पाठ 31 में इस विषय पर गहराई से व सरलता से व्यक्तित्व निर्माण पर पढ़ सकते हैं। लेखक ने बताया है कि हमारे यहां संस्कृत भाषा में इस विषय पर हजारों वर्षों पहले बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बस इस समृद्धशाली संस्कृत साहित्य को वर्तमान युवा पीढ़ी के बीच लाना है। किसी पश्चिमी विचारधारा वाले कोचिंग संस्थान की ओर देखने की जरूरत नहीं है।

ऐसे ही रोचक व प्रेरणादायक विचार, लेख, श्लोक आदि से परिपूर्ण यह पुस्तक हर लेखक व जिज्ञासु पाठक को पढ़ना चाहिए। यह पुस्तक उपहार स्वरूप देने के लिए भी महत्वपूर्ण उदाहरण है। बाकी आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो ओर भी महत्वपूर्ण व प्रेरणादायक बातें यहां पाऐंगे। व्यक्तित्व निर्माण व जीवन प्रबंधन के लिए यह पुस्तक उच्च कोटि के मानकों पर खरा उतरती है।



पुस्तक : जिंदगी की बात संस्कृत के साथ
लेखक: शिवेश प्रताप
प्रकाशक : ब्लूरोज प्रकाशन
मूल्य : 300


समीक्षक
भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...