कबीरा खड़ा बाजार में और हाथ में मोबाइल....!!
वर्तमान का सबसे बड़ा शस्त्र मोबाइल बन गया है। यह मैं ही नहीं, पूरी दुनिया जानती हैं। यहां तक कि बच्चें-बच्चें को पता है। वैसे यह शस्त्र, शास्त्र के रूप में भी उपयोग हो सकता है और होता भी है। लेकिन इसके लिए कबीरा का मुड होना चाहिए। कबीरा का मुड नहीं हुआ तो वह उसके लिए एक खिलौने के अलावा कुछ नहीं। वह बस दिनभर इससे खेलता ही रहता है।
आज बाजार कहाँ नहीं है ? हर तरफ बाजार जमा है। और जहाँ बाजार है कबीरा वहीं खड़ा है। वास्तव में कबीरा के मोबाइल में ही बाजार घुस गया है। अब मोबाइल मतलब बाजार ही होता है। सुबह की महत्वपूर्ण जरूरत टूथपेस्ट से लेकर रात तक की सभी जरूरतों के लिए कबीरा के हाथ में बाजार है। इस बाजार के बीचोंबीच कबीरा खड़ा है। वह बाजार में क्यों खड़ा है यह सिर्फ़ कबीरा को ही पता है। यहां तक कि बाजार कबीरा के मोबाइल में घुस गया है या फिर कबीरा बाजार में घुसा है यह शोध ही नहीं, रहस्य का विषय बनता जा रहा है ! वहीं कबीरा मानता है कि बाजार को वह अपनी जेब में लेकर चलता है। जब चाहे तब कबीरा बाजार को अपनी ऊंगलियों पर नचा सकता है। बाजार के तमाम मंचों के लिए कबीरा बीच बाजार हाथ में मोबाइल लिये खड़ा है।
कबीरा बाजार में खड़ा है यह आश्चर्य का विषय नहीं है। वह तो लंबे समय से खड़ा है लेकिन वह अब हाथ में मोबाइल लिये खड़ा है। यह विचार करने का विषय है। उसके हाथ में मोबाइल है। लेकिन लगता है वह दुनिया मुठ्ठी में करके के खड़ा है। बाजार के हर भाव का निर्णय कबीरा के हाथ में है। कानून के हाथ से लंबा हाथ कबीरा का हो गया है। कबीरा बाजार को कहीं से भी छू सकता है और गुलज़ार कर सकता है। सेंसेक्स का उतार चढ़ाव हो या फिर किसी विरोध के लिए ट्विटर ट्रेंड हो ! कबीरा खड़े-खड़े बाजार को धड़ाम कर सकता है।
कबीरा के हाथ अब सृजन व विध्वंस दोनों के लिए उतारूं रहते हैं। कबीरा का यह शस्त्र परमाणु हथियारों से भी खतरनाक होता जा रहा है। लोकतंत्र तक कबीरा के शस्त्र से डरता है। कबीरा बाजार में खड़े-खड़े किसी भी सरकार को बना-बिगाड़ सकता है। सबको लगता है कि कबीरा सिर्फ़ खड़ा है। लेकिन वह मोबाइल में बहुत कुछ चला व बना रहा है। वह खड़े -खड़े चलता है। वह अपने इस शस्त्र से दुनिया को कभी बनाता है तो कभी मिटाने पर भी तुल जाता है। वह मोबाइल चलाते-चलाते दुनिया चलाने सीख रहा है। अब समझ आया कि “कर लो दुनिया मुठ्ठी में, विज्ञापन उसके लिए ही बना था।"
पहले कबीरा जीवन मूल्य बुनने का कार्य करता था। वहीं आज का कबीरा रील-वीडियो बुनता है। आज कबीर वाणी, कबीरा स्वयं सुनता है। अपने कानों में अपने मोबाइल का ही राग-मोबाईली संगीत सुनना पसंद करता है। उसे किसी से कोई लेना देना नहीं है। उसके एक तरफ घर है और दूसरी ओर घाट। वह घर व घाट दोनों पर खड़ा है। वह बाजार में खड़े-खड़े मस्त ऊंगलियां चलाता है। भले कबीरा कहीं भी खड़ा हो और कोई भी उसके आसपास से आया-गया हो, वह अपने मोबाइल के साथ ध्यान अवस्था में बीच बाजार में खड़े साधना कर रहा है।
भूपेन्द्र भारतीय
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