हमारी, उनकी व आप की लहर....!!
लहरों का क्या है आती-जाती रहती है। कभी महामारी की तो कभी जीत-हार की लहर। चुनाव से पहले दलबदल की लहरें चलती हैं। वहीं कईयों का मानना है कि चुनाव के बाद महंगाई की लहर चलने लगती है। हमारी, उनकी व आप की लहरें बहुत बार एक सी होती है ! वर्तमान समय में लहरों पर सवार होकर बहुत से लोग न सिर्फ़ जीवन रूपी नदी पार कर जाते हैं , पर आजकल तो आभासी साधनों के माध्यम से इच्छाओं के सागर तक को भी इन लहरों के सहारे ही पार किया जा रहा है। ऐसे में कौन व्यक्ति किस लहर पर सवार है, यह सही सही कहना एक्जिट पोल के नतीजों की तरह ही हो सकता है।
अब जब दो वर्ष तक आम जनमानस ने कोविड महामारी का बहादुरी से मुकाबला करते हुए विभिन्न लहरों का गहरा अनुभव अर्जित कर लिया है, ऐसे में आम आदमी का नॉटो, शीत युद्ध, तीसरें विश्व युद्ध व आर्थिक संकट जैसी लहरें कुछ नहीं कर सकती हैं। हाँ आम आदमी को यदि कोई लहर हिला-ठुला सकती है तो वह “वादों” की ही लहर ! वो फिर समाजवाद, साम्यवाद, पूँजीवाद, राजनैतिक वादें हो या फिर कोई सा भी कानूनी विवाद हो।
पीछले दिनों चुनावी मौसम में वादों की लहरों ने खुब रंग जमाया। “वैसे चुनाव वादों की ही बारात लेकर आते हैं और बेचारी दुल्हन रूपी जनता इनके साथ ही अगले पांच साल तक बिहा दी जाती है। वहीं वादे करने वाले इन पांच सालों तक सिर्फ़ हनीमून का मजा लेते हैं ! इन चुनाव परिणामों के बाद अब कुछ माननीय फाग खेल रहे हैं और कुछ फालुदा खाते हुए फरार हो जाऐंगे। वहीं कुछ उम्मीदी-वक्ता ईवीएम की विवादित लहर का राग फाग पखवाड़े चैनल-चैनल गाते फिरेंगे। इन्हीं वाद-विवाद की लहरों से जो बच गया ! समझों वह महानायक।
आजकल लहरों के वैरिएंट बढ़ी मात्रा में समाज पर प्रभाव डाल रहे हैं। हर तीसरे दिन मोबाइल के नये ब्रांड की लहर कितने के ही घरों में तूफान ला देती हैं। कोई पुष्पा की लहर में मस्त है, तो कोई काचा बादम खाकर ही यूट्यूब व इंस्टाग्राम पर तूफानी हो रहा है ! इधर छात्र दो साल बाद भौतिक परीक्षाओं की लहरों में झुलस रहे हैं। उन्हें तीसरे वर्ष भी पूर्ण भरोसा था कि कोई लहर आकर उन्हें अगले दर्जे में धकेल देगीं ! लेकिन ऐसा हो न सका और वे अब परीक्षा हॉल में बेहाल बैठकर उल्टी-सुल्टी लहरें चलाने को फड़फड़ा रहे हैं। वहीं परीक्षा कक्षों में उठती इन लहरों से परीविक्षक असमंजस में है। वे भी आनलाइन कक्षाओं की लहरों से अब तक बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। बीच-बीच में साहित्यिक वेबिनार व आनलाइन गोष्ठी की बासंतिक लहरें मन में फागुन जगाती है। और आभासी काव्य कुमारों के मन का मयूर कहता है कि “आह! वो क्वारंटाइन के भी दिन कितने अच्छे थे।”
अब जब कि चुनाव की लहरों का रुख भी स्पष्ट हो गया है, ऐसे में हमारी, उनकी व आप की लहरों वाला वाद-विवाद अब समाप्त हो जाना चाहिए। और हमारे माननीयों को शालीनता से मान लेना चाहिए कि ‛लोकतंत्र में जनता जनार्धन की भी गुप्त लहरें होती हैं ।’ जिसे बुद्धिजीवी वर्ग “अंडर करंट लहर” नाम से जानते हैं। माना कि इन अंडर करेंट लहरों से कितने ही उम्मीदवारों को करंट लगा है, पर उनके लिए अब भी समय है कि वे लोकतंत्र में सर्वसमाज के इन नंगे तारों को छेड़छाड़ करने से बचें। और अगली बार जब भी जनता के बीच जाए तो उन्हें किसी तरह के ‛स्वयंभू विकास के आभासी करंट’ होने के खोखले व झूठे वादे ना करें। क्योंकि जन-गण-मन की कुछ स्वतंत्र व गुप्त लहरें किसी की नहीं होती हैं। ये लहरें जब भी चलती हैं तो अच्छे अच्छों की हवा निकाल देती हैं और इन लहरों में कितनों के ही हवाहवाई महल ढह जाते हैं। इतिहास ऐसी अंडर करंट लहरों से भरा पड़ा हुआ है....!!
भूपेन्द्र भारतीय
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