Tuesday, May 17, 2022

विपक्ष का हल्ला बोल व पानी की बौछार....!!

 विपक्ष का हल्ला बोल व पानी की बौछार....!!

      

                          प्रजातंत्र इंदौर

कहाँ तो इस भीषण गर्मी में पानी पीने का नहीं मिल रहा है और पुलिस है कि विपक्ष के हल्ला बोल कार्यक्रम में विपक्ष के नेताओं को पानी की बौछार से रोक रही है ! जिस विपक्ष का पहले से ही पानी उतरा हुआ हो । भला उसपर बौछारें छोड़ना कहाँ की समझदारी है। अखबार में यह पढ़कर मैं पानी पानी हो गया। सरकार को मेरी ओर से धन्यवाद, बेचारे विपक्ष को “गर्मी से कुछ समय के लिए तो राहत मिली होगी।" हो सकता है विपक्ष की भी गर्मी कम हुई होगी ! पर पानी का ऐसा शस्त्र के रूप में उपयोग, क्या सत्तापक्ष के लिए शांति का कार्य कर रही पुलिस को यह सब शोभा देता है ? ऐसी गर्मी में विपक्ष का दिनदहाड़े हल्ला बोल व पुलिस का ऐसे बौछारें छोड़ना, ऐसे में मुझे तो लगता है इस भीषण गर्मी में भी “सब मिलें हुए हैं जी...!”

विपक्ष के हल्ला बोल आंदोलन में सरकार की तो गर्मी बढ़ सकती है लेकिन वहीं विपक्ष पानी की बौछारों का आनंद लेते दिखा ! मुझे तो आश्चर्य इस बात का है कि आम आदमी को पानी बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा है लेकिन पुलिस के पास बौछारें छोड़ने का पानी कहाँ से आया ! ऐसे जल संकट समय में भी हमारे देश की पुलिस पानी की व्यवस्था कर सकती है, तो फिर बड़े-बड़े अपराधी भी आसानी से पकड़े जाना चाहिए। खैर, मुझे क्या ! यह पुलिस व अपराधियों का निजी मामला है। मैं उनके निजी मामले में बोलने वाला कौन। उनका चोर-सिपाही का खेल, वे खेले या फिर अपने अपने क्षेत्र में अपना-अपना काम ईमानदारी से करते रहे।

मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा है कि जिस तीव्रता से किसी भी आंदोलन में पुलिस बिखरे हुए विपक्ष को तितर-बितर कर रही है, क्या हमारे लोकतांत्रिक देश में अब कभी विपक्ष एकजुट हो पाऐगा ? इस सवाल ने ही मेरे जैसे कनिष्ठ व्यंग्यकार के माथे की गर्मी बढ़ा रखी है। ऐसे में मैं सोच ही रहा था कि विपक्ष के किसी चिंतन शिविर में शामिल हो जाऊं। लेकिन मुझे संदेह है कि क्या विपक्ष वाले एक कनिष्ठ व्यंग्यकार को अपने वातानुकूलित किसी भी चिंतन शिविर में घुसने देगें। कल इसी दुविधा में अपने घर के ओटले पर बैठा ही था कि मेरे मित्र लचकराम जी कहीं से घुमते हुए आ गए। मैंने उससे पुछ लिया, यार लचकराम- यह पुलिस इस भीषण गर्मी में भी विपक्ष को पानी की बौछार से ही क्यों नियंत्रित करती हैं ? विपक्ष को तितरबितर करने का कोई ओर तरीका नहीं है ! पुलिस के पास ऐसी गर्मी में भी इतना पानी कहाँ से आता है ?
लचकराम बोला- तुम्हें पता नहीं है, पुलिस चाहे तो कुछ भी कर सकती है। “एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस को गिरफ्तार भी कर सकती है व स्वयं भी गिरफ्तार हो सकती हैं।” इन दिनों पुलिस महकमे में लोकतंत्र का अमृत महोत्सव चल रहा है। ‛फिर पानी जैसे द्रव्य की पुलिस के पास भला कोई कमी हो सकती है !' पुलिस चाहे तो एक घंटे में कितनों का ही पानी निचोड़ कर गंगा-जमुना बहा सकती है। और फिर यार ;- पुलिस के ऊपर जब भी सत्ता रूपी लॉ एंड आडर का हाथ होता है तो पुलिस में इंद्र देवता की शक्ति आ जाती है। वह लोकतंत्र की रक्षा व सरकार की कुर्सी की सुरक्षा के लिए विपक्ष को पानी की बौछारों से तितरबितर करती है। अपराधियों को पानी उतार पद्धति से नियत्रिंत करती हैं। इसमें पुलिस का कोई दोष नहीं है। यह सभी लोकतांत्रिक देशों में होता है।

आखिर में मैंने लचकराम से पूछा, पर आम आदमी के लिए इस भीषण गर्मी में पीने का पानी नहीं है और पुलिस है कि पानी का दुरुपयोग कर रही है ?
मित्र लचकराम जाते-जाते कह गया ;- आम आदमी की बात मत करो। तुम अभी कनिष्ठ व्यंग्यकार हो ! तुम पर एफआईआर हो जाऐगी। पुलिस व्यंग्य लिखना भुला देगीं। वहीं इस आम आदमी को भी पानी का महत्व इस भीषण गर्मी में ही पता चलता है, आम आदमी भी आजकल कम भला नहीं है। रही बात पुलिस की, वह तो पानी की बौछारों से लोकतंत्र की रक्षा कर रही हैं। लचकराम इतना कहकर चला गया। मैं वहीं अपने ओटले पर बैठे हुए, अपने ही माथे का पसीना पोछते हुए अब भी पुलिस, पानी की बौछारें व विपक्ष के किसी वातानुकूलित चिंतन शिविर की कल्पना में आम आदमी की तरह लू के थपेड़े खा रहा हूँ....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
मोब. 9926476410
मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com 

Saturday, May 14, 2022

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में #क्रांतिदूत शृंखला:- भाग-०१ (झाँसी फाइल्स)

 स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में #क्रांतिदूत शृंखला:- भाग-०१ (झाँसी फाइल्स)

         



क्रांतिदूत शृंखला के पहले भाग झाँसी फाइल्स में लेखक डॉ. मनीष श्रीवास्तव ने बड़े ही सरल व सहज कथामय शैली में क्रांतिकारियों के जीवन का रोचक चित्र खींचा है। इस झाँसी फाइल्स भाग में चंद्रशेखर से चंद्रशेखर आज़ाद बनने की ऐतिहासिक घटना को कथामय तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है। अपने संगठन को कैसे चलाना व मास्टर जी का संगठन के लिए समर्पण पढ़कर पाठक चौंक जाऐगा। भारत की वर्तमान युवा पीढ़ी इस पहले भाग को ही पढ़कर समझ सकती है कि हमारे क्रांतिकारियों ने देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए क्या नहीं किया।

इस पहले ही भाग में ‛राष्ट्रशाला’ व ‛राष्ट्रशिक्षा’ जैसे शब्दों के माध्यम से “राष्ट्रवाद” का बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश दिया गया है तथा राष्ट्रप्रेम व मातृभूमि के लिए अपना संपूर्ण जीवन कैसे भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु, मास्टर जी, भगवती आदि जैसे महान क्रांतिकारियों ने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए लगा दिया। लेखक ने अपनी विशिष्ट कथन शैली से इन महान क्रांतिदूतों का अपने देश के लिए प्रेम व जुनून को बेहद सरल अंदाज में प्रस्तुत किया है।

जिस समय भारत “आजादी के अमृत महोत्सव” को बड़े ही गर्व से मना रहा हो ओर उसमें इस क्रांतिदूत शृंखला आना, बहुत ही अच्छा व महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य है। पहले भाग में ही इस बात की प्रबल संभावना दिख रही है कि यह शृंखला सफल होगी व आने वाली पीढ़ीयों को भी बड़े रोचक ढ़ंग से यह बताने में सफल रहेगी कि भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराना व उसके लिए संघर्ष करना कितना साहस का कार्य रहा था। कितने ही गुमनाम बलिदानीयों का माँ भारती को आजाद कराने में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष योगदान रहा था।

इस पहले भाग को पढ़ने में आपको मुश्किल से दो घंटे भी नहीं लगते हैं। बेहद सरल भाषा व स्वतंत्रता का समर प्रवाहमय छोटे छोटे पाठों में क्रांतिदूत के पहले भाग झाँसी फाइल्स में लेखक लिखने में सफल रहे है। इसी झाँसी फाइल्स से मुझे पहली बार पता चला व मैं दावे के साथ कहना चाहूंगा कि बहुत कम पाठक जानते होगें कि “मास्टर रुद्रनारायण जी, जिनको बुंदेलखंड में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भीष्म पितामह कहा जाता है, झाँसी के सरस्वती पाठशाला में कला अध्यापक थे। इन्हीं मास्टर जी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को झाँसी से सदाशिव राव मलकापुरकर जी, भगवान दास माहौर जी, और विश्वनाथ गंगाधर वैशम्पायन जी जैसे शिष्यों से नवाजा था जिन्होंने आगे चलकर अंग्रेजों की नींद उड़ा कर रख दी थी।” क्या आप इन क्रांतिदूतो को जानते हैं ? ऐसे ही गुमनाम आजादी के दीवानों के बलिदान की रोचक ऐतिहासिक महत्व को लेखक ने यहां कथामय ढंग से सुंदर सरल भाषा में इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के लिए लिखा है।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम व क्रांति का पहला बड़ा साक्षी झाँसी नगर भी रहा है। यही से 1857 की क्रांति की सबसे बड़ी नायिका झाँसी की रानी ने अंग्रेजों से जबरदस्त आजादी की लड़ाई लड़ी थी जो आज भी हमारे बच्चों को याद है लेकिन बहुत से ओर भी क्रांतिदूतो की कहानियां रही है जिनके साथ इतिहास न्याय नहीं कर पाया है। शायद इस क्रांतिदूत शृंखला से वह न्याय हो सकता है ऐसी मुझे उम्मीद इस शृंखला का पहला भाग झाँसी फाइल्स पढ़कर जगी है।

यह पहला भाग ११७ पृष्ठ में ही है लेकिन जब आप पृष्ठ ४२ पर अहिंसा व हिंसा का सरल अंतर पढ़ेंगे तो आपको इस शृंखला को पढ़ने का ओर मन होगा और यह भी पता चलेगा कि आजादी सिर्फ़ अहिंसा के द्वारा ही नहीं मिली है। इसके लिए लाखों क्रांतिकारीयों ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के लिए बलिदान कर दिया। इसका ही ब्रह्मचारी वाला पाठ बड़ा ही रोचक है। वर्तमान में जिस रफ्तार से हर कोई हर छोटी मोटी घटना पर फोटो व विडियों बनाता रहता है उस काल में क्रांतिकारी अपने लक्ष्य के लिए अपना पूरा जीवन ही गुमनामी में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए बलिदान कर देते थे।

      


स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे कितने ही रोचक ऐतिहासिक तथ्य इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने बताये है। इस पहले भाग के अंत में लेखक ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की सूची दी है जिनके माध्यम से यह पुस्तक लिखी गई व इस विषय को समझने के लिए पाठक ओर विस्तार से इन्हें पढ़ सकता है। अंत में यही कहना चाहूंगा कि क्रांतिदूत के आने वाले भागों में लेखक की जिम्मेदारी ओर बढ़ गई है। यह शृंखला निरंतर चलते रहना चाहिए। युवा भारत इसे जरूर पढ़े। लेखक की बुंदेलखंड से बाली तक की यात्रा के बाद अब इस महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक क्रांतिदूत यात्रा के लिए शुभकामनाएं व बधाई।
जय हिंद


पुस्तक : क्रांतिदूत (भाग-1) झाँसी फाइल्स
लेखक: डॉ. मनीष श्रीवास्तव
प्रकाशक : सर्व भाषा ट्रस्ट
मूल्य : 150


समीक्षक
भूपेन्द्र भारतीय 
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Monday, May 9, 2022

बाहरी दुनिया से दूर रहना भी जरूरी है....

 बाहरी दुनिया से दूर रहना भी जरूरी है....



                   जनसत्ता 

ज्यादा नजदीकी कभी कभी दूरियां बढ़ा देती हैं। बहुत सी चीजें दूर से बहुत सुंदर व आकर्षक लगती हैं। लेकिन जैसे ही हम उसके पास जाते है वह व्यक्ति, पशु-पक्षी, कोई चीज, दृश्य आदि हमें उतना आकर्षक नहीं लगता जितना वह हमें दूर से लग रहा था। जैसे कोई इंसान कभी कभी मिलता है तो अच्छा लगता है, लेकिन रोज रोज मिलने से उसके साथ अच्छा नहीं लगता। वैसे ही जैसे किसी के घर कभी कभी जाओं तो ठीक रहता है लेकिन घड़ी घड़ी जाने से वह व्यक्ति आपका उतना सम्मान नहीं करेगा। क्यों ? क्योंकि यह मानव का प्राकृतिक स्वभाव है कि वह एक सी चीजों व मानव व्यवहार से बहुत जल्दी बोरियत महसूस करने लगता है। वहीं आधुनिक भौतिकवादी जीवन के कारण मानव दिनोंदिन चिड़चिड़ा व एकाकी होता जा रहा है। इसलिए व्यक्ति को बाहरी दुनिया की यात्रा के बजाय कभी कभी अपने जीवन में आंतरिक यात्रा भी करना चाहिए। जिससे कि वह अच्छे से अपना स्वयं का बेहतर मूल्यांकन कर सकें।

बाहर की या कहें कि भौतिक दुनिया को जानने के साथ-साथ ही उसे अपने आप को भी जानना समझना चाहिए। बाहरी दुनिया से एक निश्चित व सामान्य दूरी बनाये रखते हुए मानव को अपनी आत्मा व मन के अधिक नजदीक रहना चाहिए। उसे योग, स्वाध्याय, ध्यान आदि के माध्यम से अपने आप के पास भी रहना चाहिए। अधिकांश शास्त्रों में कहा गया है कि मानव के अंदर ही सारा ब्रह्मांड है, यदि वह बाह्य दुनिया के झूठे आकर्षण में नहीं फंसे तो। शायद इसे ही विद्वानों ने स्व की खोज कहा है। पुरूष से पुरूषोत्तम बनने की यात्रा में स्वयं को अच्छे से जानना बहुत जरुरी है।

इस आंतरिक यात्रा पर अधिकांश ऐतिहासिक ग्रंथों ने विस्तार से कहा है। सनातन व भारतीय संस्कृति में तो कितने ही ऋषि मुनियों व विद्वानों ने अपना संपूर्ण जीवन इस आंतरिक यात्रा के चरम बिंदुओं पर पहुंचने के लिए तपस्या व योग करते हुए व्यतीत कर दिया। जितने भी धर्म, पंथ, विचारधाराओं के सच्चे अनुयायी रहें हैं उन्होंने सबसे पहले योग, ध्यान व स्वाध्याय के माध्यम से ज्ञान व सत्य की प्राप्ति इसी आंतरिक यात्रा के माध्यम से की है।

वर्तमान में भौतिकता के मोहपाश के कारण हर कोई अपने आप को ही नहीं समझ पा रहा है। अधिकांश लोगों को उनके जीवन का ना तो उद्देश्य पता है और न ही अपना लक्ष्य । वर्तमान युवा पीढ़ी सोशल मीडिया, मोबाइल व भौतिक सुख सुविधा युक्त साधनों की संपन्नता को ही जीवन का अंतिम सत्य व लक्ष्य मान रही है। उसने प्रकृति व स्वयं से अपने आप का संबंध विच्छेद कर लिया है। वर्तमान युवाओं का मन बाहरी दुनिया के झूठे आकर्षण में ऐसा फंस गया है कि छोटी छोटी बातों व संघर्षों के आगे हारकर व हताश होकर वह आत्महत्या करने लग गया है। ऐसे में यह बहुत जरुरी हो गया है कि व्यक्ति सबसे पहले वर्तमान दुनिया के बाहरी आवरण से बाहर निकले व सबसे पहले स्वयं को पहचाने। अपने स्व की खोज करें। व्यवहारिक ज्ञान व जीवन के अनुभव को जानने तथा सीखने की कोशिश करें। वह सिर्फ़ ध्यान, योग, स्वाध्याय तथा अपने हिस्से में आये कर्म को करके ही प्राप्त किया जा सकता है।

अतः व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कुछ समय स्वयं के लिए जरूर निकाले। स्वयं को जानने के लिए वह योग, स्वाध्याय, ध्यान, प्रातःकाल लंबा घुमना, सामाजिक संबंधों में मधुरता रखना, प्रकृति के समीप रहकर आदि क्रियाएं करके वह अपने मन को शांत कर सकता है। और इस शांत मन के समय में ही उसे सहजता से आत्मचिंतन के द्वारा उसे अपने जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य आसानी से पता चल सकता है। वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में ये शांत पल ही मानव के लिए बाहरी दुनिया के भौतिकवादी जाल से बाहर निकलने का सबसे आसान तरीका है।



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लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....

 लोकसभा चुनाव में महुआ राजनीति....         शहडोल चुनावी दौरे पर कहाँ राहुल गांधी ने थोड़ा सा महुआ का फूल चख लिखा, उसका नशा भाजपा नेताओं की...