विपक्ष का हल्ला बोल व पानी की बौछार....!!
प्रजातंत्र इंदौर
कहाँ तो इस भीषण गर्मी में पानी पीने का नहीं मिल रहा है और पुलिस है कि विपक्ष के हल्ला बोल कार्यक्रम में विपक्ष के नेताओं को पानी की बौछार से रोक रही है ! जिस विपक्ष का पहले से ही पानी उतरा हुआ हो । भला उसपर बौछारें छोड़ना कहाँ की समझदारी है। अखबार में यह पढ़कर मैं पानी पानी हो गया। सरकार को मेरी ओर से धन्यवाद, बेचारे विपक्ष को “गर्मी से कुछ समय के लिए तो राहत मिली होगी।" हो सकता है विपक्ष की भी गर्मी कम हुई होगी ! पर पानी का ऐसा शस्त्र के रूप में उपयोग, क्या सत्तापक्ष के लिए शांति का कार्य कर रही पुलिस को यह सब शोभा देता है ? ऐसी गर्मी में विपक्ष का दिनदहाड़े हल्ला बोल व पुलिस का ऐसे बौछारें छोड़ना, ऐसे में मुझे तो लगता है इस भीषण गर्मी में भी “सब मिलें हुए हैं जी...!”
विपक्ष के हल्ला बोल आंदोलन में सरकार की तो गर्मी बढ़ सकती है लेकिन वहीं विपक्ष पानी की बौछारों का आनंद लेते दिखा ! मुझे तो आश्चर्य इस बात का है कि आम आदमी को पानी बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा है लेकिन पुलिस के पास बौछारें छोड़ने का पानी कहाँ से आया ! ऐसे जल संकट समय में भी हमारे देश की पुलिस पानी की व्यवस्था कर सकती है, तो फिर बड़े-बड़े अपराधी भी आसानी से पकड़े जाना चाहिए। खैर, मुझे क्या ! यह पुलिस व अपराधियों का निजी मामला है। मैं उनके निजी मामले में बोलने वाला कौन। उनका चोर-सिपाही का खेल, वे खेले या फिर अपने अपने क्षेत्र में अपना-अपना काम ईमानदारी से करते रहे।
मुझे तो यह समझ नहीं आ रहा है कि जिस तीव्रता से किसी भी आंदोलन में पुलिस बिखरे हुए विपक्ष को तितर-बितर कर रही है, क्या हमारे लोकतांत्रिक देश में अब कभी विपक्ष एकजुट हो पाऐगा ? इस सवाल ने ही मेरे जैसे कनिष्ठ व्यंग्यकार के माथे की गर्मी बढ़ा रखी है। ऐसे में मैं सोच ही रहा था कि विपक्ष के किसी चिंतन शिविर में शामिल हो जाऊं। लेकिन मुझे संदेह है कि क्या विपक्ष वाले एक कनिष्ठ व्यंग्यकार को अपने वातानुकूलित किसी भी चिंतन शिविर में घुसने देगें। कल इसी दुविधा में अपने घर के ओटले पर बैठा ही था कि मेरे मित्र लचकराम जी कहीं से घुमते हुए आ गए। मैंने उससे पुछ लिया, यार लचकराम- यह पुलिस इस भीषण गर्मी में भी विपक्ष को पानी की बौछार से ही क्यों नियंत्रित करती हैं ? विपक्ष को तितरबितर करने का कोई ओर तरीका नहीं है ! पुलिस के पास ऐसी गर्मी में भी इतना पानी कहाँ से आता है ?
लचकराम बोला- तुम्हें पता नहीं है, पुलिस चाहे तो कुछ भी कर सकती है। “एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस को गिरफ्तार भी कर सकती है व स्वयं भी गिरफ्तार हो सकती हैं।” इन दिनों पुलिस महकमे में लोकतंत्र का अमृत महोत्सव चल रहा है। ‛फिर पानी जैसे द्रव्य की पुलिस के पास भला कोई कमी हो सकती है !' पुलिस चाहे तो एक घंटे में कितनों का ही पानी निचोड़ कर गंगा-जमुना बहा सकती है। और फिर यार ;- पुलिस के ऊपर जब भी सत्ता रूपी लॉ एंड आडर का हाथ होता है तो पुलिस में इंद्र देवता की शक्ति आ जाती है। वह लोकतंत्र की रक्षा व सरकार की कुर्सी की सुरक्षा के लिए विपक्ष को पानी की बौछारों से तितरबितर करती है। अपराधियों को पानी उतार पद्धति से नियत्रिंत करती हैं। इसमें पुलिस का कोई दोष नहीं है। यह सभी लोकतांत्रिक देशों में होता है।
आखिर में मैंने लचकराम से पूछा, पर आम आदमी के लिए इस भीषण गर्मी में पीने का पानी नहीं है और पुलिस है कि पानी का दुरुपयोग कर रही है ?
मित्र लचकराम जाते-जाते कह गया ;- आम आदमी की बात मत करो। तुम अभी कनिष्ठ व्यंग्यकार हो ! तुम पर एफआईआर हो जाऐगी। पुलिस व्यंग्य लिखना भुला देगीं। वहीं इस आम आदमी को भी पानी का महत्व इस भीषण गर्मी में ही पता चलता है, आम आदमी भी आजकल कम भला नहीं है। रही बात पुलिस की, वह तो पानी की बौछारों से लोकतंत्र की रक्षा कर रही हैं। लचकराम इतना कहकर चला गया। मैं वहीं अपने ओटले पर बैठे हुए, अपने ही माथे का पसीना पोछते हुए अब भी पुलिस, पानी की बौछारें व विपक्ष के किसी वातानुकूलित चिंतन शिविर की कल्पना में आम आदमी की तरह लू के थपेड़े खा रहा हूँ....!!
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