Friday, July 14, 2023

बेसन घोल दिया है, जल्दी आ जाओ....!!

 बेसन घोल दिया है, जल्दी आ जाओ....!!





फोन पर श्रीमती जी का संदेश आया कि “बेसन घोल दिया है, जल्दी घर आ जाओ....!!" मैं थोड़ा चौंका, सोचा कि अभी तो मौसम भी ऐसा नहीं है। कहीं दूर दूर तक बादल भी नहीं है। मैंने इधर से प्रश्न किया, कोई विशेष कारण ? बोली;- शाम को मौसम विभाग ने मुसलाधार बारिश बताई है। मैं हँस दिया। तुम भी कहाँ उनके चक्कर में आ गई। उनकी भविष्यवाणी आजतक सही निकली ? “हमारे यहाँ मौसम विभाग व रोजगार कार्यालय की बातें सही कब हुई हैं ?”
जबरन बेसन व उसके साथ मिलाये गए सब्जी-मसालों की बर्बादी हो जाऐगी। कहाँ तो हम मध्यवर्गीय और ऊपर से इन मौसम विभाग वालों पर विश्वास करना। गरीबी में आटा गिला होने जैसा ही है।
बेसन घोलने की सूचना पर मैं चिंतित इसलिए भी हो गया कि इस मँहगाई के जमाने में बेसन घोलना इतना भी आसान नहीं है ! बेसन के साथ महँगी मिर्ची, जीरा, आजवाइन, बड़े मियां प्याजजी आदि की जरूरत होती है। इन्हें एक साथ खरीदना आसान है ? इनके चक्कर में अच्छे अच्छों की जेब ढीली हो जाती है और बहुमत वाली सरकारें तक चली गई है। और ऊपर से मुझे यह डर सताने लगा कि कहीं बचे कुछे दो टमाटर में से किसी एक टमाटर को तो नहीं घोल दिया...!
मन में विचार आया कि ‛भला इन दिनों मौसम देखकर कौन इतना खर्चा करता है।’ मध्यवर्गीय लोगों को ऐसा आर्थिक अपराध नहीं करना चाहिए। लेकिन उन्हें यह बात समझाने का अपराध मैं कैसे करूँ।
लगा यह समय तो बेमौसम बरसात व बाजार का ही है। मौसम विभाग वाले आखिर कब सही हुए हैं ? जो उनकी बात में आकर इतना बड़ा रिस्क ले ! और फिर मध्यवर्गीय रिस्क ले सकता है !
हम इन दिनों देख रहे हैं कि सरकार तो सरकार, विपक्ष तक की हिम्मत नहीं हो रही है कि कुछ भी घोला जाए या फिर घपला किया जाए। ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा वाले समय में आखिर कौन राजनीतिक बेसन घोलने की हिम्मत करें। ऐसे में श्रीमती जी है कि छुटपुट बादलों व मौसम विभाग वालों के चक्कर में आकर बेसन ही घोल दिया। बताओ भला आसपास वाले बेसन की खुशबू सूंघ लेगें, तो बांका-तिरछा मुँह नहीं बनाऐंगे ? ऊपर से यह माह इनकमटैक्स रिटर्न फाइल करने का है जो अलग।
बेसन घोलना भी है तो पहाड़ों पर जाओ, वहाँ बादल टूटकर बरस रहें हैं , वहां आधुनिक पर्यटकों ने गजब का बेसन घोल रखा है। इन्हें कौन बताएं कि बेसन घोलने का आयोजन भला मैदानी क्षेत्रों में हो, ऊपर यह कैसा आयोजन। सावन के ये भजिए कितने महँगे पड़ सकते हैं ! आखिर भाग्यवान को कौन समझाये !
खैर बेसन घोल दिया है तो निकलना पड़ा। खाने-पीने के शौकीन कभी खिलाने वाले की बात को टाल सकते हैं। श्रीमती जी का आदेश जो था। ऊपर से बादल भी घने होने लगे। थोड़ा मुझे भी लगा कि बारिश हो सकती है। जल्दी ही पहुंचा जाए। कहीं ट्राफिक के चक्कर में मौसम का मजा ना बिगड़ जाए। थोड़ी बहुत बारिश में ही हमारे शहरों की सड़कें नाराज हो जाती है। सड़क के गड्ढे व नगरपालिका का निर्माण कहीं बारिश से नाराज नहीं हो जाए, तब तक घर पहुंचना ही ठीक है। कहीं घर पहुंचने में देरी हो गई और मौसम विभाग वालों की भविष्यवाणी आज सही हो गई, तो फिर भजिए तो गए भाड़ में, “घर में घुसते ही आकाश व रसोईघर से गरज के साथ बादल ओर ज्यादा बरसने लगेंगे....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदेश(455118)
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