Sunday, April 9, 2023

उन्हें अक्सर शब्द कम पड़ जाते हैं...!!

 उन्हें अक्सर शब्द कम पड़ जाते हैं...!!




लचकलाल जी जब भी बोलना शुरू करते है उन्हें अक्सर शब्द कम पड़ जाते हैं। नगर में ऐसा कोई आयोजन नहीं रहता है जिसमें लचकलालजी नहीं पहुंच पाते हो। नगर व नगर के 56 किलोमीटर के आसपास तक कहीं भी कोई भी आयोजन हो रहा हो, लचकलाल जी को उसकी खुशबू आ ही जाती है। उनके पंखें(फेन), उन्हें कहीं ना कहीं से फोन कर ही देते हैं। “दादा फलां की काकी मर गई है, वहीं अपने छोटू के जियाजी के पिताजी का रविवार को नुक्ता(पगड़ी) है ! अपने को चलना है, वो अपना खास है और ‛दादा पगड़ी के कार्यक्रम का संचालन आप ही को करना है।’ अब बात कार्यक्रम के संचालन की आ गई है तो जाना ही पड़ता है। लेकिन लचकलाल जब-जब बोलना शुरू करते है उन्हें शब्दों की सीमा घेर लेती है। वे वक्ता के तौर पर जब तक रंग में आते हैं तब तक शब्द की सीमा उनके पीछे पड़ जाती है।यही शब्दों की सीमा अधिकांश समय संचालन के रंग में भंग डालती है !

आयोजन-कार्यक्रम कोई भी हो, लचकलालजी हर विषय पर बोल सकते है। उनके पास जीवन की हर घटना के लिए एक रेडीमेड कहानी रहती है। भले वह कार्यक्रम उठावने का हो, श्रद्धांजलि सभा हो, होली मिलन समारोह हो या फिर नेताजी के भूमि पूजन का। नगर के अधिकांश आयोजनों की चर्चाओं में यह बात सामान्य रहती है कि “इस बार फिर लचकलालजी को पर्ची पहुंचाई गई और कहा गया कि अपनी बात को संक्षिप्त करिए। ऐसे में वे अक्सर शब्दों की मर्यादा के हवाले से अपनी बात वहीं समाप्त कर देते हैं।”

किसी कार्यक्रम में शब्द कम पड़ जाना, लचकलालजी के लिए वैसा ही है जैसे “क्रिकेट में खिलाड़ी का 99 पर आउट हो जाना और प्रेमी-प्रेमिका के आंख मिलाते ही प्रेमिका के पिताजी का घर के दरवाजे पर आ जाना !”
किसी आयोजन में यदि माईक नहीं है तो उनके पास शब्द अपने आप कम पड़ जाते हैं और लचकलालजी स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यक्रम की गरिमा को समझ जाते है। बहुत से आयोजनों में देखा गया है कि जनता कम होने पर भी उन्हें शब्दों की सीमा फिर याद आ जाती हैं। और वहीं किसी आयोजन में भारी-भरकम भीड़ को देखते ही उनका शब्द भण्डार बढ़ने लगता है।

लचकलालजी जब भी किसी आयोजन में मुख्य अतिथि की भूमिका में रहते है तो वहां शब्दों का भंडार लेकर पहुंचते है लेकिन वहां आयोजकों व कार्यकर्ताओं की खींचातानी के कारण फिर उनकी वाणी शब्दों की कमी अनुभव करती है। बहुत बार जनता की भावनाएं आड़े आ जाती है। भीड़ में से कुछ व्यस्त लोग अपने मोबाइल को कान पर लगाते हुए उठने लगते हैं। जनता आपस में संसद जैसी कार्यवाही का संचालन करने लगती हैं। वह कार्यकर्ता जिस पर आखिर में टेंट व कुर्सी समेटने की जिम्मेदारी होती है वह जनता की भावनाओं का ध्यान रखते हुए, “वह कार्यकर्ता आयोजन स्थल के पास ही श्रोता बनकर बैठे किसी कुत्ते को पत्थर मार देता है जिससे जनता का ध्यानाकर्षण हो जाता है !” इन स्थितियों में लचकलालजी को एक बार फिर शब्दों की अपनी सीमा व समय की मर्यादा का पालन करते हुए, अपना स्थान ग्रहण करना पड़ता है। लचकलालजी को इस बात की पीड़ा निरंतर सताती रहती है कि वह ‛अपनी अभिव्यक्ति का पूर्ण आनंद नहीं ले पाते है।’

शब्दों की इन्हीं कमीयों को देखते हुए। लचकलाल जी ने इन दिनों अपना एक स्थायी मंच यूट्यूब चैनल बना लिया है। आजकल वे अपने यूट्यूब चैनल पर महीने में एक दो बार शब्दों की कमी को पूरा करते है। अब अपने चैनल पर उन्हें किसी तरह के शब्दों की सीमा व समय की मर्यादा के वीटो पावर से सामना नहीं करना पड़ता । वे अपने मन की सारी बात कह लेते है और फिर उस ऐतिहासिक वार्ता को 25-30 वाट्सएप समूहों में लिंक के माध्यम से अपने शब्दों की तूफानी रवानगी डाल देते है....!!


भूपेन्द्र भारतीय 
205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,
जिला देवास, मध्यप्रदे

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